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ब्लू-व्हेल जैसे ऑनलाइन गेम : मनोरंजन का जरिया या मौत का सामान

तकनीक ने जहां हमारे जीवन को बेहतर बनाने में बड़ी भूमिका निभायी है, वहीं इसने कई चिंताजनक समस्याएं भी पैदा की है. इंटरनेट के प्रसार के साथ ऑनलाइन गेम का विस्तार हुआ, पर इसके अनेक खेल अब मनोरंजन करने की जगह जानलेवा होने लगे हैं. रूस से शुरू हुआ ब्लू-व्हेल चैलेंज अब भारतीय किशोरों के […]

तकनीक ने जहां हमारे जीवन को बेहतर बनाने में बड़ी भूमिका निभायी है, वहीं इसने कई चिंताजनक समस्याएं भी पैदा की है. इंटरनेट के प्रसार के साथ ऑनलाइन गेम का विस्तार हुआ, पर इसके अनेक खेल अब मनोरंजन करने की जगह जानलेवा होने लगे हैं. रूस से शुरू हुआ ब्लू-व्हेल चैलेंज अब भारतीय किशोरों के लिए घातक हो चुका है. ऑनलाइन गेम के कहर से बच्चों और किशोरों को बचाने की बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई है. इस मसले के विभिन्न पक्षों पर विमर्श के साथ प्रस्तुत है आज का इन-दिनों…
पवन दुग्गल
साइबर लॉ विशेषज्ञ
देखिए ब्लू व्हेल चैलेंज के बहुत जबरदस्त खतरे हैं. पहला खतरा तो यह है कि बच्चे अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं. दूसरा, अगर बच्चे अवसाद में हैं, तो जाहिर सी बात है कि वे इस तरह के गेम से भाग नहीं सकते और इसके जाल में फंसते चले जाते हैं.
इस गेम से जुड़ा जो तीसरा खतरा है वह यह है कि अधिकांश बच्चों को यह पता ही नहीं होता है कि वे छत से नीचे कूद रहे हैं अौर जाने-अनजाने अपना भविष्य बर्बाद कर रहे हैं. वहीं, बच्चों के माता-पिता भी इस बात से अनभिज्ञ हैं कि बच्चाें को सही राह दिखाने के लिए ऐसी स्थिति में उन्हें क्या करना है. तो कई सारे ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर चर्चा करने की जरूरत है.
इस परेशानी का हल अगर कानून के जरिये निकालने की बात करें, तो उससे कुछ खास होनेवाला नहीं है. भारत का आइटी एक्ट 2000 इस संदर्भ में बिल्कुल काम नहीं करता है.
इसलिए इन परिस्थितियों से बचाव के लिए बच्चों को ज्यादा से जागरुक बनाने और माता-पिता को सजग बनाये जाने की आवश्यकता है. मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि ऑनलाइन उपलब्ध होने वाले इस तरह के डेटा को लेकर सरकार को नियामक बनाने की आवश्यकता है. इसके लिए सरकार को सूचना प्रस्तुति में संशोधन करने की जरूरत है ताकि ऑनलाइन गेम के रेगुलेशन को कवर किया जा सके.
दूसरे, जितने भी सर्विस प्रोवाइडर हैं सरकार को उन्हें दिशा-निर्देश देने की जरूरत है. वर्तमान में ऐसा करने में सरकार कामयाब नहीं हो पा रही है.
उसे सर्विस प्रोवाइडरों को यह निर्देश देना होगा कि वे इस बात को सुनिश्चित करें कि उनके प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल दुरुपयोग को बढ़ावा देने के लिए नहीं होगा. इसके अतिरिक्त, ज्यादा से ज्यादा अवेयरनेस प्रोग्राम बनाने की जरूरत है. बच्चों को जागरूक करने के लिए स्कूलों को लगातार उन्हें इस तरह के खतरे के बारे में बताते रहने की जरूरत है. इन सब कदमों को उठाकर ही इस चुनौती का सामना किया जा सकता है.
यहां सवाल यह भी है कि जब बच्चों के हाथ में मोबाइल रहेगा तो हम चाहे उन्हें जितना भी समझाने की, रोकने की कोशिश करें, लेकिन जब वो अकेला होगा तो इस तरह के कंटेंट के संपर्क में आयेगा ही. तो इससे बचने का एकमात्र यही उपाय है बच्चों को मोबाइल दिलवाने से पहले उन्हें इससे जुड़े खतरे के बारे में बता दिया जाये. उन्हें मोबाइल देते वक्त यह बताया जाये कि मोबाइल इस्तेमाल करने का मतलब एक तरह से गहरे पानी में उतरना है.
तो जिस तरह हम गहरे पानी में उतरने से पहले तैरना सीखते हैं, ठीक इसी तरह मोबाइल यूज करने से पहले उन्हें तैरना सीखना है यानि इससे जुड़े खतरों से अपना बचाव करना सीखना है. यहां बच्चों को यह भी बताने की आवश्यकता है कि उनके लिए क्या सही है और गलत. उन्हें कौन सी सूचना हासिल करनी है और कौन सी नहीं. ये सारी बातें जागरूकता से जुड़ी हुई हैं.
बच्चों को बचाने के लिए उन्हें जागरूक तो करना ही होगा. इसके लिए अगर हम कानून की राह देखेंगे तो हमारा बहुत नुकसान हो जायेगा, बहुत देर हो जायेगी. इस गेम के कारण पहले ही कई जानें जा चुकी हैं, देरी से कई और जानें चली जायेंगी. इस गेम को खेलने से बच्चों को रोकने के लिए, इसके बारे में जागरुकता फैलाने के लिए हमें बहुमुखी सोच अपनानी होगी.
