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कहानी का दूसरा पक्ष जानना भी जरूरी है

एक लड़का था, जो क्लास में अकसर देर से आता था. जब पहली बार वह क्लास में देर से पहुंचा, तो टीचर ने उसे डांटा और भीतर बैठने दिया. दूसरे दिन जब वह देर से आया, तो टीचर से उसे वापस जाने को कह दिया. तीसरे दिन देर से आया, तो टीचर ने उसे क्लास […]

एक लड़का था, जो क्लास में अकसर देर से आता था. जब पहली बार वह क्लास में देर से पहुंचा, तो टीचर ने उसे डांटा और भीतर बैठने दिया. दूसरे दिन जब वह देर से आया, तो टीचर से उसे वापस जाने को कह दिया. तीसरे दिन देर से आया, तो टीचर ने उसे क्लास के बाहर मुर्गा बन कर खड़े रहने को कहा. एक हफ्ते तक वह रोज देर से आता रहा और टीचर रोज उसे मुर्गा बनाता रहा. टीचर ने तय कर लिया कि अब इस बच्चे के पैरेंट्स को बुलाना ही होगा. उन्हें बताना होगा कि आपका बेटा रोज देर से आता है. समय के प्रति यह पाबंद नहीं है. पढ़ाई में इसका मन नहीं है.

दूसरे दिन सुबह जब टीचर स्कूल के लिए निकले तो रास्ते में उन्हें वही लड़का दिखा. वह साइकिल पर था और उसके थैले पर ढेर सारे न्यूज पेपर थे. वह हर घर में न्यूज पेपर रोल कर के डाल रहा था. वह यह काम जल्दी-जल्दी कर रहा था, ताकि उसे स्कूल में देर न हो जाये. टीचर की आंखें भर आयीं. जब लड़का न्यूज पेपर बांट कर डरता-डरता स्कूल पहुंचा, तो क्लास शुरू हो चुकी देख बाहर ही रुक गया और मुर्गा बन गया. टीचर ने उसे उठने को कहा और गले लगा लिया. उन्होंने उसे इजाजत दे दी कि वह देर से भी क्लास में आ सकता है.

यह कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि हम हर कहानी का दूसरा पक्ष भी देखें. कई बार जो दिखता है, वह सही नहीं होता है. हमें सामनेवाले की केवल गलतियां, कमियां दिखती हैं, उसका गलत व्यवहार दिखता है, लेकिन हम इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश नहीं करते.

इसलिए दोस्तों, किसी के भी बारे में तुरंत धारणा मत बनाओ. उस व्यक्ति की मजबूरी समझने की कोशिश करो. हो सकता है कि आप उसकी कहानी सुन अपना नजरिया ही बदल दें.

daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in

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