!!अनिल साक्षी!!
श्रीनगर : जम्मू कश्मीर की जनता को आशा है कि भारत, पाकिस्तान के साथ की गयी सिंधु जल संधि को समाप्त कर देगा, जो पाक पर परमाणु बम गिराने के समान होगा. अगर जल संधि तोड़ा जाता है, तो भारत से बहने वाले नदियों के पानी को पाकिस्तान की ओर जाने से रोका जा सकता है. फिर पाकिस्तान में पानी के लिए हाहाकार मचेगा. सितंबर, 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के सैनिक शासक फील्ड मार्शल अयूब खान के बीच यह जल संधि हुई थी. इस जलसंधि के मुताबिक, भारत को जम्मू कश्मीर में बहने वाले तीन दरियाओं-सिंध, जेहलम और चिनाब के पानी को रोकने का अधिकार नहीं है. इनके पानी अधिक मात्रा में राज्य के वासी इस्तेमाल नहीं कर सकते.
इन दरियाओं पर बनाये जाने वाले बांधों के लिए पहले पाकिस्तान की अनुमति लेनी पड़ती है. इस जलसंधि ने जम्मू कश्मीर के लोगों को परेशानियों के सिवाय कुछ नहीं दिया है. पूर्व मुख्यमंत्री डॉ फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला पिछले कई सालों से इस जल संधि को तोड़ने की मांग को दोहरा रहे हैं. पाकिस्तान तथा पाक कब्जे वाले कश्मीर की ओर बहने वाले जम्मू कश्मीर के दरियाओं के पानी को पीने तथा सिंचाई के लिए एकत्र करने का अधिकार जम्मू कश्मीर को नहीं है. और अब जबकि सीमा पर तनाव है, इस जलसंधि को तोड़ने की मांग हो रही है. यही नहीं सेना तो कहती है कि पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी, अगर भारत जलसंधि के ‘परमाणु बम’ को पाकिस्तानी जनता के ऊपर फोड़ देता है.
इस सच्चाई से पाकिस्तान भी वाकिफ है कि भारत का ऐसा कदम उसके लिए किसी परमाणु बम से कम नहीं होगा. यही कारण है कि वह इस जलसंधि के तीसरे गवाह या पक्ष विश्व बैंक के सामने लगातार गुहार लगाता आ रहा है कि वह भारत को ऐसा करने से रोके. हालांकि यह एक कड़वी सच्चाई है कि विश्व समुदाय के दबाव के चलते भारत के लिए ऐसा कर पाना अति कठिन होगा.
कुछ खास बातें
-56 साल से पानी जा रहा पाक
-1960 में हुई थी संधि
-इस संधि के तहत ब्यास, रावी, सतलज, सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों के पानी का दोनों देशों के बीच बंटवारा होगा.
-प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु और पाक के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने सितंबर, 1960 में संधि पर हस्ताक्षर किये थे.
-पाकिस्तान को 80.52% यानी 167.2 अरब घन मीटर पानी सालाना दिया जाता है. यह दुनिया की सबसे उदार संधि है.