एक्टिंग से राजनीति में आए मशहूर बॉलीवुड अभिनेता परेश रावल का कहना है कि उन्हें अभी फ़िल्में भी करनी है और समाज के लिए भी काम करना है.
गुजरात से भारतीय जनता पार्टी के सांसद परेश रावल की पहचान क्या है, नेता की या अभिनेता की? इस सवाल पर उनका कहना है कि उनकी पहचान तो अभिनय से ही है.
हालांकि वे कहते हैं, “डायरेक्टर के कट कहने के बाद काम पूरा हो जाता है और नेता का बोलने के बाद काम शुरू हो जाता है.“
उनके अनुसार नेता का काम बहुत कठिन होता है. यहां लोगों की दुआएं मिलती है, लेकिन काम नहीं किया तो गाली भी खानी पड़ती है.
परेश बचपन से अभिनेता ही बनना चाहते थे. उनका जन्म 1955 को हुआ है.
फ़िल्म ‘हेराफ़ेरी’ में उनका बाबूराव गणपतराव आप्टे का किरदार बहुत लोकप्रिय हुआ था. बाबूराव का चश्मा आज भी सब को याद है. इसके अलावा उन्होंने हर तरह की भूमिकाएं की हैं.
भाजपा सांसद परेश का मानना है कि मोदी सरकार के दो साल बेमिसाल है. वे मोदी की तारीफ करते हुए कहते हैं कि मोदी ने दो सालों में कोई छुट्टी नहीं ली. साथ ही कहते हैं कि उन्होंने गरीब को सर उठा कर जीना सिखाया.
पहले के अनुभव को याद करते हुए कहते हैं कि पहले जनता को लगता था कि पर्दे पर कॉमेडी करने वाला इंसान कैसे इतना गम्भीर काम कर सकता है. लेकिन समय के साथ सबको समझ में आ गया कि नेता के रूप में भी वे एक काबिल इंसान हैं.
1994 में आई ‘फिल्म’ सरदार परेश रावल के करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में से है. इसमें निभायी गई भूमिका उनके दिल के बेहद करीब है. 2012 में आई फिल्म ‘ओह माय गॉड’ भी उन्हें पसंद है.
उनका कहना है कि अपने भीतर जिम्मेदारी का अहसास आया तो नेता बनकर पहले से अधिक परिपक्व हो गए हैं.
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