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महान क्रांतिकारी का जाना

फिदेल कास्त्रो के नेतृत्व में 1950 के दशक के शुरुआती सालों में विद्रोहियों की एक छोटी टुकड़ी जनरल बतिस्ता की तानाशाही के खिलाफ संघर्षरत थी. ज्यादातर विद्रोही मारे गये और फिदेल गिरफ्तार हुए. वर्ष 1953 में सुनवाई के दौरान इस युवा वकील ने एक यादगार भाषण दिया था जिसकी आखिरी पंक्तियां इस प्रकार थीं- ‘मुझे […]

फिदेल कास्त्रो के नेतृत्व में 1950 के दशक के शुरुआती सालों में विद्रोहियों की एक छोटी टुकड़ी जनरल बतिस्ता की तानाशाही के खिलाफ संघर्षरत थी. ज्यादातर विद्रोही मारे गये और फिदेल गिरफ्तार हुए. वर्ष 1953 में सुनवाई के दौरान इस युवा वकील ने एक यादगार भाषण दिया था जिसकी आखिरी पंक्तियां इस प्रकार थीं- ‘मुझे सजा दो. मुझे इसकी परवाह नहीं है. इतिहास मुझे सही साबित करेगा.’ अगले साल उन्हें रिहा किया गया और उन्होंने फिर से विद्रोह की कमान संभाल ली. उसके बाद से आज तक का विश्व इतिहास कास्त्रो के कारनामों और उपलब्धियों के उल्लेख से भरा है. नब्बे साल की उम्र में दुनिया से कूच करनेवाले कास्त्रो की महानता इस बात से सिद्ध होती है कि आज उनके विरोधी भी उनके योगदानों की चर्चा कर रहे हैं. उनका जाना निश्चित रूप से एक युग का विराम है. भारत तथा दुनिया के विकासशील और अविकसित देशों ने अपना एक हमदर्द साथी खो दिया है. वैश्विक शांति और न्याय के पक्षधरों ने अपना सरपरस्त खो दिया है. इस महान क्रांतिकारी नेता की स्मृति में आज की यह विशेष प्रस्तुति…

भारत के घनिष्ठ मित्र थे फिदेल कास्त्रो

महान क्रांतिकारी और क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो के निधन पर भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य वरिष्ठ राजनेताओं द्वारा दी जा रही भावभीनी श्रद्धांजलि संवेदना की रस्मी अभिव्यक्ति भर नहीं है. राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने फिदेल कास्त्रो को भारत का घनिष्ठ मित्र कहा है. पिछले छह दशकों से अधिक समय से क्यूबा और भारत के बीच गहरी दोस्ती रही है. क्यूबा के आड़े वक्तों में भारत ने मदद का हाथ बढ़ाया है, तो क्यूबा ने भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हमेशा भारत का साथ दिया है.

वर्ष 1959 में फिदेल कास्त्रो के नेतृत्व में हुई क्रांति के तुरंत बाद क्यूबा की नयी सरकार को मान्यता देनेवाले देशों में भारत भी था. उसी साल क्रांति के अग्रणी योद्धा और फिदेल के करीबी सहयोगी चे ग्वेरा भारत की ऐतिहासिक यात्रा पर आये थे. दशकों तक इस यात्रा के बारे में जानकारियां सार्वजनिक नहीं हो पायी थीं. वर्ष 2007 में वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने चे ग्वेरा की उस यात्रा के दस्तावेज और चित्रों के आधार पर लेख लिखा था. ग्वेरा की यात्रा का उद्देश्य सहानुभूति रखनेवाले उन देशों से नयी सरकार के लिए समर्थन और सहयोग जुटाना था जो स्वतंत्रता के साथ अपनी विदेश नीतियां तैयार कर रहे थे. उस समय तक भारत गुट निरपेक्ष आंदोलन का अगुवा बन चुका था. चे ग्वेरा ने क्यूबा लौट कर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दृष्टिकोण की खूब प्रशंसा की थी. उन्होंने लिखा था कि ‘निःसंदेह क्यूबा और भारत भाई-भाई हैं, और परमाणु विखंडन और अंतरग्रहीय मिसाइलों के मौजूदा युग में पूरी दुनिया के लोगों के बीच यही संबंध बनना चाहिए.’ इस दौरे के कुछ समय बाद ही जनवरी, 1960 में भारत ने क्यूबा की राजधानी हवाना में अपना दूतावास खोल दिया था.

