एसडीओ, डीडीसी, डीएम और अब ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव पद पर कार्यरत प्रत्यय अमृत को आप सब जानते होंगे. वे जहां रहे, वहां अपनी बेहतरीन कार्यशैली को लेकर चर्चित रहे. इसलिए उन्हें प्रधानमंत्री से सम्मान भी मिला. फिलहाल वे ऊर्जा विभाग के सचिव पद पर कार्यरत हैं.
कम ही लोगों को उनका क्रिकेटर रूप देखने को मिला होगा. आज हम एक बेबाक आइएएस ऑफिसर के क्रिकेट प्रेम के बारे में आपको बता रहे हैं. जानकर हैरानी होगी कि उनकी टीम को पिछले छह सालों में मात्र दो हार का ही सामना करना पड़ा.
प्रत्यय अमृत
प्रधान सचिव, ऊर्जा विभाग
चेयरमैन व एमडी बिहार स्टेट पावर होिल्डंग कंपनी लिमिटेड
नागरिक प्रशासन के लिए प्रधानमंत्री का एक्सलेंस अवार्ड पाने वाले प्रत्यय अमृत की खासियत है कि उनसे जिस काम की अपेक्षा की जाती है, वे उसे पूरा कर दिखाते हैं. वे उन कामों के पूरे होने तक थमने वाले शख्स नहीं हैं. वे अपेक्षाओं से भी आगे बढ़कर अपने काम को अंजाम देते हैं.
अपनी लगन, निष्ठा और साहस के साथ वे इस बात की मिसाल हैं कि नौकरशाह को जनसेवा के प्रति कितना समर्पित होना चाहिए. बिहार में सड़कों की सूरत बदलने का श्रेय प्रत्यय अमृत को ही दिया जाता है. यही वजह है कि उन्हें बिजली क्षेत्र में भी सफलता की कहानी लिखने की जिम्मेदारी दी गयी है. इस कर्मठ अधिकारी के हाथ में बागडोर होने के कारण लोग बिजली की स्थिति बेहतर होते देख रहे हैं. जिस लगन से वे अपने जीवन में प्रोफेशनल वर्क करते हैं, उसी प्रकार वे क्रिकेट के मैदान में अपने शौक को पूरा करते हैं. उनके बल्ले से
जब चौका-छक्का निकलता है, तो प्रतिद्वंदी कहते हैं कि प्रत्यय सर के बल्ले से करंट निकल रहा है. आपको बताते चलें, वे सिर्फ बल्लेबाज नहीं, बल्कि एक अच्छे बॉलर भी हैं. उन्होंने शहर में अपनी एक टीम भी बना रखी है. उनसे मुलाकात के दौरान उन्होंने कुछ सवालों के दिलचस्प जवाब दिये.
आप एक आइएएस ऑफिसर हैं. क्रिकेट कैसे पसंद आने लगा?
बचपन से ही मुझे क्रिकेट से लगाव है. बचपन से ही हॉस्टल में रहता था. क्रिकेट का दीवाना हूं. इसलिए आज भी क्रिकेटर बना हुआ हूं. बचपन में जब मैंने खेलने के लिए मैदान जाना शुरू किया, तो अपने दोस्तों और अपने से बड़ों को क्रिकेट खेलते देखता था. वहीं से क्रिकेट खेलने की शुरुआत हुई.
क्रिकेट के किस फॉर्मेट को ज्यादा पसंद करते हैं?
मैं सभी फॉर्मेट को पसंद करनेवाला खिलाड़ी हूं. किसी फॉर्मेट में खेलने कह दें, मैं खेलने के लिए तैयार रहता हूं. वन डे, टी-ट्वेंटी या टेस्ट फॉर्मेट हो, सबका अलग मजा है. टेस्ट में आप खुद को जज कर पाते हैं. वन डे और टी-ट्वेंटी में रन बनाने की कैपेसिटी पता चलती है. ज्यादातर मैं 50-50 और टी-ट्वेंटी गेम खेलता हूं. हमारी टीम कई जगहों पर जा कर खेली है और जीत कर आयी है.
स्कूल के वक्त से अब तक क्रिकेट में बड़ा एचिवमेंट कौन-सा मानते हैं?
