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Friday, March 29, 2024

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गहरी होती विषमता की खाई

अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी तथा निरंतर विकास के बावजूद बीते तीन दशकों में वैश्विक विषमता की खाई बढ़ती जा रही है. एक ओर जहां बीते दशक में अरबपतियों की संख्या दोगुनी हो गयी है, वहीं आबादी का निचला हिस्सा अपनी बुनियादी जरूरतों को भी पूरा नहीं कर पा रहा है. पुरुष और स्त्री के बीच भी […]

अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी तथा निरंतर विकास के बावजूद बीते तीन दशकों में वैश्विक विषमता की खाई बढ़ती जा रही है. एक ओर जहां बीते दशक में अरबपतियों की संख्या दोगुनी हो गयी है, वहीं आबादी का निचला हिस्सा अपनी बुनियादी जरूरतों को भी पूरा नहीं कर पा रहा है. पुरुष और स्त्री के बीच भी निर्धनता एवं वंचना बहुत चिंताजनक है. भारत समेत विभिन्न विकासशील व अविकसित देशों में यह समस्या अधिक विकराल है. ऑक्सफैम की ‘टाइम टू केयर’ (ध्यान देने का समय) रिपोर्ट में कहा गया है कि इस विषमता को पाटने के लिए व्यापक स्तर पर प्रयासों की दरकार है. इस रिपोर्ट के अहम तथ्यों के साथ प्रस्तुत है आज का इन डेप्थ.

अहम तथ्य

1% दुनिया के सबसे धनी लोगों के पास 6.9 अरब लोगों से दुगुनी से भी अधिक संपत्ति है. इस शीर्ष एक फीसदी में 2,153 अरबपति हैं, जिनके पास 2019 में 4.6 अरब लोगों से अधिक धन था. यह संख्या धरती की 60 फीसदी आबादी है. पांच सबसे धनी अरबपतियों की औसत संपत्ति का पांचवा हिस्सा भी जमा करने के लिए एक आम आदमी को मिस्र के पिरामिडों के बनने के समय (2630-2610 ईसा पूर्व) से रोजाना 10 हजार डॉलर के बचत की जरूरत होगी. विश्व बैंक का आकलन है कि आधी आबादी रोजाना 5.50 डॉलर से कम में जीवनयापन करती है.

22 सबसे धनी पुरुषों के पास अफ्रीका की सभी महिलाओं (32.60 करोड़) से अधिक धन है. यदि दुनिया के सबसे धनी दो लोग सौ डॉलर के नोटों को एक पर एक रखें, तो वे बाहरी अंतरिक्ष में पहुंच जायेंगे, जबकि धनी देशों के मध्य वर्गीय लोग कुर्सी की ऊंचाई तक पहुंचेंगे और दुनिया की अधिकतर आबादी जमीन पर बैठी होगी.

12.5 अरब घंटे रोजाना औरतें और लड़कियां बिना मेहनताना के काम करती हैं. घरेलू कामकाज, बच्चों-बुजुर्गों की देखभाल, लकड़ी-पानी जुटाना आदि करनेवाली महिलाएं सबसे अधिक बिना दाम के काम करती हैं. इसका सबसे खराब असर कम आमदनीवाले देशों की महिलाओं पर है. उम्रदराज होती आबादी के बढ़ने और जलवायु परिवर्तन के गंभीर होने से इन महिलाओं पर दबाव बहुत बढ़ेगा.

10.8 ट्रिलियन डॉलर मूल्य है औरतों द्वारा किये जानेवाले बिना मेहनताना के काम का. यह वित्तीय आंकड़ा दुनिया के तकनीकी उद्योग के आकार का तीन गुना है. विश्व में कामकाजी उम्र की 42 फीसदी महिलाएं कोई रोजगार नहीं कर पातीं क्योंकि उन्हें घरेलू कामकाज करना होता है. पुरुषों में यह आंकड़ा छह फीसदी है.

