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2020 तक एलसीडी को पीछे छोड़ स्मार्टफोन डिस्प्ले में होगा ओएलइडी का वर्चस्व

मौजूदा समय में प्रचलित ज्यादातर टीवी और स्मार्टफोन डिस्प्ले एलसीडी आधारित हैं. अब बाजार में ओएलइडी डिस्प्ले का प्रचलन बढ़ रहा है. ‘आइएचएस मार्किट’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2020 तक स्मार्टफोन में एलसीडी डिस्प्ले की जगह आपको ज्यादातर ओएलइडी डिस्प्ले ही दिखाई देंगे. क्या है ओएलइडी डिस्प्ले, कैसे कार्य करता है आदि समेत […]

मौजूदा समय में प्रचलित ज्यादातर टीवी और स्मार्टफोन डिस्प्ले एलसीडी आधारित हैं. अब बाजार में ओएलइडी डिस्प्ले का प्रचलन बढ़ रहा है. ‘आइएचएस मार्किट’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2020 तक स्मार्टफोन में एलसीडी डिस्प्ले की जगह आपको ज्यादातर ओएलइडी डिस्प्ले ही दिखाई देंगे. क्या है ओएलइडी डिस्प्ले, कैसे कार्य करता है आदि समेत इसकी खासियतों व इससे संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बता रहा है आज का यह आलेख…
आपके स्मार्टफोन का डिस्प्ले सिस्टम बहुत जल्द ओएलइडी आधारित होने जा रहा है. मौजूदा समय में ज्यादातर स्मार्टफोन का डिस्प्ले सिस्टम लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले यानी एलसीडी आधारित है, लेकिन अब इसमें बदलाव किया जा रहा है. वैश्विक स्तर पर सूचना तकनीक के अग्रणी संगठनों में शुमार ब्रिटेन की ‘आइएचएस मार्किट’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 तक स्मार्टफोन से एलसीडी डिस्प्ले बेहद कम हो जायेगा और उसकी जगह आेएलइडी यानी ऑर्गेनिक लाइट-एमिटिंग डायोड डिस्प्ले ले लेगा. इस संगठन का आकलन है कि वर्ष 2020 तक लो टेंपरेचर पॉलिसिलिकॉन (एलटीपीएस) के साथ एक्टिव मेट्रिक्स ओएलइडीज के माध्यम से ही अधिकतर स्मार्टफोन डिस्प्ले बनाये जायेंगे.
हालांकि, ‘आइएचएस मार्किट’ के सीनियर डायरेक्टर डेविड हेश का कहना है कि ओएलइडी का निर्माण करना अपनेआप में बेहद मुश्किल है, क्योंकि इसमें बहुत जटिल मैटेरियल्स और केमिकल प्रोसेस का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन, ओएलइडी ने एप्पल इंक जैसी कंपनियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है और उम्मीद की जा रही है कि लेटेस्ट आइफोन में वह इस तकनीक का इस्तेमाल कर सकती है. इससे बाजार में इस तकनीक का वर्चस्व कायम हो सकता है.
वहीं दूसरी ओर स्मार्टफोन बनानेवाली एक अन्य अगुआ कंपनी सैमसंग पहले ही इस तकनीक को अपना चुकी है. आइएचएस को उम्मीद है कि अन्य स्मार्टफोन निर्माता भी बहुत जल्द इस पर भरोसा जता सकते हैं और इसे अपना सकते हैं. हेश का कहना है कि ज्यादातर डिस्प्ले निर्माताओं ने एलटीपीएस एलसीडी में यह सोच कर निवेश किया था कि यह सर्वाधिक लोकप्रिय तकनीक साबित होगी.
चीन में लग रहे ज्यादातर प्लांट
ज्यादातर माइक्रोचिप फैब्रिकेशन प्लांट चीन में निर्माणाधीन हैं, जो अपनी योजना को बदल रहे हैं और उसमें ओएलइडी को शामिल कर रहे हैं, क्योंकि पूर्व में इसके पैनापन के बारे में जितना आकलन किया गया था, वह कहीं ज्यादा पाया गया है. ओएलइडी प्रोडक्ट्स के लिए टेक्नोलॉजी और मैटेरियल सप्लाइ करनेवाली ‘यूनिवर्ससल डिस्प्ले कॉरपोरेशन’ का कहना है कि बाजार में इसकी मांग बढ़ रही है और इसके अनेक फायदे भी सामने आये हैं.
