
झारखंड में जादू–टोना और डायन बिसाही के शक में हत्या और प्रताड़ना किए जाने के मामले थम नहीं रहे हैं. हालांकि इस पर रोक और क़ानूनी कार्रवाई की कोशिशें नए सिरे से तेज़ हुई हैं.
झारखंड हाइकोर्ट ने इन मामलों में सख़्ती दिखाते हुए सरकार से प्रभावी क़दम उठाने को कहा है. हाइकोर्ट ने इस संबंध में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई भी शुरू की है और स्टेटस रिपोर्ट देने को कहा है.
सितंबर 2015 से इस साल के मई महीने तक मतलब नौ महीनों में जादू टोना और डायन के नाम पर प्रताड़ना के 524 मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि 35 लोगों की हत्या कर दी गई है.
हाल ही में झारखंड हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश वीरेंदर सिंह ख़ुद आदिवासी बहुल खूंटी के सुदूर गांवों में पहुंचे.
डायन के खिलाफ झारखंड राज्य विधिक प्राधिकार के कार्यक्रम में वे शरीक हुए और स्थानीय लोगों से भी बातें की और कहा, "डायन प्रथा सूबे की गंभीर समस्या बन गई है और इसका समुचित समाधान भी नहीं निकल पा रहा है. इस पर रोक के लिए इसके ख़िलाफ़ लड़ाई लड़नी ही होगी."

इस सिलसिले में फिल्म बनाने के मक़सद से प्रसिद्ध फिल्म निर्माता और निर्देशक प्रकाश झा भी झारखंड दौरे पर पहुंचे.
उनका कहना है कि लोगों में जागरूकता के लिए वे छोटी फिल्में और वृत चित्र तैयार करेंगे, ताकि पिछले कतार में शामिल लोगों को पता चले कि अंधविश्वास की जगह नहीं है और न्याय व्यवस्था के ज़रिए न्याय सुलभ है.
गुमला के घाघरा में प्रकाश झा की यूनिट ने शूटिंग भी शुरू कर दी है. इस शूटिंग में उस बच्ची को शामिल किया गया है, जिनके माता-पिता की कथित तौर पर डायन के शक़ में हत्या कर दी गई थी. अब वो बच्ची अपनी ज़िंदगी संवारने में जुटी हैं.

हाल ही में लोहरदगा के गुड़ी ठेकाटोली गांव में जादू टोना के शक में तीन लोगों को ज़िंदा जलाने और फिर गुमला के घाघरा में एक बेटे के डायन के शक़ में अपनी मां की हत्या कर देने की ख़बर सामने आई थी.
रांची ज़िले के मांडर में भी एक साथ पांच आदिवासी महिलाओं की हत्या कर दी गई थी.
साढ़े पांच साल के दौरान इन आरोपों में प्रताड़ना के 3300 मामले पुलिस फाइलों में दर्ज हैं. आदिवासी परिवार ऐसी घटनाओं के ज़्यादा शिकार हैं.

आईजी (संगठित अपराध) संपत मीणा बताती हैं कि डेटा बेस के जरिए उन ज़िलों और थानों को चिह्नित किया गया है, जहां ये घटनाएं होती रही हैं. इनमें रांची, लोहरदगा, खूंटी, गुमला, सिमडेगा, चाईबासा, सरायकेला, लातेहार, गढ़वा, जमशेदपुर जैसे ज़िले शामिल हैं. इसके साथ ही अपराध अनुसंधान विभाग में एक मॉनिटरिंग सेल खोला गया है.
वे बताती हैं कि उन्होंने ज़िलों के पुलिस अधिकारियों को लंबित मामलों को निपटाने और मुकम्मल कार्रवाई करने को कहा है. साथ ही इस अभियान में पंचायत प्रतिनिधियों और आंगनबाड़ी सेविकाओं से भी संपर्क बनाने को कहा गया है.
डायन प्रथा उन्मूलन को लेकर लंबे समय से कार्यक्रम चला रहे ग़ैर-सरकारी संस्था आशा की पूनम टोप्पो कहती हैं, "इन मामलों में सरकारी प्रयास अब तक नाकाफी हैं. जागरूकता अभियान वाले प्रचार वाहनों को बड़े तामझाम से गांवों में भेजा गया, लेकिन ये अभियान लगातार नहीं चला."
इसी संगठन के प्रमुख अजय भगत का मानना है कि सुदूर गांवों में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में ठोस काम किए बिना अंधविश्वास पर लगाम लगाना मुश्किल है.

इस बीच समाज कल्याण विभाग के सचिव एमएस भाटिया ने बीबीसी को बताया है कि हाइकोर्ट के निर्देश पर झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकार और उनका विभाग साथ मिलकर नए सिरे से जनजागरूकता कार्यक्रम चलाने की तैयारी में है.
उधर लोहरदगा के एसपी कार्तिक एस बताते हैं कि गांवों में ओझा-गुनी, झाड़-फूंक करने वालों की पहचान करने की कार्रवाई शुरू की गई है, ताकि वे भोलेभाले ग्रामीणों को किसी भ्रम में नहीं डालें.
गुड़ाठोकी टोला में तीन लोगों को ज़िंदा जलाने की घटना की चर्चा करते हुए वे बताते हैं कि रात में कैसे कई गांवों के लोग घंटी बजाते हुए जुटे थे. उन्हें वहम था कि उस घर के लोग बच्चों की बलि देते हैं, इसी से वे साधन संपन्न हो रहे हैं. जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था.
गौरतलब है कि मांडर की घटना के बाद राज्य सरकार ने जनजागरूकता कार्यक्रम के लिए पांच ज़िलों में प्रचार वाहन रवाना करने के साथ अन्य कई फैसले लिए थे.

हालांकि डायन प्रथा उन्मूलन को लेकर लंबे समय से कार्यक्रम चला रहे ग़ैर सरकारी संस्था आशा की पूनम टोप्पो दो टूक कहती हैं, "इन मामलों में सरकारी प्रयास अब तक नाकाफ़ी हैं. प्रचार वाहनों को बड़े तामझाम से गांवों में भेजा गया, लेकिन ये अभियान लगातार नहीं चला."
इसी संगठन के प्रमुख अजय भगत का मानना है कि सुदूर गांवों में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में ठोस काम किए बिना अंध विश्वास पर लगाम मुश्किल है. महज़ प्रचार वाहन और कार्यशाला इसके समाधान नहीं हैं.
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