0.5% धनिकों के धन पर कर में अतिरिक्त बढ़ोतरी दुनिया की बेहतरी में बहुत मददगार हो सकती है. यदि सबसे धनी एक फीसदी लोग आगामी 10 सालों तक यह भुगतान करें, तो यह शिक्षा, स्वास्थ्य, बुजुर्गों की देखभाल व अन्य क्षेत्रों में 11.70 करोड़ देखभाल की नौकरियों के बराबर होगा.

(ऑक्सफैम की रिपोर्ट पर वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का विश्लेषण)

अनियंत्रित असंतुलन

वर्ष 2011 और 2017 के बीच समूह- सात के देशों (कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन व अमेरिका) में औसत मेहनताने में तीन फीसदी की बढ़त हुई, जबकि धनी शेयरहोल्डरों के लाभांश में इस अवधि में 31 फीसदी वृद्धि हुई.

दुनियाभर में पुरुषों की संपत्ति महिलाओं की तुलना में 50 फीसदी अधिक है.

वैश्विक स्तर पर औसतन 18 फीसदी सरकारी मंत्री और 24 निर्वाचित प्रतिनिधि महिलाएं हैं. इस कारण उन्हें अक्सर निर्णय लेने की प्रक्रिया से बाहर रहना पड़ता है.

धरेलू कामगारों की करीब 6.70 करोड़ संख्या में 80 फीसदी महिलाएं हैं. लगभग 50 फीसदी कामगारों को न्यूतनतम मजदूरी के बारे में कोई सुरक्षा नहीं है, जबकि 50 फीसदी से अधिक के लिए कामकाजी घंटों की कानूनी सीमा नहीं है. ऐसे कामगारों में से 90 फीसदी को कोई सामाजिक सुरक्षा या लाभ प्राप्त नहीं हैं.

वर्ष 2030 तक बुजुर्गों की संख्या में 10 करोड़ और छह से 14 साल के बच्चों की संख्या में 10 करोड़ की बढ़ोतरी होगी, जिनके देखभाल की जरूरत होगी.

जलवायु परिवर्तन की वजह से 2025 तक 2.4 अरब लोग ऐसे इलाकों में रहने को मजबूर हो सकते हैं, जहां समुचित मात्रा में पानी उपलब्ध नहीं होगा. इस कारण बहुत-सी महिलाओं व बच्चियों को पानी लाने के लिए दूर जाना पड़ेगा.

मुख्य सुझाव

देखभाल के राष्ट्रीय तंत्र में निवेश करना ताकि औरतों व बच्चियों पर काम का बेजा भार कम हो सके.

अत्यधिक निर्धनता की समाप्ति के लिए अत्यधिक धन को समाप्त किया जाये.

देखभाल करनेवाले के अधिकार और समुचित वेतन के लिए कानून बनाये जायें.

देखभाल करनेवालों का निर्णय लेने की प्रक्रिया मे प्रभाव को सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

नुकसानदेह नियमों और लैंगिक भेद की मान्यताओं को चुनौती दें.

कारोबारी नीतियों व व्यवहार में देखभाल को महत्व मिले.

कम या बिना मेहनताने के कामों के होने को स्वीकार किया जाये कि वे भी काम या उत्पादन हैं, जिनका वास्तविक मूल्य है.

अच्छे यंत्रों और बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था कर बिना मेहनताना के कामकाजी घंटों को कम किया जाये.

ऐसे कामों का परिवार के भीतर संतुलित बंटवारा हो और साथ ही सरकारी व निजी क्षेत्र ऐसे कामों की जिम्मेदारी लेना शुरू करें.

बिना मेहनताना काम करनेवाले हाशिये के लोगों का नीति-निर्धारण, सेवाओं व व्यवस्था में प्रतिनिधित्व किया जाये, जो उनके जीवन पर नकारात्मक असर डालते हैं.