पिछले एक साल में इसका उत्पादन 40 फीसदी तक बढ़ा है. मोबाइल फोन डिस्प्ले में एलसीडी स्क्रीन्स का दबदबा भले ही पिछले 15 वर्षों से कायम रहा हो, लेकिन ओएलइडी डिस्प्ले फ्लेक्सिबल, पतले और ज्यादा पावर एफिशिएंट है और भविष्य में इसका वर्चस्व कायम होगा. कॉरपोरेशन का अनुमान है कि एमोरफस सिलिकॉन के पतले फिल्म ट्रांजिस्टर वाले एलसीडी और एलटीपीएस टीएफटी एलसीडी डिस्प्ले को पीछे छोड़ते हुए ओएलइडी आगे बढ़ जायेगा.
क्या है ओएलइडी
यह एक फ्लैट लाइट एमिटिंग टेक्नोलॉजी (प्रकाश उत्सर्जक प्रौद्योगिकी) है, जिसे दो कंडक्टर्स के बीच पतले ऑर्गेनिक फिल्म्स की परतों की शृंखला के जरिये बनाया जाता है. जब उस पर इलेक्ट्रिकल करेंट प्रवाहित की जाती है, तब चमकीली लाइट उत्सर्जित होती है.
ओएलइडी का इस्तेमाल डिस्प्ले और लाइटिंग के लिए किया जाता है. चूंकि इससे लाइट का उत्सर्जन होता है, लिहाजा इसके लिए व्हाइट बैकलाइट की जरूरत नहीं होती है. ये बेहत पतले होते हैं, जिस कारण एलसीडी डिस्प्ले के मुकाबले ये ज्यादा सक्षम होते हैं. पतला और सक्षम होने के अलावा यह फ्लेक्सिबल और पारदर्शी भी होता है. यहां तक कि इसे मोड़ा भी जा सकता है.
ओएलइडी मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं, जो छोटे अणुओं पर आधारित और पॉलिमर्स के साथ मिल कर काम करनेवाले होते हैं.
ओएलइडी के साथ आयन्स के मिलने पर लाइट-एमिटिंग इलेक्ट्रोकेमिकल सेल (एलइसी) पैदा होते हैं, जो संचालन में कुछ अलग किस्म के होते हैं. ओएलइडी डिस्प्लेज में पेसिव-मैट्रिक्स (एमपीओएलइडी) या एक्टिव-मैट्रिक्स (एएमओएलइडी) का इस्तेमाल किया जाता है. एक्टिव-मैट्रिक्स ओएलइडी के लिए पतले फिल्मवाले ट्रांजिस्टर की जरूरत पड़ती है, जिससे प्रत्येक पिक्सल को ऑन या ऑफ किया जाता है, लेकिन इससे उच्च रिजाेलुशन और ज्यादा बड़ा डिस्प्ले मुमकिन होता है.
ओएलइडी का ऑपरेटिंग सिस्टम
ओएलइडी को दो कंडक्टर्स के बीच पतले ऑर्गेनिक फिल्म्स की शृंखला से बनाया जाता है. इसमें ग्लास, प्लास्टिक और मेटल मिलाया जाता है. दो इलेक्ट्रॉड्स के बीच में इसमें ऑर्गेनिक मैटेरियल्स की कई परतें होती हैं.
