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वर्षांत : साल की प्रमुख अंतरराष्ट्रीय घटनाएं

यह साल विभिन्न महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों और हलचलों से भरा रहा. अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध से लेकर शरणार्थी संकट तक, सत्ता परिवर्तन से लेकर जलवायु परिवर्तन तक कई ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहसों को जन्म दिया अथवा उनकी दिशा बदल दी. साल की प्रमुख अंतरराष्ट्रीय हलचलों पर आधारित प्रस्तुति… पोलैंड में जलवायु […]

यह साल विभिन्न महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों और हलचलों से भरा रहा. अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध से लेकर शरणार्थी संकट तक, सत्ता परिवर्तन से लेकर जलवायु परिवर्तन तक कई ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहसों को जन्म दिया अथवा उनकी दिशा बदल दी. साल की प्रमुख अंतरराष्ट्रीय हलचलों पर आधारित प्रस्तुति…
पोलैंड में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन
पोलैंड में 24वां कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज टु द यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क जलवायु परिवर्तन सम्मेलन संपन्न किया गया. इस सम्मेलन में शामिल देशों के बीच साल 2015 के पेरिस जलवायु समझौते को लागू करने पर सहमति बनी. पेरिस समझौते में विकसित देशों के लिए नियम पर कोई सहमति नहीं थी. इस दौरान मूलतः गरीब देशों और अमीर देशों के कार्बन उत्सर्जन की सीमा को लेकर विवाद भी सामने आया था.
इसके अलावा इंटरगवर्नमेंटल पैनल (आईपीसीसी) की जलवायु परिवर्तन की रिपोर्ट पर भी देश बंटे हुए हैं. शुरू से ही सऊदी अरब, अमेरिका, कुवैत और रूस ने आईपीसीसी की रिपोर्ट को सिरे से खारिज किया है. सम्मेलन के दौरान पर्यावरण वैज्ञानिकों ने तमाम देशों को लेकर चिंता जाहिर की है, जिसमें ब्राजील और अमेरिका के राष्ट्रवादी राष्ट्रपतियों के जलवायु परिवर्तन पर रवैये की बात उठायी गयी.
आईपीसीसी ने कार्बन उत्सर्जन को लेकर विभिन्न देशों के लिए जो सीमा तय की थी, उस पर कई देशों के बीच अभी भी मतभेद बने हुए हैं. जलवायु परिवर्तन की मुहिम में भारत अग्रणी भूमिका में है. भारत ने सौर ऊर्जा अलायंस बनाया है और वर्ष 2030 तक 30 से 35 प्रतिशत तक कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.
अमेरिका और चीन ट्रेड वार
चीन और अमेरिका विभिन्न मुद्दों पर असहमतियों को आगे बढ़ाते हुए अपनी आर्थिक नीतियों द्वारा एक-दूसरे को हराने में जुटे हुए हैं. इस वर्ष जनवरी में अमेरिका ने सोलर पैनल (ये ज्यादातर चीन से निर्यात होते है) व वाशिंग मशीन पर टैरिफ बढ़ाने की घोषणा की. इसके बाद मार्च में एक बार फिर अमेरिका ने चीन सहित अन्य देशों आयात होनेवाले इस्पात व एल्युमीनियम टैरिफ बढ़ाने की घोषणा की.
हालांकि इस वृद्धि से व्यापार युद्ध की शुरुआत तो नहीं हुई थी, लेकिन इसकी भूमिका बननी तय हो गयी थी. असल में चीन से निर्यात किये गये वस्तुओं पर अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाये जाने की शुरुआत इस वर्ष जून में तब हुई थी जब चीन ने 34 अरब डॉलर के अमेरिकी वस्तुओं पर 25 प्रतिशत शुल्क बढ़ा दिया, इसी के जवाब में अमेरिकी प्रशासन ने 15 जून को 50 अरब डॉलर के चीनी वस्तुओं पर 25 प्रतिशत शुल्क की वृद्धि कर दी.