हर मैच मुझे एक एचिवमेंट लगता है. हर सीजन में मैं सात या आठ मैच केल लेता हूं. ऑफिसर्स एलेवन हमारी टीम है. बिहार वेटरन्स की तरफ से इस्ट जोन के हम चैंपियन बने थे. कई जगहों पर खेलने गये. हमारी टीम पिछले छह सालों में मात्र दो मैच ही हारी है. यह एक बड़ा एचिवमेंट है.
क्रिकेट से निजी जिंदगी में कुछ सीख मिली है?
मैंने क्रिकेट से ही नहीं, अन्य गेम से भी सीख ली है. क्रिकेट लोगों को डिसिप्लीन सिखाता है. खेलते-खेलते लोगों में टीम भावना आ जाती है. इससे लोग अपने कैरियर में बेहतर कर पाते हैं. आज की युवा पीढ़ी के लिए यह काफी जरूरी है. हम अपने टीम में बेहतर जूनियर खिलाड़ी को जगह देते हैं. इंडियन अंडर 19 के कैप्टन ईशान किशन भी हमारे टीम में खेल चुके हैं. इसी तरह अन्य खिलाड़ी को बेहतर मौका देते हैं.
आप एक स्टेडियम भी बनवा रहे हैं. कुछ बताएं?
वह स्टेडियम मैं नहीं बनवा रहा हूं. उसे बनाने में कई विभाग और कंपनी का सहयोग है. बीएसइबी ग्राउंड पर ऊर्जा विभाग द्वारा स्टेडियम बन रहा है, जिसमें कई बैंक, पावर ग्रेड, व गवर्नमेंट का सहयोग है. दो महीने बाद उसका उदघाटन होगा. उसमें मॉर्डन जिम, चार से पांच टफ विकेट, पवेलियन वगैरह होगा.
आप टेनिस भी खेलते थे?
मैंने टेनिस भी खेलना शुरू किया था. 1990-91 में मैं खेला करता था. उसके बाद धीरे-धीरे आदत खत्म हो गयी. चार साल पहले टेनिस खेलना बंद कर चुका हूं. अब मेरा बेटा अंशुमत टेनिस खेल रहा है. उसने डीपीएस से बारहवीं की पढ़ाई पूरी की है. वह टेनिस का नेशनल लेवल का खिलाड़ी है.
आपकी पढ़ाई-लिखाई कहां से हुई?
मैं गोपालगंज में हथुआ सब डिविजन के भरतपुरा गांव का निवासी हूं. मेरे पिता बीएनमंडल यूनिवर्सिटी के वॉयस चांसलर थे. मां भी प्रोफेसर थीं. मेरी पढ़ाई मुजफ्फरपुर से शुरू हुई. 10वीं आसनसोल से हुई. दिल्ली से बारहवीं और हिंदू कॉलेज से बीए व एमए किया. मैंने हिस्ट्री ऑनर्स किया था. पोस्ट ग्रेजुएशन के अगले ही दिन मुझे वैंकटेश्वर कॉलेज में लेक्चररशिप का जॉब मिल गया था. कुछ महीनों तक मैंने वहां भी पढ़ाया है. उसके बाद 1990 में आइपीएस और 1991 में आइएएस बना.
आपके घर में एक और आइएएस हैं. घर का परिवेश कुछ अलग रहता था क्या?
मेरी बहन भी आइएएस है. लेकिन मैं यह नहीं मानता कि घर में कोई अलग तरह का परिवेश था. अन्य घरों की ही तरह हमारे घर का भी माहौल था. शुरुआत से ही माता-पिता का गाइडलाइन मिला है. उन दिनों लोग अपने बच्चों को हॉस्टल में रख कर नहीं पढ़ाते थे. हमारी आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद हमारे पैरेंट्स ने हम भाई-बहनों को हॉस्टल में रख कर पढ़ाया.
हम तीनों भाई-बहन सोचते थे कि जिस कठिनाई में रख कर पैरेंट्स हमें पढ़ा रहे हैं, ऐसे में हमें कुछ कर दिखाना चाहिए. उसके बाद हम लोग परिश्रम करते रहे. माता-पिता का आशीर्वाद रहा. हम आइएएस बने. हम सबने पढ़ाई की एक स्ट्रेटजी तैयार की थी. मैं हमेशा ग्रुप स्टडी को पसंद करता हूं. ध्यान रख कर लाइट माइंड के दोस्तों के साथ ऐसा ग्रुप बनायें.