नेटवर्किंग अवेयरनेस के जरिये भी इस परेशानी से बाहर निकला जा सकता है. इसके लिए सरकार व समाज दोनों स्तरों पर काम करने की जरूरत है. सरकार को ऑनलाइन प्रोडक्ट, व्हाट्सअप, सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म के जरिये होने वाली आपराधिक गतिविधियों पर साइबर क्राइम के जरिये रोक लगाना सुनिश्चित करना होगा. ऐसा करना इसलिए जरूरी है क्योंकि साइबर अपराधी बच्चों को निशाना बना रहे हैं.
दूसरे, बच्चों को जागरूक करने के लिए स्कूलों में पहली क्लास के बाद से ही साइबर लॉ और साइबर सुरक्षा एजुकेशन की पढ़ाई शुरू करनी होगी. क्योंकि आज के जमाने में बच्चों को इंटरनेट से दूर नहीं रखा जा सकता. तो ऐसे में बेहतर यही है कि इसके बारे में उन्हें शिक्षित किया जाये, उनके हाथों को सशक्त बनाया जाये ताकि वे इन परेशानियों से खुद ही अपना बचाव कर सकें.
आज इस बात को लेकर भी दुविधा है कि ब्लू व्हेल चैलेंज के कारण हाेनेवाली आत्महत्या की घटनाएं किस तरह के अपराध की श्रेणी में आयेंगी.
तो मेरी समझ से निश्चित तौर पर यह साइबर क्राइम है क्योंकि इस गेम की वजह से ही आत्महत्या की गयी है. इसके लिए तमाम तरह की इलेक्ट्रॉनिक जानकारी का इस्तेमाल हुआ और कम्युनिकेशन किया गया. इलेक्ट्रॉनिक तरीके से लोगों को परेशान किया गया, उन्हें फॉलो किया गया. इस तरह यह साइबर क्राइम का ही हिस्सा है.
इस गेम को रोकना अभी इसलिए बहुत मुश्किल है, क्योंकि इसे दूर से बैठकर संचालित किया जा रहा है. इसके संचालक अज्ञात बने रहते हैं. ये एडमिनिस्टर्स कभी भी खुलकर सामने नहीं आते, बल्कि उनकी सिर्फ छवि दिखाई देती है और वह भी विभिन्न पर्दों के पीछे छुपी होती है.
तो एेसे में उनकी पहचान करना बड़ा मुश्किल है. यहां बचाव का उपाय यह है कि जब तक एडमिनस्टर्स की पहचान नहीं हो जाती है तब तक उनके टार्गेट यानी बच्चों को अवेयर किया जाये. इसके साथ ही माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करें.
बच्चों को कभी ऐसा नहीं लगना चाहिए कि उनके माता-पिता के पास उनके लिए समय नहीं है. ऐसे में बच्चों के साथ जितना अधिक क्वालिटी टाइम स्पेंड किया जायेगा, उतना ही उनके भीतर आत्मविश्वास पैदा होगा. वह माता-पिता के साथ, परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अपनी बात शेयर करेगा और गेम का टार्गेट होने से बच जायेगा. इन सब एहतियातों को बरतकर बच्चों को जानलेवा गेम के जाल में फंसने से बचाया जा सकता है.
भारत में अब तक जा चुकी है कई जानें
6 जुलाई, 2017 को ब्लू व्हेल चैलेंज के कारण तिरुअनंतपुरम के एक 16 वर्षीय लड़ने ने आत्महत्या कर ली. ब्लू व्हेल गेम के कारण भारत में होनी वाली संभवत: यह पहली आत्महत्या थी.
30 जुलाई, 2017 को मुंबई के एक 14 वर्षीय लड़के ने पांचवी मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी.
10 अगस्त, 2017 को इंदौर के सातवीं क्लास के एक बच्चे को उसके सहपाठियों ने तब बचा लिया जब वह तीसरी मंजिल से कूदकर अपनी जान देने की कोशिश कर रहा था.
12 अगस्त, 2017 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में दसवीं क्लास के एक किशोर ने बाथरूम में जाकर एक रस्सी से अपने गले को कस कर जान दे दी.
16 अगस्त, 2017 को 22 वर्षीय एक युवा ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. परिवार वालों के अनुसार, फांसी लगाने का कारण ब्लू व्हेल चैलेंज था.
20 अगस्त, 2017 को ओडिशा के संभलपुर में दसवीं में पढ़नेवाली 15 वर्षीय एक छात्रा ने पंखे से लटक कर अपनी जान दे दी.
27 अगस्त, 2017 को उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के क्लास छठी के 13 वर्षीय छात्र ने फांसी लगा ली.
30 अगस्त, 2017 को तमिलनाडु के मदुरै में एक 19 वर्षीय कॉलेज छात्र ने फांसी लगा कर जान दे दी.
1 सितंबर, 2017 को पुद्दुचेरी यूनिवर्सिटी के एक विद्यार्थी ने इस गेम के टास्क पूरा करते हुए पेड़ पर फांसी लगा ली.
1 सितंबर, 2017 को गुवाहाटी की दसवीं में पढ़नेवाली एक लड़की को उसके असामान्य व्यवहार के कारण गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया. लड़की के हाथ पर ब्लू व्हेल बना हुआ है.

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