18 जून को एक बार फिर डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के ट्रेंड रीप्रजेंटेटिव को 200 अरब डॉलर के चीनी वस्तुओं की पहचान कर उस पर 10 प्रतिशत का अतिरिक्त कर लगाने का निर्देश दिया. इस संबंध में व्हाइट हाउस से जारी डोनाल्ड ट्रंप के बयान में कहा गया था कि अगर चीन इसके बाद अमेरिकी वस्तुओं पर लगाये जाने वाले टैरिफ में वृद्धि करता है तो अमेरिका 200 अरब डॉलर के चीनी वस्तुओं पर अतिरिक्त शुल्क लगायेगा.
अमेरिका और चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में से हैं और जिस तरह से दोनों देश एक-दूसरे पर ट्रेड वॉर की आड़ में हमले कर रहे हैं, यह बाकी दुनिया के लिए परेशानी का सबब बन चुका है. इस ट्रेड वार का भारत सीधे तौर पर सामना कर रहा है और नुकसान भी उठा रहा है. मेक इन इंडिया प्रोजेक्‍ट पर ट्रेड वार का असर पड़ा है और भारतीय बाजार से निवेशक अपने पैसे निकाल रहे हैं और अमेरिका की तरफ रुख कर रहे हैं. अमेरिका और चीन का यह व्यापार युद्ध शीत युद्ध की तरफ बढ़ चला है.
भारत-अमेरिका व्यापार युद्ध
इस वर्ष के प्रारंभ में भारत से निर्यात किये जानेवाले इस्पात व एल्युमीनियम उत्पादों पर अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाये जाने की एकतरफा घोषणा से भारत को शुल्क के तौर पर अनुमानत: कुल 241 मिलियन डॉलर की राशि का बोझ पड़ गया था. इस प्रभाव को बेअसर करने के लिए भारत ने अमेरिका से आयात होनेवाले चना, मसूर दाल, छिलके वाला बादाम, खोलदार अखरोट, सेब, बोरिक एसिड, फॉस्फोरिक एसिड समेत 29 वस्तुओं पर उसी दर से सीमा शुल्क बढ़ा दिया था.
ब्रेक्जिट को लेकर थेरेसा मे ने जीता विश्वास मत
यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर आने यानी ब्रेक्जिट को लेकर कठिनाइयों का सामना कर रहीं थेरसा मे को इस वर्ष राहत मिली. महीनों की चर्चा के बाद आखिरकार जून में यूरेापीय संघ से ब्रिटेन के बाहर आने संबंधी विधेयक कानून बन गया और ब्रिटेन को यूरोपीय संघ छोड़ने की अनुमति मिली गयी.
हालांकि इस मामले में ब्रिटेन का संसद बंटा नजर आया और यूरोपीय संघ से अलग होने के लिए जो मसाैदा प्रस्तावित किया गया था, उससे असहमत होते हुए ब्रेक्जिट मंत्री डोमिनिक राब ने नवंबर में अपने पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि ब्रेक्जिट समझौते से नाखुश थेरेसा मे की पार्टी के ही 48 सांसदों ने उनके खिलाफ अविश्वास पत्र दिया था, जिसे इसी दिसंबर में उन्होंने जीत लिया. कंजर्वेटिव पार्टी के कुल 317 सांसदों में से 200 ने उनके पक्ष में जबकि 117 ने विपक्ष में मत दिया.
ब्रेक्जिट को लेकर थेरेसा मे ने जीता विश्वास मत
यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर आने यानी ब्रेक्जिट को लेकर कठिनाइयों का सामना कर रहीं थेरसा मे को इस वर्ष राहत मिली. महीनों की चर्चा के बाद आखिरकार जून में यूरेापीय संघ से ब्रिटेन के बाहर आने संबंधी विधेयक कानून बन गया और ब्रिटेन को यूरोपीय संघ छोड़ने की अनुमति मिली गयी.
हालांकि इस मामले में ब्रिटेन का संसद बंटा नजर आया और यूरोपीय संघ से अलग होने के लिए जो मसाैदा प्रस्तावित किया गया था, उससे असहमत होते हुए ब्रेक्जिट मंत्री डोमिनिक राब ने नवंबर में अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
हालांकि ब्रेक्जिट समझौते से नाखुश थेरेसा मे की पार्टी के ही 48 सांसदों ने उनके खिलाफ अविश्वास पत्र दिया था, जिसे इसी दिसंबर में उन्होंने जीत लिया. कंजर्वेटिव पार्टी के कुल 317 सांसदों में से 200 ने उनके पक्ष में जबकि 117 ने विपक्ष में मत दिया.