ओएलइडी पर जब वोल्टेज आरोपित किया जाता है, तो इलेक्ट्रॉन कैथोड से एनोड की ओर प्रवाहित होते हैं. इससे एनोड की ओर इलेक्ट्रॉन छेद बनते हैं, जिनसे उत्सर्जक परतें उभरती हैं. इन परतों की सीमाओं के बीच इलेक्ट्रॉन छेद तलाशते हैं और उसमें प्रवेश करते हैं, जिससे प्रकाश के फोटोन पैदा होते हैं. इस प्रकाश का रंग उसकी उत्सर्जक परतों में मौजूद ऑर्गेनिक अणुओं के प्रकार पर निर्भर करता है. (स्रोत : यूनिवर्सल डिस्प्ले)
ओएलइडी बनाम एलसीडी
ओएलइडी बिना बैकलाइट के काम करता है और एलसीडी (लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले) के मुकाबले ज्यादा पतला और चमकीला होता है. एलसीडी के मुकाबले ओएलइडी को इन कारणों से ज्यादा बेहतर माना जा रहा है :
– बेहतर इमेज क्वालिटी
– बेहतर कॉन्ट्रास्ट
– ज्यादा ब्राइटनेस
– देखने के लिए ज्यादा बड़ा एंगल
– ज्यादा रंगों में निर्माण मुमकिन
– ज्यादा तेज
– कम ऊर्जा खपत
– सिंपल डिजाइन, जिससे बेहद पतले, फ्लेक्सिबल और पारदर्शी डिस्प्ले बनाना मुमकिन
– ज्यादा टिकाऊ : ओएलइडी ज्यादा टिकाऊ है और इसे विविध तापमान की रेंज में संचालित किया जा सकता है.
– फास्ट रेस्पोंस : एलसीडी के मुकाबले ओएलइडी का रेस्पोंस टाइम ज्यादा तेज होता है. एलसीडी में कलर ट्रांजिशन में करीब एक मिली सेकेंड का रिस्पोंस टाइम होता है, जबकि ओएलइडी इससे हजार गुना ज्यादा तेज है यानी इसका रिस्पोंस टाइम मिली सेकेंड का हजारवां हिस्सा होता है.
फ्लेक्सिबल ओएलइडी डिस्प्ले का भविष्य
चूंकि ओएलइडी का इस्तेमाल ज्यादा फ्लेक्सिबल और पारदर्शी डिस्प्ले बनाने में किया जा सकता है, इसलिए इसके जरिये भविष्य में दुनियाभर में हमें नयी चीजें और बदलाव देखने में आ सकते हैं. इनमें से कुछ इस प्रकार हो सकते हैं :
– कर्व्ड ओएलइडी डिस्प्ले, जो एक प्रकार से नॉन-फ्लैट सतह को बदल देगा.
– ओएलइडीयुक्त पहनने योग्य नये किस्म के डिवाइस बनाये जा सकते हैं.
– विंडोज में ट्रांसपेरेंट ओएलइडी लगाया जा सकता है.
– कार विंडशील्ड्स को उन्नत स्वरूप प्रदान करने में इसका उपयोग किया जा सकता है.
– लैंप का नया डिजाइन तैयार हो सकता है.
– इनके अलावा अन्य बहुत सी चीजें सामने आ सकती हैं, जिनके बारे में अभी कल्पना तक नहीं की जा सकती है.
कितना ऑर्गेनिक है ओएलइडी?
यह ऑर्गेनिक है, क्योंकि इन्हें कार्बन और हाइड्रोजन से बनाया जाता है. हालांकि, इसका ऑर्गेनिक फूड और फार्मिंग से कोई संबंध नहीं है. यह बेहद सक्षम है और इसमें किसी भी तरह का खराब मेटल नहीं मिलाया जाता है, इसलिए यह वास्तविक ग्रीन टेक्नोलॉजी है.
कहां देख सकते हैं ओएलइडी डिस्प्ले?
मौजूदा समय में मोबाइल फोन्स, डिजिटल कैमरों, वीआर हेडसेट्स, लैपटॉप और टीवी आदि में इसका इस्तेमाल शुरू हो चुका है. इसके इस्तेमाल में सैमसंग सबसे आगे हैं और मोबाइल डिवाइस निर्माण में इसका उपयोग करने में वह अग्रणी है. इसके अलावा एप्पल, मोटोरोला, डेल, सोनी, माइक्रोसॉफ्ट, एलजी और लेनोवो जैसी कंपनियों ने भी मोबाइल डिवाइस के निर्माण में इसका इस्तेमाल शुरू किया है. हालांकि, एलसीडी के मुकाबले ओएलइडी की लागत कुछ ज्यादा आ रही है, लेकिन इसकी क्षमता ज्यादा होने के कारण कंपनियां इसका उपयोग कर रही हैं.