बाद के वर्षों में भारत और क्यूबा के राजनीतिक और आर्थिक संबंध मजबूत बनते चले गये. वर्ष 1960 में फिदेल कास्त्रो क्यूबा के प्रधानमंत्री के तौर पर संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में भाग लेने के लिए न्यूयॉर्क गये थे. अमेरिका के साथ तनावपूर्ण संबंधों के कारण बड़े होटलों ने उन्हें और उनके प्रतिनिधिमंडल को अपने यहां रखने से मना कर दिया था. तब कास्त्रो ने संघ मुख्यालय के प्रांगण में तंबू लगा कर रहने की चेतावनी दी थी, पर बाद में एक होटल ने उन्हें आमंत्रित किया था. उस होटल में अनेक देशों के नेताओं ने उनसे मुलाकात की थी. वर्षों बाद फिदेल कास्त्रो ने पूर्व विदेश मंत्री कुंवर नटवर सिंह को बताया था कि पंडित नेहरू सबसे पहले मिलने आये थे और उनके इस बड़प्पन को वे हमेशा याद रखते थे. कास्त्रो के अनुसार, ‘मेरी उम्र 34 साल थी और मैं बहुत जाना-पहचाना नहीं था. मैं तनाव में था. नेहरू ने मेरा हैसला बढ़ाया. मेरा तनाव दूर हो गया.’

नेहरू से शुरू हुई दोनों देशों की निकटता को इंदिरा गांधी के कार्यकाल में और तेजी मिली. वर्ष 1983 में कास्त्रो गुटनिरपेक्ष आंदोलन की अध्यक्षता भारत को सौंपने आये थे. मंच पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को गले लगाने की तसवीर अंतरराष्ट्रीय राजनीति के इतिहास की सबसे उल्लेखनीय छवियों में गिनी जाती है. उस अवसर पर कास्त्रो ने कहा था- ‘आज तीन सालों के बाद गुटनिरपेक्ष आंदोलन की बागडोर हमारे द्वारा प्रशंसित इंदिरा गांधी और उनके नेतृत्व में भारत को सौंपते हुए हम विश्वस्त हो सकते हैं कि इस आंदोलन की एकता कमजोर नहीं हुई है, उसका हौसला बढ़ा है तथा तमाम चुनौतियों के बावजूद उसकी स्वतंत्रता बरकरार है.’ उन्होंने भाषण के अंत में कहा कि ‘भारत की परिपक्वता, गुट निरपेक्ष आंदोलन के बुनियादी सिद्धांतों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता हमें भरोसा दिलाते हैं कि इंदिरा गांधी के बुद्धिमत्तापूर्ण नेतृत्व में गुट निरपेक्ष देश शांति, राष्ट्रीय स्वतंत्रता और विकास में अपनी जरूरी भूमिका का निर्वाह करते रहेंगे.’

इससे पहले दोनों नेताओं की अनेक मुलाकातें हो चुकी थीं. वर्ष 1973 के सितंबर में वियतनाम जाते समय इंदिरा गांधी ने उन्हें दिल्ली में रात्रिभोज पर आमंत्रित किया था. उस अवसर पर श्रीमति गांधी ने कहा था, ‘दुनिया के वंचितों के मसलों में उनकी रूचि ने क्यूबाई नेता को किंवदंती बना दिया और दुनिया के आदर्शवादियों- चाहे वे बुजुर्ग हों या युवा- का ध्यान अपनी ओर खींचा.’ वर्ष 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और 2006 में मनमोहन सिंह ने क्यूबा की यात्रा की थी. अक्तूबर, 2013 में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी क्यूबा के दौरे पर गये थे और फिदेल कास्त्रो से मुलाकात की थी.

