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सलाम! अकोईमोरिता

-हरिवंश- 73 वर्ष की उम्र में अकोईमोरिता कल अपनी बनायी समृद्ध दुनिया से अलग हो गये. जीवन-उपलब्धि-सृजन के शिखर पर पहुंच कर, स्वेच्छा से संन्यास! कोई बड़ी घोषणा नहीं! कोई दिखावा-प्रदर्शन-आयोजन नहीं. अचानक निर्णय, फिर दूसरे ही क्षण से जीवन को दूसरे मोड़ पर डाल दिया. 73 वर्ष का पुराना ताना-बाना तोड़ कर. संघर्ष की […]

-हरिवंश-

73 वर्ष की उम्र में अकोईमोरिता कल अपनी बनायी समृद्ध दुनिया से अलग हो गये. जीवन-उपलब्धि-सृजन के शिखर पर पहुंच कर, स्वेच्छा से संन्यास! कोई बड़ी घोषणा नहीं! कोई दिखावा-प्रदर्शन-आयोजन नहीं. अचानक निर्णय, फिर दूसरे ही क्षण से जीवन को दूसरे मोड़ पर डाल दिया. 73 वर्ष का पुराना ताना-बाना तोड़ कर. संघर्ष की पीड़ा, चरम उपलब्धि का सुख, अद्भुत सृजन का संतोष और ख्याति के उत्कर्ष से स्वेच्छया विदाई. कल बीबीसी ने अकोई मोरिता के संघर्ष-उपलब्धि और यश का जिस भाव से उल्लेख किया, वह सृजन के प्रति सम्मान है.

कौन हैं, अकोई मोरिता? विश्व प्रसिद्ध सोनी कंपनी का नाम आपने सुना होगा. जापानी उद्योग का स्तंभ. दुनिया की विख्यात कंपनी. जापान के मशहूर और खरी बातें करनेवाला उद्योगपति. टेपरिकॉर्डर और वाकमैन ईजाद करनेवाली सोनी कंपनी के चेयर मैन. वीडियो और कांपैक्ट डिक्स टेक्नॉलजी के क्षेत्र की अग्रणी कंपनी, 1988 में सीबीएस रेकॉडर्स और 1989 में कोलंबिया पिक्चर्स खरीद कर अमेरिका में हलचल पैदा करनेवाली कंपनी. वैसे तो पांच वर्ष पहले ही सोनी कंपनी प्रेसिडेंट पद-छोड़ कर अकोई मोरिता महज नाम के लिए संस्था के प्रमुख रह गये थे. वह भी उन्होंने छोड़ दिया. उम्र के इस पड़ाव पर अपनी रची-बनायी चीजों के प्रति लगाव बढ़ता है. मोह-आकर्षण बांधते हैं. मन कमजोर होता है, पर अकोई मोरिता कोई साधारण इंसान नहीं हैं. इसी कारण उन्हें सलाम!
वह उद्योगपति परिवार में नहीं जन्मे. 500 डॉलर (भारतीय कीमत में लगभग 16 हजार रुपये) की पूंजी से ध्वस्त बिल्डिंग की तीसरी मंजिल के एक कमरे में उस ‘सोनी’ कंपनी का जन्म हुआ, जो विश्वविख्यात हुई. विश्व युद्ध में परास्त और हताश देश में, इस कंपनी की बुनियाद डाली अकोई मोरिता ने. वह हारी हुई जापानी सोना में सिपाही थे. टोक्यो शहर ध्वस्त हो गया था. मानसिक पराजय और गहरी राष्ट्रीय हताशा के उस दौर में, 7 मई 1946 की दोपहर लगभग 20 लोग बम से ध्वस्त भवन के जले कमरे में तीसरी मंजिल पर जुटे. वहीं सोनी कॉरपोरेशन का जन्म हुआ. तब अकोई मोरिता पच्चीस साल के थे. एक साल सेना में काम कर चुके थे. उस पल के बारे में अकोई मोरिता ने लिखा है.
भविष्य कभी इतना अनिश्चित नहीं लगा. जापान ने कभी युद्ध में पराजय नहीं देखी थी. उस दौर में केवल युवा ही आस्थावान हो सकते थे. तब भी मैं आशावान था. मुझे अपने आप पर और अपने भविष्य पर भरोसा था’ … उस दौर में भी मुझे लगा कि भविष्य में मेरी भूमिका है. पर तब पता नहीं था कि भूमिका इतनी बड़ी होगी.

उस दौर के बारे में और भी बहुत कुछ लिखा है, अकोई मोरिता ने. अपने विश्व प्रसिद्ध संस्मरण ‘मेड इन जापान’ में. विश्व में सबसे अधिक बिकनेवाली पुस्तकों में से एक हर उस युवा को यह पुस्तक पढ़नी चाहिए, जो अपने बाजुओं और श्रम से कुछ हासिल करना चाहता है. जापान परास्त राष्ट्र था. राष्ट्रीय अपमान की उस पीड़ा को झेलते हुए युवकों की इस टीम ने पाया कि टेक्नॉलाजी में जापान पिछड़ा था. उसका परिणाम हुआ, युद्ध में पराजय.

