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बेटा, ये जख्म तो भर जायेंगे पर दिल पे जो लगे हैं, उनका क्या ?

बैंक से पिता की पेंशन निकाल कर घर लौटे बेटे से पिता ने कुछ पैसे मांगे, तो बहू बिफर गयी. वह सास पर टूट पड़ी. आरोप था कि इसने ही ससुर को पट्टी पढ़ायी है. पिटाई शुरू कर दी. ससुर बचाव में आये, तो दोनों को बुरी तरह पीट दिया. दोनों के हाथ फट गये […]

बैंक से पिता की पेंशन निकाल कर घर लौटे बेटे से पिता ने कुछ पैसे मांगे, तो बहू बिफर गयी. वह सास पर टूट पड़ी. आरोप था कि इसने ही ससुर को पट्टी पढ़ायी है. पिटाई शुरू कर दी. ससुर बचाव में आये, तो दोनों को बुरी तरह पीट दिया. दोनों के हाथ फट गये और खून निकल आया. बेटा पत्थर दिल बन कर खड़ा रहा. घटना बताती है कि हम कितने असंवेदनशील हो गये हैं.

जिस मां-बाप ने हमारी खुशियों के लिए सब कुछ कुरबान किया, उनके प्रति भी हम क्रूरता के साथ पेश आ रहे हैं. घटना को लेकर एक मां क्या सोचती है, उसके दिल में कितना दर्द है, कितनी पीड़ा है, आइए सुने मां की जुबानी.

विजय सिंह

पटना : बड़ी उम्मीद से तुझे पाला था, बचपन में जब तुम्हें बुखार लगता था, तो सीने से लगा कर रात भर थपकियां देती थी. तेरी नजरें उतारती थीं. तेरे पिता (रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी) फौरन डॉक्टर के पास तुझे ले जाते थे. तू जिस सामान के लिए अड़ जाता था, उसे खरीदने के लिए हमने कभी पैसे का मोह नहीं किया.

तेरी छोटी-छोटी जिद को अपना पेट काट कर पूरा किया. खून-पसीने की कमाई तुझे शान से बड़ा करने में खर्च किया. पढ़ाया-लिखाया और तेरी शादी कर दी. जब घर में बहू आयी तो हम दोनों की खुशियां दोगुनी हो गयी थीं. लगा कि बड़ा बेटा और बहू तो हैं ही नन्हा मेहमान भी घर में आयेगा. भगवान ने वह दिन भी दिखाये. हमारे पास सबकुछ है, लेकिन यह क्या? जब जिंदगी की सांझ हुई तो तुम सब बदल गये.

अब मैं 75 वर्ष की हूं, तेरे पिता 80 के पड़ाव पर हैं. हाथ-पांव लाचार हैं. बाल सफेद हो गये हैं. दांत हिल गये हैं. कमर झुक गयी है. अब तुम ही तो हो बुढ़ापे की लाठी, लेकिन आज तेरा चेहरा बदल गया है.

तू सिर्फ नाम का बेटा रह गया है. समय से खिलाना-पिलाना, दवा तो दूर अब तो तुम सब बेरहम हो गये हो. जिस लाठी को सहारा बनना था, वह अब देह पर टूट रही है. आज (1 जून, 2016) तो तुमने देखा न, तेरे सामने किस तरह से बहू ने हमें पीटा. ले ये फिर से देख मेरे हाथ के जख्म, खून बह रहे हैं. तू बेबस क्यों हैं, तू खामोश क्यों है. क्या तेरी भी इसमें सहमति है.

तू तो जानता है न, हर महीने तुम्हारे पिताजी अपो पेंशन से पांच हजार रुपये पोते की पढ़ाई पर खर्च करते हैं. आज तू पेंशन निकालने बैंक गया था. अगर उसमें से थोड़ा हमने मांग लिया तो क्या बुरा कर दिया. तुम तो वकील हो, पैसे भी कमाते हो. क्या अब अपने पेंशन पर भी हमारा कोई हक नहीं रह गया है. आज तेरे और बहू के बरताव ने शरीर पर तो जख्म दिये ही हैं, दिल भी दुखाया है. शरीर पर जो जख्म हैं वे तो भर जायेंगे पर दिल पे जो लगे हैं….उनका क्या?

तूने तो सुना ही होगा मां-बाप की दुआ और बददुआ के बारे में. फिर भी मैं तुम्हें बददुआ नहीं दे सकती. लेकिन मैं थाने गयी थी, यह देख पुलिस भी आयी है. हमने आवेदन दिया है. देख थाने से दारोगा जी आये हैं, तू इनसे काहे बहस कर रहा है, वकील होने का धौंस उन्हें क्यों दे रहा है. वो तो जांच करने आये हैं. देख बेटा, मैं और तेरे पिता न्याय मांगते हैं. कंकड़बाग थाने ने काउंसेलिंग के लिए बोला है. देखते हैं हमारे हिस्से क्या आता है. पर, बेटा तू तो रहम कर. मैं तो तेरी मां हूं न…

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