कठोर अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण 1992 में क्यूबा को बड़े आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था. तब मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और कांग्रेस के प्रयासों से लोगों द्वारा जुटाये गये 10 हजार टन गेहूं और 10 हजार टन चावल क्यूबा भेजे गये थे. फिदेल कास्त्रो अनाज से लदे जहाज के स्वागत के लिए खुद मौजूद थे. उन्होंने इस सहयोग को ‘भारत की रोटी’ की संज्ञा दी थी, क्योंकि इस अनाज से क्यूबा के 1.10 करोड़ लोगों में हर एक को पावरोटी दी जा सकती है. वर्ष 2008 में भारत ने चक्रवात से हुई बरबादी के दौरान क्यूबा को 20 लाख डॉलर की नकद सहायता दी थी. उसी साल भारत ने 1.28 अरब रुपये का ब्याज समेत कर्ज भी माफ किया था. क्यूबा का स्वास्थ्य तंत्र दुनिया की बेहतरीन व्यवस्थाओं में गिना जाता है. दोनों देश इस क्षेत्र में परस्पर सहयोग को मजबूत बनाने के लिए प्रयासरत हैं.

हाल में भारत ने हवाना में सार्वजनिक यातायात के लिए 25 बसों का उपहार देने का प्रस्ताव भी रखा है. बीते दशकों में विज्ञान, तकनीक, संस्कृति और खेल में सहयोग के भी अनेक समझौते हुए हैं. वर्ष 2013 में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने फिदेल कास्त्रो से मुलाकात की थी. वह मुलाकात इसलिए अहम है कि तब कास्त्रो पांच महीनों से अपने घर में स्वास्थ्य-लाभ कर रहे थे और विदेशी अतिथियों से उनकी भेंट बहुत सीमित हो गयी थी. अंसारी ने बताया था कि भेंट के दौरान कास्त्रो ने बड़े प्यार से भारत से जुड़ी यादों को साझा किया. अब जब दोनों देश संबंधों में बेहतरी की ओर अग्रसर हैं, कास्त्रो की स्मृति इसको उत्साह देती रहेगी.

< प्रकाश के रे

फिदेल कास्त्रो का जीवन

< अगस्त, 1926 : पूर्वी क्यूबा के ग्रामीण इलाके बीरन में जन्म.

< जुलाई, 1953 : सेंतियागो डी क्यूबा में लोगों का नेतृत्व करते हुए उन्हें गिरफ्तार किया गया और 15 वर्षों की जेल की सजा सुनायी गयी. जनरल बतिस्ता पर हमला करते हुए उन्होंने एक ऐतिहासिक भाषण दिया था, जो ‘हिस्ट्री विल एबसोल्व मी’ के नाम से प्रसिद्ध हुई.

< जुलाई, 1955 : फिदेल और उनके साथियों को आम माफी देते हुए जेल से मुक्त कर मैक्सिको निर्वासित कर दिया गया. वहां फिदेल की मुलाकात अर्जेंटीना के क्रांतिकारी चे ग्वेरा से हुई. जनरल बतिस्ता को सत्ता से हटाने के लिए एक साल बाद वे फिर मैक्सिको से क्यूबा लौट आये और आंदोलन शुरू कर किया.

< जनवरी, 1959 : दो वर्षों से ज्यादा समय तक जारी आंदोलन के बाद जनरल बतिस्ता डोमिनिकन रिपब्लिकन भाग गया और फिदेल कास्त्रो को क्यूबा का प्रधानमंत्री घोषित कर दिया गया.

< जून, 1960 : अमेरिका के स्वामित्व में रही तेल रिफाइनरियों का क्यूबा ने अधिग्रहण कर लिया और उन सभी का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया.

< अक्तूबर, 1960 : खाद्य सामग्रियों और दवाओं के अलावा क्यूबा को किये जानेवाले अन्य सभी सामग्रियों के निर्यात को अमेरिका ने प्रतिबंधित किया.