इस कारण अकोई मोरिता जैसे लोगों ने काम-व्यवसाय का जो क्षेत्र चुना, उसमें दुनिया में अद्वितीय होने का संकल्प लिया. और कर दिखाया. युद्ध के मैदान में, हिरोशिमा में जापान, पश्चिमी राष्ट्रों से हार गया. हार की उस घड़ी में तब युवा जापानियों ने सृजन का जो संकल्प लिया, उसका परिणाम सामने है. आधुनिक युद्ध मैदान में नहीं, बाजारों में हो रहे हैं, और दुनिया के बाजार में जापान फिर महाशक्ति है. अमेरिकी बाजार में पग-पग पर जापान की पहचान है. हाल ही में येन के मुकाबले, डॉलर का अवमूल्यन हुआ है. दुनिया की सबसे ताकतवर मुद्रा येन है.


पर जापान के इस मुकाम तक पहुंचने की कथा क्या? अकोई मोरिता ने अपनी जीवनी में चर्चिल को उद्धत किया है कि यह कथा खून, पसीने, आंसू और श्रम से लिखी गयी है. सोनी कंपनी का पहला प्रोडक्ट (उत्पाद) प्रेशर कुकर था, जो बाजार में सफल नहीं हुआ. फिर रेडियो सफल हुआ, तब अमेरिका के बड़े डिपार्टमेंटल स्टोरों (दुकानों) में अपना सामान बेचने के लिए यह कंपनी गयी.

एक जगह एक स्टोर के मालिक ने कहा, आपका रेडियो अच्छा है, पर आपकी कंपनी को कोई नहीं जानता. आप अपने प्रोडक्ट बना कर अमुक (50 वर्ष पुरानी) बड़ी कंपनी को बेच दीजिए, उसका लेबल लगते ही आपकी चीजें काफी बिकेंगी. हम भी बेचेंगे. तब मोरिता ने जवाब दिया, ‘ मैं अपने नये प्रोडक्ट के साथ अपाके सामने हूं. आपकी कंपनी पचास वर्षों की सीढ़ी पर मैं/ मेरी कंपनी पहला कदम रख रहे हैं. मैं आपसे वायदा करता हूं कि आज से ठीक पचास वर्षों बाद मेरी कंपनी का भी वहीं नाम, ख्याति और स्तर होगा, जो आज आपका हैं.’

भारी आर्डर रद्द कर मोरिता वहां से आये. वहां के लोग स्तब्ध थे कि कोई कंपनी इतना बड़ा आर्डर (बल्क आर्डर) सिर्फ इस कारण छोड़ सकती है कि उसकी नयी अज्ञात कंपनी का लेबल उस रेडियो पर नहीं होगा. पर यही राष्ट्र भावना और संकल्प ने ध्वस्त जापान को आज विश्व बाजार की सबसे बड़ी महाशक्ति बना दिया है.

ठीक 40 वर्षों बाद पश्चिम से परास्त जापान अब दुनिया में जापानी मूल्यों-संस्कृति की बात कर रहा है. जापान में सबसे अधिक बिकनेवाली हाल की कौन सी पुस्तक है? मलेशिया के प्रधानमंत्री महातीर मोहम्मद की लिखी पुस्तक ‘द एशिया दैट कैन से नो’ . इस पुस्तक में महातीर मोहम्मद ने आवाहन किया है कि दुनिया की आर्थिक महाशक्ति जापान को, द्वितीय विश्व युद्ध के अध्याय को भूल कर अंतरराष्ट्रीय राजनीति की बड़ी ताकत बननी चाहिए. जापान में युवा लोगों के बीच एक लहर चल रही है. पश्चिमी, खासतौर से अमेरिकी रागरंग-संस्कृति का चोला उतार कर, जापानी संस्कृति-ताकत को पुन: संजाने-संवारने का अभियान.

1944 में ध्वस्त जापान, निराश जापान, मन से टूटे जापान और पस्त जापान को यहां तक जिन हजारों-लाखों जापानी बाजुओं ने पहुंचाया, उनमें से अकोई के मजबूत बाजू भी हैं. प्रेरणादायक, उदार और ऊर्जा से भरपूर.1944 के उन दिनों को याद करते हुए अकोई मोरिता ने लिखा है. हिरोशिमा पर बम गिरने के बाद जापान के सम्राट ने राष्ट्र को संबोधित किया. इसके पहले सम्राट ने कभी अपने लोगों को सीधे संबोधित नहीं किया था. उस संबोधन में सम्राट ने कहा, ‘ अपनी सारी ताकत एकत्र करिए और भविष्य के निर्माण में लग जाइए, विश्व की प्रगति के साथ कदमताल मिला कर चलिए, यही करना होगा, असह्य पीड़ा झेलते हुए, असहनीय कष्ट झेलते हुए.’

जापान ने यही किया और 40 वर्षों बाद संहार-विनाश की वह राख, हताशा, पराजय का वह बोध, सृजन, समृद्धि, वैभव और आत्मगौरव से धो-पोंछ दिया है. क्या बुद्ध, महावीर, अशोक और चंद्रगुप्त के बिहार में भी कभी आत्मगौरव का यह भाव, सृजन के प्रति समर्पण, श्रम के प्रति श्रद्धा और आत्मगौरव का बोध जगेगा?

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