दक्षिण एशिया में आर्थिक असमानता

दुनिया के सबसे गरीब इलाकों में दक्षिण एशिया भी शामिल है. वैश्विक गरीबी में इस क्षेत्र का हिस्सा 1990 से 2013 के बीच 27.3 फीसदी से बढ़कर 33.4 फीसदी हो गया. इससे अधिक गरीबी सिर्फ सब-सहारा अफ्रीका (50.7 फीसदी) में है. इस इलाके के देशों में धनिक तबके को करों में राहत देने की होड़ मची हुई है. इस वजह से राजस्व के घाटे के लिहाज से 10 देशों की सूची में शीर्ष पर भारत और पाकिस्तान हैं.

भूटान और मालदीव को छोड़कर कोई भी दक्षिण एशियाई देश 1980 और 2015 के बीच विषमता कम करने में सफल नहीं हुआ है. भारत में शीर्ष के 10 फीसदी लोग कुल राष्ट्रीय संपत्ति के करीब तीन-चौथाई हिस्से के मालिक हैं. पाकिस्तान के बारे में ऐसा आंकड़ा उपलब्ध नहीं है.

बांग्लादेश में सबसे गरीब पांच फीसदी आबादी की आमदनी में हिस्सेदारी मात्र 0.23 फीसदी है. इसकी तुलना में पांच फीसदी सबसे धनी लोगों का भाग 27.89 फीसदी है. नेपाल में सर्वाधिक धनी 20 फीसदी के पास कुल संपत्ति का 56.2 फीसदी है, जबकि सबसे निर्धन 20 फीसदी के हिस्से में महज 4.1 फीसदी धन है. लगातार बढ़ती इस भयावह विषमता पर अंकुश लगाने के लिए सरकारों को ठोस लक्ष्य निर्धारित कर नीतिगत पहल और संसाधनों के समुचित आवंटन करने की आवश्यकता है.

(दक्षिण एशिया निर्धनता निवारण

गठबंधन के सचिवालय द्वारा जारी दक्षिण एशिया विषमता रिपोर्ट, 2019)

पूंजीवादी व्यवस्था से निराशा

ऑक्सफैम की रिपोर्ट के साथ पेश सर्वेक्षण के अनुसार, दुनिया के ज्यादातर लोग मानते हैं कि पूंजीवाद अपने मौजूदा रूप में फायदा से कहीं अधिक नुकसान पहुंचा रहा है. रिपोर्ट तैयार करनेवालों का कहना है कि विषमता के बढ़ने संबंधी पहले के सर्वेक्षणों से वे पूंजीवाद-आधारित पश्चिमी लोकतंत्रों के प्रति बढ़ते संदेह के बारे में पूछने के लिए प्रेरित हुए हैं. यह सर्वेक्षण 28 देशों के 34 हजार से अधिक लोगों में बीच किया गया, जो अमेरिका, फ्रांस आदि जैसे पश्चिमी उदारवादी देशों से लेकर अलग व्यवस्था के चीन, रूस आदि देशों से थे.

इन लोगों में से 56 फीसदी का कहना है कि आज का पूंजीवाद दुनिया को फायदे की तुलना में नुकसान ज्यादा पहुंचा रहा है. पूंजीवाद में यह अविश्वास सबसे अधिक थाईलैंड (75 फीसदी), भारत (74 फीसदी) और फ्रांस (69 फीसदी) में है. अन्य एशियाई, यूरोपीय, खाड़ी, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों में भी ज्यादा लोग ऐसा ही मानते हैं.

केवल ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका, दक्षिण कोरिया, हांगकांग और जापान में बहुसंख्यक लोगों ने फायदे से नुकसान अधिक होने की बात को नकार दिया. इस सर्वेक्षण से उन चिंताओं की पुष्टि हुई है, जो तकनीकी प्रगति की गति, रोजगार की असुरक्षा, मीडिया के प्रति अविश्वास और राष्ट्रीय सरकारों को चुनौतियों का सामना करने में अक्षम पाने की भावना से बढ़ती जा रही हैं. इस अध्ययन का एक पहलू यह भी है कि दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में एशियाई लोग आर्थिक संभावनाओं को लेकर अधिक आशावादी हैं.

