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ये जो रसगुल्ला है…

मिठाई के लिए दो बच्चों की लड़ाई तो आपने जरूर देखा होगा. मगर, दो राज्य – ओड़िशा और पश्चिम बंगाल- इस पर अपना हक जमाने के लिए लड़ रहे हैं, इसे अभी भी बहुत लोग नहीं जानते हैं. इस विवाद की जड़ में है रसगुल्ला. अब तक लोग यही समझते रहे हैं कि रसगुल्ला बंगाल […]

मिठाई के लिए दो बच्चों की लड़ाई तो आपने जरूर देखा होगा. मगर, दो राज्य – ओड़िशा और पश्चिम बंगाल- इस पर अपना हक जमाने के लिए लड़ रहे हैं, इसे अभी भी बहुत लोग नहीं जानते हैं. इस विवाद की जड़ में है रसगुल्ला. अब तक लोग यही समझते रहे हैं कि रसगुल्ला बंगाल की मिठाई है. एक दिलचस्प रिपोर्ट.

रोचक मामला

नदी के पानी पर अपना हक जमाने के लिए होनेवाले राज्यों के झगड़ों के बारे में हर साल हम कुछ-न कुछ सुनते-पढ़ते आ रहे हैं. यह आजमायी हुई बात है कि हक जमाने पर रार होना तय माना जाता है. ये जो नया झगड़ा आजकल खबर के रूप में सामने आ रहा है, वह है रसगुल्ला को अपना बनाने-बताने का. वर्ष 2010 में एक अंगरेजी समाचार पत्रिका ‘आउटलुक’ ने यह जानने के लिए देशभर में एक सर्वेक्षण कराया था कि लोग किस मिठाई को ‘राष्ट्रीय मिठाई’ का दर्जा देते हैं. सबसे ज्यादा लोगों ने रसगुल्ला के पक्ष में अपनी राय बतायी थी. यह सर्वेक्षण मुद्रा नामक एक एजेंसी ने किया था. इस सूूचना के मिलते ही पश्चिम बंगाल और ओड़िशा में होड़ शुरू हो गयी रसगुल्ला को अपना बताने की. यह विवाद वर्ष 2015 के मई महीने में सामने आया, जब ओडिशा सरकार ने कटक और भुवनेश्वर को जोड़ने वाले राजमार्ग पर स्थित पाहाल में मिलने वाले मशहूर रसगुल्ले को जीआइ(जीयोग्राफिकल आइडेंटिफिकेशन) टैग दिलाने के लिए कोशिशें शुरू कीं. जीआई वह आधिकारिक तरीका है जो किसी वस्तु के उद्गम स्थल के बारे में बताता है.

ओड़िशा और पश्चिम बंगाल के बीच इस झगड़े का हल पास आता दिख रहा है. पश्चिम बंगाल इस बात के लिए सहमत होता जा रहा है कि वह रसगुल्ले पर जीआइ टैग का दावा सिर्फ पश्चिम बंगाल तक रहेगा. हालांकि राज्य के खाद्य मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक आसानी से दावा त्यागने को तैयार नजर नहीं आ रहे हैं. वह तर्क देते हैं कि बंगाल का सादा रसगुल्ला ओड़िशा के रसगुल्ले से पूरी तरह भिन्न है. सरकार अपने इस तर्क के समर्थन में तथ्य जुटाने की कोशिश में लगी है. दूसरी तरफ ओड़िशा भी अपना हक जमाने के लिए प्राणपण से सारे तथ्य जमा कर रहा है. ओड़िशा सरकार ने तथ्यान्वेषण के लिए तीन सरकारी कमिटियां तक गठित कर दी हैं, जो अपने काम में लगी हैं. एक सरकारी कमिटी ने तो अपनी जांच-रिपोर्ट जमा भी कर दी है. इसी अभियान का नतीजा है- रसगुल्ला दिवस. सुनने में अजीब लगता है, पर यह सच है. राज्य के लोगों के के लिए यह प्रतिष्ठा का विषय बन गया है. ओड़िशा में किसी मिठाई के नाम पर कोई दिवस नहीं मनाया जाता था. अब पिछले दो वर्ष से श्रीजगन्नाथ रथयात्रा केे नीलाद्रि विजय के दिन रसगुल्ला दिवस मनाने की परंपरा प्रारंभ हुई है.

बंगाल का भी है दावा: मेरा है रसगुल्ला

ऐसी चर्चा है कि राज्य के मशहूर रसगुल्ला निर्माता केसी दास के वारिस मशहूर इतिहासकार हरिपद भौमिक की मदद से एक बुकलेट तैयार कराया जा रहा है, जो रसगुल्ले की पैदाइश बंगाल में होने की पुष्टि करेगी. ऐसे ही कई दस्तावेज चेन्नई स्थित बौद्धिक संपदा कार्यालय भी भेजे गये हैं. रसगुल्ले का आधुनिक और लोकप्रिय स्वरूप का श्रेय कोलकाता के नवीन चंद्र दास को जाता है. 1868 में दास ने ही पहली बार छैने की गोलियों को चाशनी में उबालकर रसगुल्ले को यह स्वरूप दिया था. इसके दो नतीजे हुए. यह मिठाई स्पंज की तरह हो गई और दूसरा, बनाने के बाद इसे लंबे समय तक रखना संभव हो गया. चेन्नई में जियोग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री कार्यालय को हाल ही में लिखे एक पत्र में राज्य के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और बागवानी विभाग ने कहा है कि जिस तरह से राज्य में इस मिठाई को बनाया जाता है वह अन्य राज्यों से अलग है. अधिकारी कहते हैं कि उदाहरण के तौर पर हमारे पास दार्जिलिंग चाय और हिमाचल के पास कांगड़ा चाय है. दोनों चाय है लेकिन स्वाद अलग है. दोनों का जीआइ टैग हो सकता है.

किसका पलड़ा भारी ?

फिलहाल ओड़िशा का पलड़ा दिखता है, चूंकि ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि पश्चिम बंगाल जीआइ टैग अपने राज्य तक ही सीमित रखने को तैयार है. कटक और भुवनेश्वर के बीच नेशनल हाइवे पर एक कस्बा है पहाल. यही वह जगह है, जहां हाइवे के दोनों तरफ रसगुल्ले का थोक बाजार लगता है.

ओड़िशा कहता है- मेरा है

रसगुल्ला विवाद पर बनी सरकारी समिति की शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक -“ बीते 600 वर्ष से राज्य के मठ-मंदिरों में लगाये जानेवाले भोग में आज भी रसगुल्ला ही जगह बनाये हुए है.” रथयात्रा के समय जब भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ श्रीमंदिर लौटते हैं , तो इसी दिन लक्ष्मीजी को मनाने के लिए वे प्रसाद के रूप में रसगुल्ला देते हैं. ओड़िशा के कवि बलरामदास ने अपनी काव्य-रचना ‘दांडी रामायण’ के अयोध्याकांड में भगवान के भोग में रसगुल्ला का जिक्र किया है. ओड़िशा का सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय रसगुल्ला को राज्य की भौगोलिक पहचान (जीआइ) से जोड़ने में लगा हुआ है. दस्तावेज इकट्ठा किये जा रहे हैं, जो साबित करेंगे कि ‘पहला रसगुल्ला’ भुवनेश्वर और कटक के बीच अस्तित्व में आया था.

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