दुनिया का पहला ओएलइडी टीवी
एलजी ने दुनिया का पहला ओएलइडी टीवी लाॅन्च कर दिया है. एलजी का टीवी 55 इंच का फुल एचडी पैनलयुक्त है. इसमें रंग और कॉन्ट्रास्ट की गुणवत्ता बेहतर है. यह टीवी करीब 4 एमएम मोटा है और इसका वजन 3.5 किलो है. इसके अलावा सैमसंग ने भी इसी साइज और फुल एचडी रिजोलुशन में ओएलइडी टीवी लॉन्च कर दिया है.
इन्हें भी जानें
ओएलइडी का इतिहास
फ्रां स की नैन्सी यूनिवर्सिटी में आंद्रे बर्नानोस और उनके सहयोगियों ने मिल कर पहली बार 1950 के दशक में यह ऑब्जर्व किया कि ऑर्गेनिक मैटेरियल्स में इलेक्ट्रोल्युमिनिसेंस मौजूद होते हैं. एक्रिडाइन ऑरेंज जैसे मैटेरियल पर हवा में उन्होंने उच्च अल्टरनेटिव वाेल्टेज प्रवाहित किया. इससे ये पतले फिल्म सेलुलोज में घुल गये या उनको खुद में समाहित कर लिया.
1960 के दशक में न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में मार्टिन पोप और उनके सहयोगियों ने ऑर्गेनिक क्रिस्टल के संपर्क से डार्क-इंजेक्टिंग इलेक्ट्रॉड्स को विकसित किया. बाद में 1980 के दशक में यूनाइटेड किंगडम की नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी में पॉलिमर फिल्म से इलेक्ट्रोल्युमिनिसेंस को विकसित और ऑब्जर्व किया गया. वर्ष 1987 में पहली बार इस्टमैन कोडक के लिए ओएलइडी डिवाइस का निर्माण किया गया. 1990 में कैंब्रिज की केवेंडिश लैबोरेटरी में उच्च क्षमतावाले सक्षम ग्रीन-लाइट उत्सर्जक पॉलिमर आधारित डिवाइस बनाया गया, जिसमें 100 एमएम मोटे पॉलिफेनाइल वेनाइलिन का इस्तेमाल किया गया था. मौजूदा समय में ओएलइडी से संबंधित अनेक काॅमर्शियल पेटेंट पर यूनिवर्सल डिस्प्ले कॉरपोरेशन का कब्जा है.
ओएलइडी की कुछ खामियां
मौजूदा समय में ओएलइडी को पूरी तरह से परफेक्ट नहीं बताया गया है. भले ही अभी यह उम्मीद जतायी जा रही है कि भविष्य में यह बड़ा बदलाव ला सकता है, लेकिन एलसीडी के मुकाबले इसका उत्पादन ज्यादा महंगा है. किसी अन्य डिस्प्ले के मुकाबले ओएलइडी का जीवनकाल सीमित बताया गया है, लेकिन धीरे-धीरे इसमें सुधार होने की उम्मीद जतायी गयी है. चूंकि ओएलइडी डिस्प्ले की प्रकृति उत्सर्जक होती है, लिहाजा सूर्य की सीधी किरणें पड़ने की दशा में इसमें दिक्कत आ सकती है. वैसे कंपनियां इसका हल तलाशने में जुटी हैं.
(स्रोत : ओएलइडी-इनफो डॉट कॉम)
क्वांटम डॉट्स की बढ़ती लोकप्रियता
डिस्प्ले में क्वांटम डॉट्स के इस्तेमाल का चलन भी बढ़ रहा है. नैनोसिस के सीइओ के हवाले से ‘अमेरिकन केमिकल सोसायटी’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि टीवी की दुनिया में फिलहाल ज्यादा लोकप्रिय क्वांटम डॉट्स है.
दुनियाभर में 95 फीसदी से ज्यादा कंपनियों को इसकी सप्लाइ करनेवाली कंपनी नैनोसिस के मुताबिक, पिछले पांच सालों के दौरान 30 फीसदी से ज्यादा टीवी इसी सिस्टम पर आधारित बनाये गये हैं. कंपनी का कहना है कि ओएलइडी ज्यादा कार्यसक्षम है, लेकिन इसकी लागत ज्यादा होने के कारण अभी यह लोकप्रिय नहीं हो पाया है. वैसे इतना जरूर माना जा रहा है कि ओएलइडी तकनीक मोबाइल फोन्स के लिए ज्यादा बेहतर है और इसे कम लागत में मुहैया कराने की तैयारी चल रही है.

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