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जीएसटी: आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा कर सुधार?

शिल्पा कन्नन बीबीसी न्यूज़ गुरुवार को भारत की संसद में एक ऐसा बिल लाए जाने की संभावना है जो देश की टैक्स व्यवस्था को पूरी तरह बदल कर रख देगा. वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक को क़ानून बनाने के लिए एक दशक से बात हो रही है लेकिन राजनीतिक रस्साकशी के कारण ये क़ानून […]

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गुरुवार को भारत की संसद में एक ऐसा बिल लाए जाने की संभावना है जो देश की टैक्स व्यवस्था को पूरी तरह बदल कर रख देगा.

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक को क़ानून बनाने के लिए एक दशक से बात हो रही है लेकिन राजनीतिक रस्साकशी के कारण ये क़ानून नहीं बन पाया है.

इस नई कर व्यवस्था से केंद्र और राज्य सरकारों के वस्तुओं और सेवाओं पर लगाए जाने वाले सभी अप्रत्यक्ष करों की जगह एक समान कर वजूद में आ जाएगा.

पढ़ें- आपके जीवन से जुड़ी जीएसटी बिल की 7 बातें

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह अर्थव्यवस्था में एक नई जान फूंकेगा.

तो क्या कारण हैं कि कुछ पार्टियों और राज्य इसे लागू करने के ख़िलाफ़ हैं?

वस्तु एवं सेवा कर के ड्राफ़्ट बिल से लेकर संसद में बहस कराए जाने तक भारत को दस साल लगे.

पढ़ें- जीएसटी के बाद क्या सस्ता और क्या महंगा

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सरकार और उससे सहमत आर्थशास्त्री इसे आज़ादी के बाद का भारत का सबसे बड़ा कर सुधार मान रहे हैं.

उम्मीद की जा रही है कि जीएसटी देश के टेढ़ी कर व्यवस्था को पटरी पर लाएगा और लाल फीताशाही को कम करेगा.

ये टेक्स, सामान के शहर में प्रवेश पर लगने वाले कर, एक्साइज़ ड्यूटी, सर्विस टैक्स और अन्य राज्य स्तरीय करों की जगह ले लेगा.

सरकार कहना है कि इससे उसे तीन अहम फायदे होंगे और पहला ये है कि इससे मेक इन इंडिया प्रोग्राम को प्रोत्साहन मिलेगा.

अनुमान है कि उच्च कर दरों और लाल फीताशाही के कारण देरी के कारण वर्तमान में बिज़नेस को 5-10 प्रतिशत का नुकसान होता है.

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भारत के एक राज्य में बनने वाला सामान जब देश के किसी दूसरे हिस्से में पहुंचता है तो उस पर कई बार टैक्स लग जाता है.

इस असुविधाजनक कड़ी को जीएसटी लाने से सुधारा जा सकेगा. इसका मतलब ये हुआ कि उद्योगों को निवेश में प्रोत्साहन मिलेगा.

दूसरा, जीएसटी के तहत देश में उत्पादन और खपत की कड़ी में अंतिम छोर पर कर लगाया जाएगा.

अभी भारत के अधिक विकसित इलाकों में, जहां उद्योग हैं, सामान के बनने के तुरंत बाद ही टैक्स लगा दिया जाता है.

लेकिन अगर जीएसटी पास हो जाता है तो टैक्स वो राज्य सरकारें वसूलेंगी जहां उत्पाद की खपत होती है.

इसलिए, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे कम विकसित राज्यों को अधिक संसाधन मिलेंगे क्योंकि वहां उपभोक्ताओं की बड़ी संख्या है.

हालांकि अधिकांश विशेषज्ञ इस व्यवस्था को भारत के विभिन्न राज्यों के बीच राजस्व के ज़्यादा बराबरी वाली वितरण व्यवस्था के रूप में देखते हैं.

तीसरा, यह टैक्स वसूली में मदद करेगा और देश में कर चोरी को कम करेगा.

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यह पूरा तंत्र इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पर तैयार किया जा रहा है इसलिए हर भुगतान का एक डिज़िटल निशान होगा, जिसे तलाशना आसान होगा.

ये अपने आप में सबसे बड़ा प्रयास है जिसके मार्फत टैक्स संबंधित 75 लाख मामलों को ऑनलाइन लाया जा सकेगा.

लेकिन एक चीज़ जिसकी ओर अधिकांश लोग इशारा कर रहे हैं वो है, कि की उद्योगों को जीएसटी के दायरे से अलग रखा गया है, जो राजस्व का एक बड़ा हिस्सा है.

राज्य सरकारों के राजस्व के लिए अहम माने जाने वाले ईंधन, रीयल इस्टेट और आबकारी विभाग इससे अलग हैं.

इसके बावजूद वर्ल्ड बैंक इसे गेम चेंजिंग आर्थिक सुधार मानता है, जोकि राष्ट्रीय आर्थिक उत्पाद में कम से कम दो प्रतिशत का इजाफ़ा करता है.

एक अनुभवी बिज़नेसमैन का कहना है- ‘यह भारत का ‘रिवर्स ब्रेक्ज़िट’ (यानी यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने के उलट) कार्रवाई है. इसे मुख्यतः देश के वर्तमान संघीय कर व्यवस्था की बजाय एक संयुक्त आर्थिक इकाई के रूप में काम करने के तौर पर देखा जा रहा है.’

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