वैश्विक मंदी की आशंका
इस वर्ष अमेरिकी बैंक लेमैन ब्रदर्स के कर्ज में डूब जाने और उसके बाद वैश्विक मंदी आने के 10 साल पूरे हुए थे. इस बीच ऐसी स्थितियां बनी हैं वैश्विक अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. विशेषज्ञों की मानें तो आर्थिक संकट गहराने के आसार हैं, जिससे संपूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ सकती है.
वित्तीय नीतियां, जो अमेरिकी वार्षिक वृद्धि दर की दो प्रतिशत की क्षमता को तीव्र करने के लिए प्रयोग में हैं, वे अस्थिरता पैदा कर रही हैं. अमेरिकी व्यापार युद्ध के अभी और बढ़ने के आसार हैं, जिससे निश्चित रूप से वृद्धि धीमी होगी और मुद्रास्फीति बढ़ेगी.
इससे बेरोजगारी का दबाव बढ़ेगा और ब्याज दरों में उच्च वृद्धि की जायेगी. इससे दुनिया में वृद्धि दर धीमी होने की आशंका है, क्योंकि अमेरिकी संरक्षणवाद के खिलाफ बाकी देश भी कार्रवाई कर सकते हैं. उभरते बाजारों में पहले से ही अस्थिरता है, ऐसे में संरक्षणवादी नीति व कड़ी मौद्रिक स्थितियां उभरते बाजारों को परेशान करेंगी. मौद्रिक नीतियों और व्यापार युद्ध के कारण यूरोप की आर्थिक वृद्धि भी धीमी होगी. इटली जैसे देशों की लोक-लुभावन नीतियां भी, यूरोजोन के भीतर अस्थिर ऋण गतिशीलता पैदा करेंगी.
ऐसे में एक और वैश्विक मंदी इटली और दूसरे देशों को यूरोजाेन से बाहर आने के लिए उकसा सकती है. फिलहाल वैश्विक बाजार अस्थिर है. अमेरिका की प्राइस-टू-अर्निंग अनुपात 50 प्रतिशत से अधिक है व निजी इक्विटी वैल्यूएशन भी अत्यधिक हो है. ऐसे में निवेशक यह मान रहे हैं कि यह आर्थिक तेजी धीमी होनी शुरू हो जायेगी. एक बार सुधार होने के बाद संपत्तियों के न बिकने व कम दाम से संकट ज्यादा गहरायेगा.
अमेजन के जंगलों पर संकट
अमेजन के जंगलों को लेकर हाल ही में ब्राजील के निर्वाचित राष्ट्रपति जाइर बोलसोनारो ने जोे संकेत दिये हैं, वे पर्यावरण के लिए बेहद घातक साबित हो सकते हैं. अमेजन के जंगलों को खनन, खेती व बांध बनाने की छूट देने के लिए बोलसोनारो कानून में बदलाव करेंगे. हाल ही में एक साक्षात्कार के दौरान ब्राजील के प्रस्तावित कृषि मंत्री तेरेजा क्रिस्टीना ने पुष्टि की कि अमेजन के जंगल के एक बड़े भू-भाग (लगभग फ्रांस जितना बड़ा) को भूमि रूपांतरण के लिए खाेला जायेगा.
अमेजन के लिए यह बेहद चिंतावाली बात है, क्योंकि इस जंगल की कटाई को रोकने की तमाम राजनीतिक कोशिशों के बावजूद ताजा आंकड़े बताते हैं कि इस वन की कटाई में इजाफा ही हुआ है. विश्व के इस सबसे बड़े जंगल की कटाई में ब्राजील पहले ही रिकॉर्ड कायम कर चुका है.
हाल ही में एक सेटेलाइट इमेज से यह पता चला है कि बीते एक साल की अवधि में इस जंगल के करीब 8,000 वर्ग किलोमीटर के इलाके (मेक्सिको सिटी से पांच गुना ज्यादा) से पेड़ काटे जा चुके हैं. अगर बोलसोनारो अपने इरादे पर अटल रहे तो न सिर्फ इस वन में रह रहे विविध प्रजातियों पर इसका असर पड़ेगा बल्कि वैश्विक पर्यावरण व महासागर की धाराओं (ओशन करेंट) पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा.