देश के एक प्रतिशत लोगों के पास राष्ट्रीय संपत्ति का 42 प्रतिशत

भारत के एक प्रतिशत सर्वाधिक धनी लोगों के पास जितना पैसा है, वह हमारी 95.3 करोड़ आबादी (देश की 70 प्रतिशत जनसंख्या) के पास जितनी संपत्ति है उससे चार गुना से भी अधिक है.

देश के सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों के पास राष्ट्रीय संपत्ति का 42.5 प्रतिशत हिस्सा है. जबकि देश के निचले पायदान पर रहनेवाली 50 प्रतिशत आबादी के पास राष्ट्रीय संपत्ति का मात्र 2.8 प्रतिशत हिस्सा है.

अगर देश के सभी 63 अरबतियों की संपत्ति को मिला दिया जाये ताे वह वित्त वर्ष 2018-19 के बजट की राशि से भी ज्यादा है, जो 24,42,200 करोड़ रुपये है.

भारत के सर्वाधिक धनी 10 प्रतिशत लोगों का राष्ट्रीय संपत्ति के 74 प्रतिशत से अधिक हिस्से पर नियंत्रण है, जबकि हर वर्ष 19 ट्रिलियन के अवैतनिक देखभाल के काम में गरीब महिलाओं और लड़कियों को लगाया जाता है.

एक वर्ष में एक टेक्नोलॉजी कंपनी के टॉप सीइओ जितना कमाते हैं उतना कमाने में एक भारतीय घरेलू महिला कामगार को 22,277 साल लग जायेंगे.

106 रुपये प्रति सेकेंड कमाने के साथ ही एक टेक्नोलॉजी कंपनी के सीइओ 10 मिनट में जितना कमाते हैं, एक वर्ष में एक घरेलू कामगार की कमाई उससे भी कम है.

देश भर में हर दिन महिलाओं और लड़कियों द्वारा िकया गया लगभग 3.26 अरब घंटे का कार्य अवैतनिक होता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रति वर्ष कम से कम 19 लाख करोड़ रुपये का योगदान है. यह राशि 2019 में भारत के पूरे शिक्षा बजट का 20 गुना (93,000 करोड़ रुपये) है. अवैतिनक कार्यों में खाना पकाना, साफ-सफाई और बच्चों व बुजर्गों की देखभाल शामिल हैं. ये अवैतनिक कार्य वह छुपा हुआ इंजन है जो हमारी अर्थव्यवस्था, व्यवसाय और समाज को गतिमान बनाये रखता है.

महिलाओं को आराम के कम घंटे

वर्ष 2018 में शहरी क्षेत्र में महिलाओं ने 312 मिनट प्रति दिन और ग्रामीण महिलाओं ने 291 मिनट प्रति दिन अवैतिनक देखभाल के कार्यों में खर्च किया था. वहीं इसी काम में शहरी पुरुषों ने केवल 29 मिनट और ग्रामीण पुरुषों ने 32 मिनट ही खर्च किये थे.

उन घरों में जहां महिलाओं के खिलाफ हिंसा को पुरुष व महिला दोनों की स्वीकार्यता मिली होती है, उस घर की स्त्रियाें को वैतनिक और अवैतनिक देखभाल के काम में 42 मिनट ज्यादा समय देना पड़ता है, जबकि अवकाश के लिए उन्हें 48 मिनट कम समय मिलता है, जिससे उन्हें आराम और अपनी मनपसंद काम करने का वक्त नहीं मिल पाता है.

स्रोत : ऑक्सफैम इंडिया के माध्यम से आइएलओ की रिपोर्ट

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