< 16 अप्रैल, 1961 : कास्त्रो ने क्यूबा को समाजवादी राष्ट्र घोषित कर दिया.

< 17 अप्रैल, 1961 : अमेरिका के सीआइए द्वारा प्रशिक्षित और वित्तीय मदद प्राप्त क्यूबाई अमेरिकियों ने बे ऑफ पिग्स की ओर से क्यूबा की सरकार को सत्ताच्युत करने का प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहे.

< 7 फरवरी, 1962 : अमेरिका ने क्यूबा से किये जानेवाले सभी वस्तुओं के आयात पर पाबंदी लगा दी.

< अक्तूबर, 1962 : क्यूबा मिसाइल संकट- अमेरिका और सोवियत संघ के बीच जारी शीत युद्ध के दौर में ये दोनों ही देश अपने हितों के अनुकूल अन्य देशों में बैलिस्टिक मिसाइल तैनात करने की कोशिशों में जुटे थे. इटली और तुर्की में अमेरिकी बैलिस्टिक मिसाइलों की तैनाती के बाद तत्कालीन सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव ने क्यूबा में इनकी तैनाती के लिए कास्त्रो को राजी करते हुए मिसाइल लॉन्च फैसिलिटी की शुरुआत कर दी. अमेरिका को इसकी भनक लग गयी. एक समय तनाव इतना बढ़ गया था कि अमेरिका और सोवियत संघ के बीच परमाणु युद्ध की नौबत तक आ गयी थी. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपतियों जॉन एफ केनेडी व ख्रुश्चेव के बीच हुए समझौते के बाद इस कार्यक्रम को रद्द कर दिया.

< मार्च, 1968 : फिदेल कास्त्रो सरकार ने क्यूबा के सभी निजी उद्योगों और कारोबार को सार्वजनिक क्षेत्र के तहत अधिग्रहित कर लिया.

< फरवरी, 1980 : फिदेल ने दालिया सोतो डेल वेले नामक एक महिला शिक्षक से विवाह किया, जिसके साथ वर्ष 1961 से उनके संबंध कायम थे और वह उनके पांच बच्चों की मां थी.

< अप्रैल, 1980 : मेरिएल बोटलिफ्ट : क्यूबा के इतिहास में यह एक बड़ी घटना है, जब आगामी करीब छह माह तक यहां के मेरिएल हार्बर से लोग समुद्री जहाजों के जरिये अमेरिका पलायन कर गये. लगातार जारी आप्रवासन को देखते हुए दोनों देशों के बीच अक्तूबर, 1980 में आपसी समझौता किया गया, लेकिन तब तक करीब सवा लाख क्यूबा के नागरिक अमेरिका के फ्लोरिडा पहुंच चुके थे.

< अगस्त, 1990 : बर्लिन की दीवार के गिरने और सोवियत संघ के विखंडित होने के बाद क्यूबा में अन्न की किल्लत पैदा हुई, जिससे निपटने के लिए उन्होंने खास अभियान की शुरुआत की.

< अगस्त, 1994 : कास्त्रो ने एक बार फिर घोषणा कर दी कि देश छोड़ कर जानेवालों को नहीं रोका जायेगा और इस तरह 40,000 लोग अमेरिका चले गये.

< सितंबर, 2000 : संयुक्त राष्ट्र के शताब्दी शिखर सम्मेलन के दौरान फिदेल और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने हाथ मिला कर एक-दूसरे का अभिवादन किया. इस प्रकार वर्ष 1960 के बाद से फिदेल ने पहली बार किसी अमेरिकी राष्ट्रपति से हाथ मिलाया.

< जुलाई, 2006 : फिदेल की सेहत नियमित रूप से खराब रहने के कारण उनके छोटे भाई राउल कास्त्रो ने सत्ता का कार्यभार ले लिया.

< फरवरी, 2008 : फिदेल ने राष्ट्रपति पद से स्थायी रूप से इस्तीफा दे दिया और राउल ने कमान संभाली.

प्रस्तुति<कन्हैया झा

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