ताशकंद : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात कर न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में भारत के दावों पर मैरिट व तथ्यों के आधार पर विचार करने को कहा. हालांकि चीनीराष्ट्रपति ने इस पर अभी अपनेरुख को साफ नहीं कियाहै.भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद अपने संक्षिप्त बयान में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शंघाई सहयोग संगठन में भारत की सदस्यताको समर्थन के लिया धन्यवाद कहाऔर चीनकेराष्ट्रपति ने भारतकाइस संगठन में स्वागतकिया.स्वरूप नेकहाकिपीएममोदी ने चीन के राष्ट्रपति से भारत की एनएसजीसदस्यता पर निष्पक्ष व वस्तुपरक ढंग से विचार करने को कहा. हालांकि स्वरूप ने मीडिया के उन सवालों पर कुछ नहीं कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस पर अपनी क्या प्रतिक्रिया दी है.विकास स्वरूप ने कहा कि एनएसजी में सदस्यता एक जटिल और नाजुक प्रकिया है, जिस पर हमें इंतजार करना चाहिए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के दबदबे वाले समूह शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए दो दिन की यात्रा पर आज यहां पहुंचे हैं. यहां पहुंचने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात हुई. भारत की सदस्यता पर चीन का रुख अबतक भ्रम में डालने वाला विरोधात्मक स्वरूप वाला है. उधर, सूत्रों ने खबर दी है कि दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में एनएसजी की बैठक में आज फिर भारत की सदस्यता के सवाल पर विचार कर दिया जायेगा. ध्यान रहे कि कल चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा था कि भारत की सदस्यता के सवाल पर अबतक तीन बार अनौपचारिक वार्ता हुई है.
इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी का यहां पहुंचने पर गर्मजोशी से स्वागत किया गया. उज्बेक प्रधानमंत्री शौकत मीरोमोनोविच मिरजियोएव विशेष सम्मान जताते हुए मोदी की आगवानी के लिए खुद ताशकंद हवाई अड्डा पहुंचे.
Namaste Tashkent! PM @narendramodi arrives in Uzbekistan, is received by PM Shavkat Mirziyoev at airport pic.twitter.com/eW8KxGr57K
— Randhir Jaiswal (@MEAIndia) June 23, 2016
एससीओ में भारत-पाक की सदस्यता पर वार्ता
आज से शुरू एससीओ यानी शंघाई सहयोग संगठन के दो दिन के शिखर सम्मेलन में पाकिस्तान के साथ भारत को पूर्ण सदस्यता देने की प्रक्रिया का आगाज होगा. बहरहाल, निगाहें चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ मोदी की द्विपक्षीय मुलाकात परहीप्रमुखता से हैं.
एनएसजी की दावेदारी क्यों और चीन का रुख
एनएसजी संवेदनशील परमाणु प्रौद्योगिकी तक पहुंच को नियंत्रित करता है.इसमेंप्रवेश से भारत को परमाणु क्षेत्र में कई सुविधाएंवअधिकार मिल जायेगा. चीन ने एनएसजी में भारत के प्रवेश पर अपने विरोध का स्पष्ट तौर पर इशारा करते हुए कल एनएसजी के सदस्य देशों के बीच के मतभेदों को रेखांकित किया और कहा कि ‘‘अब भी इस मुद्दे पर पक्षों का समान रुख अपनाना बाकी है.’ बहरहाल, चीन ने कहा कि वह वार्ता में रचनात्मक भूमिका निभाएगा.
आज से एनएसजी का पूर्ण अधिवेशन
एससीओ शिखर सम्मेलन के साथ ही साथ एनएसजी का दो दिन का वार्षिक पूर्णाधिवेशन आज सोल में शुरु हो रहा है जिसमेें परमाणु कारोबार क्लब की सदस्यता के लिए भारत के आवेदन पर विचार होना तय है.
ताशकंद रवाना होने से पहले मोदी ने नयी दिल्ली में कहा था कि भारत को एससीओ शिखर सम्मेलन में अपनी वार्ताओं के सार्थक फल निकलने की उम्मीद है.
पूर्ण सदस्य केरूप में एससीओ में भारत का प्रवेश उसे रक्षा, सुरक्षा और आतंकवाद-निरोध के क्षेत्रों में सदस्य देशों के साथ विस्तारित सहयोग का मौका उपलब्ध कराएगा.
ताशकंद रवाना होने से पहले मोदी ने एक बयान में कहा, ‘‘मैं एससीओ शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने और एससीओ देशों के नेताओं के साथ मिलने संक्षिप्त यात्रा पर उज्बेकिस्तान का सफर करुंगा. एससीओ की सदस्यता मिलने पर भारत प्रसन्न है और एससीओ के माध्यम से खास तौर पर आर्थिक सहयोग के क्षेत्र में सार्थक नतीजों की बाट जोह रहा है.’ मोदी ने कहा कि भारत मध्य एशिया के साथ रिश्तों को खास अहमियत देता है और हमेशा इस क्षेत्र के साथ आर्थिक और जनता के स्तर पर रिश्ते प्रगाढ़ करना चाहता है. विदेश मंत्रालय में सचिव (पश्चिम) सुजाता मेहता ने कल कहा, ‘‘एससीओ में भारत के शामिल होने की प्रक्रिया बुनियादी दस्तावेज पर हस्ताक्षर के साथ पूरी होगी. इस दस्तावेज को दायित्व पत्र (मेमोरेंडम ऑफ ऑब्लिगेशंस) कहा जाता है.’
एससीओ में प्रवेश से भारत को आतंकवाद से निबटने में मिलेगी मदद
सुजाता मेहता से जब पूछा गया कि क्या भारत एससीओ का पूर्ण सदस्य बन जाएगा तो उन्होंने कहा कि 30 से ज्यादा अन्य दस्तावेजों पर दस्तखत को ले कर भारत के लिए एक समयतालिका तय कीगयी है और साल गुजरते-गुजरते यह हो जाएगा.
पिछले साल जुलाई में उफा में एससीओ के शिखर सम्मेलन में भारत, पाकिस्तान और ईरान को सदस्यता प्रदान करने के लिए प्रशासनिक अड़चनें दूर कर दीगयी थी जिसके बाद भारत के लिए इस समूह का सदस्य बनने की प्रक्रिया का आगाज हो गया.
रूस, चीन, किरगिज गणराज्य कजाखस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों ने 2001 में शंघाई में एससीओ की स्थापना की.
आस्ताना में 2005 में आयोजित एससीओ की शिखर बैठक में भारत, पाकिस्तान और ईरान को पर्यवेक्षक के रूप में समूह में प्रवेश मिला.
ताशकंद में 2010 में आयोजित शिखर सम्मेलन मेंनयी सदस्यता पर लगी रोक हटा लीगयी जिससे समूह के विस्तार का मार्ग प्रशस्त हुआ.
भारत को महसूस होता है कि एससीओ के सदस्य केरूप में वह क्षेत्र में आतंकवाद के खतरों के समाधान में एक प्रमुख भूमिका निभाने में सक्षम होगा.
भारत एससीओ के साथ और उसके क्षेत्रीय आतंकवाद-निरोधी ढांचा :आरएटीएस: के साथ सुरक्षा संबंधित सहयोग प्रगाढ़ करने के प्रति भी उत्सुक है. आरएटीएस खास तौर पर सुरक्षा और रक्षा संबंधित मुद्दों से निबटता है.रूस एससीओ में भारत की स्थायी सदस्यता की वकालत करता रहा है जबकि चीन पाकिस्तान को शामिल करने की हिमायत करता रहा है.