
पंडित सबा लाल.
भारत प्रशासित कश्मीर के श्रीनगर के रामबाग़ इलाक़े के निवासी पंडित सबा लाल 26 साल बाद कश्मीर लौटे हैं.
साल 1990 में कश्मीर में चरमपंथ का दौर शुरू होने के बाद सबा लाल कश्मीर से भाग कर दिल्ली चले गए थे और तबसे वहीं रह रहे हैं.
सबा लाल दो दिन से अपनी पत्नी रमा के साथ श्रीनगर के डाउनटाउन में कश्मीरी मुसलमान नज़ीर अहमद के घर में रह रहे हैं.
सबा बताते हैं, "मुझे 26 साल बाद लगा कि मैं अपने घर में सोया हूं. मुझे कोई डर नहीं लगा. इन लोगों ने हमारी बहुत सेवा की. हमारा बहुत ख़्याल रखा. जिस तरह पहले हम मुसलमानों के साथ रहते थे, वैसे ही पिछले दो दिनों से यहां रह रहा हूं."
वो कहते हैं कि यहां हिंदू मुसलमान एक ही ख़ून हैं. उसमें कोई फ़र्क़ नहीं आया है.

सबा लाल कहते हैं कि जिस तरह हम मुसलमानों के साथ पहले रहते थे, वैसे ही यहां नज़ीर अहमद के घर में रह रहे हैं.
सबा लाल, 15 कश्मीरी पंडित परिवारों के साथ आए हैं. इन सभी को कश्मीर में ही रहने वाले एक नौजवान डॉक्टर संदीप मावा यहां लाए हैं. इन सभी पंडित परिवारों को उनके घरों के क़रीब रहने वाले मुसलमान भाइयों के घर ही ठहराया गया है.
डॉक्टर संदीप मावा जम्मू-कश्मीर रिकौंसिल फ्रंट के मुखिया हैं. उनका दावा है कि इस फ्रंट को किसी सियासी जमात का समर्थन नहीं है.
डॉक्टर संदीप कहते हैं, ”पिछले 27 साल में पंडितों की घर वापसी को लेकर सिर्फ़ सियायत हुई है.”
संदीप आगे कहते हैं कि जब कश्मीर का मुसलमान पंडितों के लिए दिल और दरवाज़े खोल रहा है तो पंडितों को अलग बसाने की क्या ज़रूरत है. यही वजह है कि मैंने पंडितों को एक प्रयोग के तौर पर कुछ दिनों के लिए कश्मीर बुलाया है.

नज़ीर अहमद.
उन्होंने बताया, "ये क़दम सिर्फ़ मेरा नहीं है, मेरे दोस्त नज़ीर अहमद भी इस पहल में शामिल है. हम दोनों ने मिलकर इस सोच को आगे बढ़ाया है."
नज़ीर अहमद कहते हैं, ”कश्मीर को लेकर पंडितों के दिल में जो डर है, वह निकलना चाहिए.”
उन्होंने बताया, ”हम दोनों ने मिलकर ये योजना बनाई कि क्यों न कुछ दिनों के लिए पंडितों को यहां लाया जाए. उन्हें अपने घरों में रखकर, उनके दिल में कश्मीर का जो डर है वो निकाला जाए, इससे पंडितों की कश्मीर वापसी का माहौल भी बनेगा."
नज़ीर अहमद और सबा लाल की बीवियां जसफ़ीदाह और रमा जब एक दूसरे से मिलीं तो दोनों पहली रात सोई ही नहीं.

रमा बताती हैं, "पूरी रात हम कैसे बिछड़े थे, यही बातें करते रहे."
साल 1990 में कश्मीर में हथियारबंद आंदोलन शुरू होने के बाद वहां रहने वाले लाखों पंडित कश्मीर छोड़ कर भारत के दूसरे शहरों में रहने चले गए थे.
पंडितों की कश्मीर वापसी को लेकर फिर से विवाद खड़ा हो गया है.
सरकार कश्मीर से विस्थापित हुए पंडितों को कश्मीर में अलग टाउनशिप बनाकर बसाना चाहती है जबकि कश्मीर के अलगाववादी गुट अलग टाउनशिप का विरोध कर रहे हैं.

विस्थापन से पहले कश्मीरी पंडित और मुसलमान एक साथ एक ही बस्तियों में रहते थे.
कश्मीर से बाहर रहने वाले कुछ पंडितों का मानना है कि संदीप मावा जैसा फ़ार्मूला पंडितों की वापसी का हल नहीं है.
नोएडा में रहने वाले कश्मीरी पंडित डॉक्टर टीको कहते हैं, "हम उस हर पहल का स्वागत करते हैं जो कश्मीरी पंडितों की वापसी का माहौल बनाए, लेकिन 15 परिवारों को कश्मीर में ले जाकर यह कहना कि ये वापसी का हल है, सही नहीं है."
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