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डॉ राम मनोहर लोहिया की 50वीं पुण्यतिथि पर विशेष : “ मैं हिंदी में बोलूंगा नहीं तो लोहिया मुझसे लड़ेगा”

प्रो.राजकुमार जैन पूर्व प्राध्यापक, दिल्ली विवि साल 1963 में हिंदुस्तान के चार क्षेत्रों में उपचुनाव हुए थे. पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे. संसद में कांग्रेस व विशेष रूप से नेहरू जी का इतना दबदबा था कि विपक्ष का कोई अस्तित्व नहीं था. जो कुछ मुट्ठी भर विपक्ष के सांसद थे वे भी दबे-सहमे […]

प्रो.राजकुमार जैन
पूर्व प्राध्यापक, दिल्ली विवि
साल 1963 में हिंदुस्तान के चार क्षेत्रों में उपचुनाव हुए थे. पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे. संसद में कांग्रेस व विशेष रूप से नेहरू जी का इतना दबदबा था कि विपक्ष का कोई अस्तित्व नहीं था. जो कुछ मुट्ठी भर विपक्ष के सांसद थे वे भी दबे-सहमे से नजर आते थे.
इस माहौल में चार संसदीय क्षेत्रों में विपक्ष ने आपसी एकता कर अमरोहा से आचार्य कृपलानी, फरूर्खाबाद से डॉ राम मनोहर लोहिया, जौनपुर से पंडित दीन दयाल उपाध्याय तथा बनासकांठा से मीनू मसानी को चुनाव में खड़ा कर दिया. आचार्य कृपलानी,डॉलोहिया और मीनू मसानी चुनाव जीत गए. जबकि जनसंघ के पंडित दीन दयाल चुनाव हार गये.
दिल्ली के गांधी ग्राउंड में तीनों विजेताओं के नागरिक अभिनंदन में एक सभा आयोजित की गयी थी. डॉ लोहिया के गांधी ग्राउंड में आने की सूचना से हम समाजवादी साथी बहुत ही आनंदित थे. सभा शुरू होने से पहले ही हम सब साथी मंच के पास पहुंच गये.
ताकि डॉ साहब को नजदीक से देख और सुन सकें. दादा कृपलानी ने सभा में कहा, “ मैं हिंदी में बोलूंगा नहीं तो लोहिया मुझसे लड़ेगा” श्री प्रेमचंद गुप्ता भूतपूर्व सदस्य दिल्ली विधानसभा मंच का संचालन कर रहे थे. उन्होंने जैसे ही लोहिया का नाम लिया और स्वागत किया तो तालियों की गड़गड़ाहट से मैदान गूंज उठा.
हमने डॉ लोहिया जिंदाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए. मंच से किसी ने कहा आचार्य कृपलानी जिंदाबाद के भी नारे लगाओ. तब हमने आचार्य कृपलानी जिंदाबाद के नारे लगाने शुरू दिये. डॉ साहब ने अपने भाषण में क्या-क्या कहा था. वह पूरी तरह तो याद अब नहीं है. लेकिन कुछ बातें अभी भी दिल और दिमाग में है. उन्होंने कहा था, “ कुछ लोग कहते हैं कि मैं संसद में हुल्लड़ मचाता हूं.
यह गलत इल्जाम है मुझपर. हुल्लड़ मचाने की तबियत का आदमी नहीं हूं. परंतु एक बात तय है कि जिन साधारण लोगों ने मुझे चुनकर भेजा है,उनकी बात मैं संसद में जरूर उठाऊंगा. अगर सरकार मुझे रोकने की कोशिश करेगी तो मैं और जोर से अपनी बातें कहूंगा. अब मैं आपसे पूछता हूं क्या यह हुल्लड़बाजी होगी? अगर मुझे बात कहने से रोका गया तो मैं न चाहते हुए भी ऐसा करने पर मजबूर होऊंगा.
डॉ लोहिया ने कहा था कि जिस सदन के लिए मैं चुना गया हूं उसकी शोभा तभी तक है जब तक देश की शोभा बची रहती है. देश और संसद को अलग-अलग देखने का नजरिया अगर चलता रहेगा तो मामला बिगड़ता जाएगा. इसलिए देश और संसद दोनों की शोभा को बनाकर रखना है. उस सभा में डॉ लोहिया की हर बात पर जोर से तालियां बजती थी. डॉ लोहिया ने लड़कपन और जवानी स्वतंत्रता संग्राम में झोंक दी थी.
सत्ता प्रतिष्ठानों,बंधी-बंधाई सड़ी-गली मान्यताओं के विरूद्ध सीधी-सपाट तर्कपूर्ण विचारों से लैस होने पर ही लोहिया टकराते थे. इसी स्पष्टवादिता और निर्भीकता के कारण सत्ता प्रतिष्ठानों,भद्रलोक व नकली बुद्धिजीवियों द्वारा उनको अपमानित किए जाने का प्रयास उन दिनों चलता था. उन्हें पागल,असभ्य, कुंठित, अमर्यादित जैसे विशेषणों से चिह्नित किया जाता था.
परंतु जैसा डॉ लोहिया ने कहा था, किसी भी आदमी का मूल्यांकन उसकी मौत के तीन सौ साल या कमसे कम सौ साल बाद ही होता है. यानी वक्ती प्रसिद्धि जब नहीं रहती. आज उनकी भविष्यवाणी सिद्ध हो रही है. वे एक मौलिक चिंतक थे. मानव जीवन का कोई ऐसा विषय नहीं है जिस पर उन्होंने विचार न किया हो.

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