श्रीलंका में तख्तापलट
आर्थिक संकट का सामना कर रहे श्रीलंका में लगभग दो महीने तक राजनीतिक उथल-पुथल मचा रहा और उसे सक्रिय सरकार के बिना रहना पड़ा. राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने नीतिगत मुद्दों पर मतभेदों के चलते प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था. राजपक्षे की सत्ता में वापसी से आशंका थी कि चीन अब श्रीलंका पर अपनी पकड़ मजबूत करेगा, क्योंकि वे चीन करीबी माने जाते हैं.
महिंदा राजपक्षे के शासनकाल में श्रीलंका, चीन का करीबी था. चीन ने श्रीलंका में गृहयुद्ध के खत्म होने के बाद लाखों डॉलर खर्च किये थे. लेकिन देश में राहत की स्थिति आयी, जब श्रीलंका की उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति सिरिसेना के फैसले को 16 दिसंबर को खारिज कर दिया और रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद पर बहाल कर दिया. विक्रमसिंघे भारत समर्थक माने जाते हैं. भारत के लिए श्रीलंका हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर महत्वपूर्ण देश है.
मालदीव में बनी सोलिह सरकार
इस साल भारी उथल-पुथल के बीच मालदीव में राष्ट्रपति चुनाव किये गये. इनके परिणामों में विपक्ष के उम्मीदवार इब्राहीम मोहम्मद सोलिह ने जीत हासिल की और मालदीव के सातवें राष्ट्रपति के रूप में चुने गये. सोलिह ने विवादास्पद निवर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को हराकर यह जीत हासिल की थी.
चुनावों के पहले यहां तक आशंका थी कि यामीन जीत हासिल करने के लिए चुनावों में गड़बड़ियां कर सकते हैं. मोहम्मद सोलिह की जीत उनके समर्थन की वजह से नहीं हुई, अपितु अब्दुल्ला यामीन की विरोध में चल रही हवा के कारण हुई. मोहम्मद सोलिह की जीत की घोषणा होने के बाद पूरे मालदीव में जश्न मनाया गया था. चुनावों में यामीन के सामने विपक्ष द्वारा समर्थित सोलिह के अलावा कोई बतौर उम्मीदवार नहीं खड़ा हुआ था.
इसका साफ कारण यह था कि ज्यादातर लोगों को यामीन सरकार ने जेल में ठूंस दिया था. अब्दुल्ला यामीन ने राजनीतिक पार्टियों, अदालतों और मीडिया पर कार्रवाई की थी. इस दौरान, यामीन के खिलाफ महाभियोग की कोशिश कर रहे सांसदों पर भी कार्रवाई की गयी. और जब सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने का आदेश दिया था, तब यामीन सरकार ने चीफ जस्टिस को भी जेल में डाल दिया और फरवरी महीने में 15 दिन के लिए आपातकाल भी लगा दिया था.
मरान खान बने प्रधानमंत्री
इसी 25 जुलाई को पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली व प्रांतीय एसेंबली के लिए चुनाव हुए. नेशनल एसेंबली के लिए हुए चुनाव में इमरान खान के नेतृत्ववाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. इस जीत के साथ ही इमरान पाकिस्तान के इतिहास के पहले ऐसे राजनेता बने जिन्होंने देश के पांचों प्रांतों में जीत दर्ज की. इस जीत के बाद 6 अगस्त को पीटीआई ने आधिकारिक तौर पर प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में उनका चुनाव किया. 17 अगस्त को 176 मतों के साथ वे देश के 22वें प्रधानमंत्री बन गये.
नवाज शरीफ को जेल
इसी महीने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पनामा पेपर धांधली मामले में अदालत ने सात वर्ष की सजा सुनायी. इससे पहले सऊदी अरब में अपनी अल अजीजिया स्टील मिल के लिए आय का स्रोत साबित करने में विफल रहने पर अदालत ने उन्हें सात वर्ष की सजा सुनायी थी, लेकिन आय का स्रोत बताने पर अदालत ने इस मामले में कुछ ही दिन पहले उन्हें बरी कर दिया था. वर्ष 2001 में इस मिल की स्थापना हुई थी.

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