कौशलेंद्र रमण
बहुत समय पहले की बात है. एक शहर में एक सहृदय आदमी रहता था. वह हमेशा दूसरों की मदद करता था. एक बार वह कहीं जा रहा था, तो उसे धूल भरी सड़क एक पर्स दिखा. उसने पर्स उठा लिया. पर्स एकदम खाली था. तभी पुलिस के साथ एक महिला आयी और उसने कहा कि इसी व्यक्ति ने मेरा पर्स चुरा लिया था. उस आदमी ने बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन महिला मानने को तैयार नहीं थी. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.
महिला ने उससे कहा, इसमें मेरे बच्चे की स्कूल फीस थी, उसे लौटा दो. कुछ देर सोचने के बाद उस व्यक्ति ने अपने सारे पैसे उसे दे दिये. दो दिन बाद जब वह फीस जमा करने स्कूल जा रही थी, तो रास्ते में महिला को लगा कि कोई उसका पीछा कर रहा है. वह फिर पुलिस के पास गयी. इत्तेफाक से उसी अधिकारी के पास पहुंची, जिसके पास पहली बार गयी थी. दोनों उस व्यक्ति के पास पहुंचे, तब तक वह कमजोर व्यक्ति सड़क पर गिर गया
पुलिस ने उसे देखते ही कहा, इस व्यक्ति ने आपके पैसे नहीं चुराये थे. इसने स्कूल की फीस जमा करने के लिए अपने सारे पैसे आपको दे दिये थे. थोड़ी देर बाद वह उठा. उसने महिला को बताया कि कहीं स्कूल की फीस उससे कोई छीन न ले, इसलिए वह पीछे-पीछे आ रहा था. उस व्यक्ति की बात सुन कर महिला सकपका गयी. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह उससे क्या कहे. बिना सोचे-समझे उसने एक शरीफ आदमी को चोर बना दिया था. महिला कुछ बोलती, इससे पहले वह व्यक्ति आगे बढ़ चुका था.
हमारे जीवन में कई बार इस तरह के पल आते हैं, जब हम बिना सोचे-जाने किसी के प्रति धारणा बना लेते हैं और बाद में पछताना पड़ता है. हमें कोई भी काम पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर नहीं करना चाहिए. इससे नुकसान हमारा ही होता है. हम जो देखते हैं, हमेशा वह सही नहीं होता है. किसी भी फैसले पर पहुंचने से पहले सच की पड़ताल जरूरी है.
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