23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

चुनाव से पहले चुनाव के बाद

सेंट्रल डेस्क आम चुनाव की घोषणा के बाद सेंसेक्स, निफ्टी शिखर छू रहे हैं. बाजार खुश. निवेशक खुश. लोकलुभावन घोषणाओं से जनता भी खुश है. चुनाव के बाद यह खुशी बरकरार रहेगी, कहना मुश्किल है. विशेषज्ञों की मानें, तो जिस तरह चुनाव से पहले सरकार ने दोनों हाथों से जनता पर सौगातों की बारिश की, […]

सेंट्रल डेस्क

आम चुनाव की घोषणा के बाद सेंसेक्स, निफ्टी शिखर छू रहे हैं. बाजार खुश. निवेशक खुश. लोकलुभावन घोषणाओं से जनता भी खुश है. चुनाव के बाद यह खुशी बरकरार रहेगी, कहना मुश्किल है. विशेषज्ञों की मानें, तो जिस तरह चुनाव से पहले सरकार ने दोनों हाथों से जनता पर सौगातों की बारिश की, चुनाव के बाद कई हाथों से लूटना शुरू कर देगी.

दरअसल, चुनाव के पहले वोटरों को लुभाने के लिए सत्ताधारी पार्टी की मजबूरी होती है कि वे लोकलुभावन घोषणाएं करें. महंगाई कम करने के लिए गोदामों से अनाज निकलने लगते हैं. इसके असर से खाद्यान्न की कीमतें घटती हैं. भोजन का अधिकार देकर सरकार ने सस्ता अनाज देने का रास्ता तैयार किया. इससे सरकारी खजाने पर एक लाख करोड़ से ज्यादा का बोझ पड़ेगा. लोग खुश हैं कि सस्ता अनाज मिलेगा. लेकिन, इससे खजाने पर जो दबाव बढ़ेगा, उसकी भरपाई होगी जनता से. चुनाव के में खाली होनेवाले खजाने की भरपाई जनता की जेब से ही होगी.

यानी चुनाव से पहले सरकार ने एक हाथ से दिया, चुनाव के बाद कई अदृश्य हाथों से वसूल लेगी. यही वजह है कि कल तक जो सरकार डीजल, पेट्रोल, केरोसिन, एलपीजी की सब्सिडी के बोझ के तले दबी जा रही थी. सब्सिडी खत्म करने के लिए मरी जा रही थी. धीरे-धीरे डीजल के दाम आठ रुपये तक बढ़ा दिये. एलपीजी की कीमतें बढ़ा दीं, चुनाव आते ही साल में छह सस्ते सिलिंडर की जगह उसे बढ़ा कर पहले नौ और फिर बाद में 12 कर दिये. एक्साइज डय़ूटी घटा दी, ताकि वाहनों और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की बिक्री बढ़ जाये. यह सब चुनाव के बाद भी जारी रहेगी, ऐसा नहीं है. आचार संहिता लागू होने के साथ उत्पादक कार्य बंद हो जाते हैं. सरकारी खजाना खाली होता जाता है. फिर जब नयी सरकार बनती है, तो इतने दिनों में खाली हुए खजाने को भरने की कोशिशें शुरू हो जाती हैं.

और इसकी भरपाई के लिए आम आदमी की जेब से बेहतर और कोई जगह नहीं होती, क्योंकि चुनाव से पहले उद्योगपतियों से चंदा लेकर पार्टियां उनके एहसानों तले दबी होती हैं. सो उन पर टैक्स का बोझ नहीं डाल सकतीं. चुनाव कराने पर अरबों खर्च होते हैं. इस बार चुनाव आयोग का बजट एक हजार करोड़ के पार हो गया है. चुनाव खर्च का असर राज्यों की वित्तीय सेहत भी प्रभावित करता है. उदाहरण के लिए वर्ष 2009 के आम चुनाव की बात करें, तो बंगाल, यूपी व महाराष्ट्र सरकार को क्रमश: 150, 70 और 155 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े थे. दूसरी ओर, प्रचार में वाहनों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है. नेता के साथ काफिला चलता है. रैलियों में लोगों को लाने-ले जाने के लिए वाहन लगाये जाते हैं. डीजल-पेट्रोल की खपत बढ़ती है. बाजार की मानें, तो यह खपत 40 फीसदी तक बढ़ जाती है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें