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तर्कों और धारणाओं पर राजनीतिक पसंद-नापसंद हावी, विकास का नहीं है कोई विकल्प
लोकसभा चुनाव, 2014 के वक्त केंद्र में एक ऐसी सरकार थी, जिसकी चर्चा भ्रष्टाचार और विकास के मंद पड़ते जाने के चलते ज्यादा थी. दो साल बाद आज मोदी सरकार की मुख्य आलोचना इन बातों को लेकर है कि विकास और अच्छे दिनों के जो वादे किये गये थे, उसकी दिशा में प्रगति की रफ्तार […]
लोकसभा चुनाव, 2014 के वक्त केंद्र में एक ऐसी सरकार थी, जिसकी चर्चा भ्रष्टाचार और विकास के मंद पड़ते जाने के चलते ज्यादा थी. दो साल बाद आज मोदी सरकार की मुख्य आलोचना इन बातों को लेकर है कि विकास और अच्छे दिनों के जो वादे किये गये थे, उसकी दिशा में प्रगति की रफ्तार और तेज होनी चाहिए.
लेकिन, पिछले दो सालों में जिस तरीके से भ्रष्टाचार मुक्त और पारदर्शी शासन के लिए कुछ उल्लेखनीय कदम बढ़ाये गये हैं, उनसे यह भरोसा तो जगा है कि भारत निराशा के भंवर से निकल कर विकास की राह पर बढ़ रहा है. आर्थिक विकास और भ्रष्टाचार के मोर्चे पर दो के कामों पर नजर डाल रहा है यह विशेष पेज.
राजीव रंजन झा
संपादक, शेयर मंथन
दिसंबर, 2007 की बात है. उस समय यूपीए-1 का कार्यकाल था. गुजरात विधानसभा नाव में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा ने जीत दर्ज की थी. मीडिया में सवाल उछला कि यह जीत किसकी है, नरेंद्र मोदी की या भाजपा की? मैंने एक लेख में कहा- यह जीत इस विश्वास की है कि विकास के सहारे चुनाव जीते जा सकते हैं.
लेकिन, इसके साथ ही अगला सवाल उठा- विकास के नारे पर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार क्यों हार गयी और नरेंद्र मोदी की सरकार क्यों जीत गयी? मेरा मानना था कि मोदी की सरकार ने जिस तरीके से गुजरात में विकास को बढ़ाया, उसने आम जनता को ज्यादा छुआ. शायद वाजपेयी सरकार ने जो विकास किया, वह जीडीपी के आंकड़ों में भले ही झलका हो, वोट देनेवाले बहुमत तक नहीं पहुंच पाया. इसके पीछे शायद वाजपेयी या मनमोहन सिंह की मंशा में कोई कमी नहीं थी, बल्कि आम जनता से केंद्र सरकार की दूरी है. स्वाभाविक रूप में राज्य सरकार जनता के ज्यादा करीब होती है और उसके अच्छे-बुरे कार्य जनता को जल्दी महसूस होते हैं.
विकास एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है. यह स्वाभाविक है, क्योंकि भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ते समय विकास को ही मुख्य मुद्दा बनाया था. लेकिन मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि 2014 के चुनाव में विकास इकलौता बड़ा मुद्दा था. यूपीए-2 और खास कर कांग्रेस से लोगों का गुस्सा भ्रष्टाचार की नित-प्रतिदिन आती खबरों की वजहों से भी ज्यादा था. लोगों का गुस्सा महंगाई को लेकर भी था. महंगाई पैदा करनेवाले तत्वों को सरकार में बैठे लोगों का संरक्षण मिलने के संदेह ने इस गुस्से को बढ़ाया था.
इसलिए मोदी सरकार के दो साल के कामकाज का लेखा-जोखा लेते समय इन सारे पैमानों को देखना चाहिए. साथ में वह बात भी याद रखनी चाहिए केंद्र सरकार के कामकाज आम जनता को प्रत्यक्ष रूप से बहुत कम छूते हैं. लोगों को जिन बातों पर आम तौर पर सबसे ज्यादा शिकायतें होती हैं, वे मुख्यतः राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों से जुड़ी हैं.
मोदी सरकार के दो साल का आकलन करते समय सबसे पहले भ्रष्टाचार के बिंदु को देखना जरूरी है. इन दो वर्षों में सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हैं. कोई ललित मोदी और माल्या को लेकर चुटकुले गढ़ना चाहे, तो वह उसकी इच्छा है. लेकिन यह स्पष्ट है कि केंद्र सरकार में शीर्ष स्तर पर, मंत्रालयों के स्तर पर भ्रष्टाचार की शिकायतें अब सुनने को नहीं मिलतीं. अब तक मोदी सरकार के किसी भी मंत्री पर भ्रष्टाचार के दाग नहीं लगे हैं. अब किसी जयंती टैक्स की बातें नहीं छिड़तीं. किसी मंत्री को मिस्टर टेन परसेंट का तमगा नहीं मिला है.
लोग नौकरशाही को उस तरह की क्लीन-चिट नहीं दे रहे. मगर यह भी सुनने को मिलता है कि अब पहले की तरह ‘दाम दो- काम लो’ वाली व्यवस्था नहीं चल पा रही. चाणक्य ने लिखा था कि शासन के कर्मचारी कब भ्रष्ट आचरण करते हैं, इसका पता लगाना उतना ही मुश्किल है, जितना यह जानना कि एक मछली कब पानी पीती है. कोई भी व्यवस्था भ्रष्टाचार से पूर्णतः मुक्त नहीं हो सकती. लेकिन यूपीए-2 की तुलना में मौजूदा सरकार भ्रष्टाचार के मामले में काफी अलग जरूर दिखती है.
महंगाई के मामले में पिछले साल खास कर दाल की कीमतों के बेहिसाब बढ़ने से मोदी सरकार अचानक सवालों के घेरे में आ गयी थी. दाल की कीमतों पर अब तक अंकुश नहीं लग पाया है.
लेकिन व्यापक रूप से देखें तो महंगाई नियंत्रण में ही है. बीच-बीच में कभी प्याज, कभी टमाटर वगैरह की कीमतें उछल जाती हैं, मगर यह स्थायी रुझान नहीं बना है. थोक महंगाई दर 17 महीनों तक नकारात्मक रहने के बाद अप्रैल में फिर से शून्य के ऊपर उठी है. यानी लगभग डेढ़ साल तक थोक में चीजों के दाम घटते रहे हैं. अब अप्रैल में थोक महंगाई दर शून्य से ऊपर आयी है, मगर बढ़ कर केवल 0.34 प्रतिशत ही रही है.
खुदरा महंगाई दर भी बीते दो वर्षों में काफी नरम ही रही है और सामान्यतः पांच प्रतिशत के नीचे चलती रही है. इसकी तुलना अगर यूपीए-2 के वर्षों से करें, तो उस समय महंगाई दर लगातार दो अंकों में यानी 10 प्रतिशत के ऊपर बनी हुई थी. पिछले दो वर्षों की महंगाई दर नीचे रहने की चर्चा करते समय यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि इन दो वर्षों में देश में सूखे की स्थिति रही है. सूखे के बाद भी एकाध चीजों को छोड़ कर खाद्य महंगाई दर काफी हद तक नियंत्रण में रही.
बेशक, अप्रैल में खुदरा महंगाई दर एक बार फिर पांच प्रतिशत के ऊपर गयी, जिस पर सरकार की खास नजर रहनी चाहिए. सरकार को यह भी नहीं भूलना चाहिए बीते दो वर्षों में महंगाई नियंत्रण में रहने के पीछे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल और अन्य जिंसों (कमोडिटी) के दाम काफी टूट जाने का एक बड़ा योगदान रहा है. भविष्य में अंतरराष्ट्रीय कीमतें बढ़ने पर उसका असर यहां भी होगा. दाल की कीमतों के मसले में हमने देखा है कि एक बार चीजें हाथ से निकल जाने पर सरकार की प्रतिक्रिया और फौरन अंकुश लगा पाने की क्षमता ढीली रही है. भविष्य में महंगाई को लेकर कोई भी सुस्ती इस सरकार को काफी महंगी पड़ सकती है.अब अगर बात करें विकास की, तो यह ऐसा शब्द है जिसके मायने हर किसी के लिए अलग-अलग हो सकते हैं.
किसी के लिए इसका मतलब केवल इतना हो सकता है कि आजादी के सात दशकों बाद पहली बार उसके घर में बिजली का एक बल्ब जल गया. वहीं किसी के लिए इसका मतलब यह हो सकता है कि देश के किसी बड़े अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की तुलना अब हम दुनिया के किन-किन बड़े हवाई अड्डों से कर सकते हैं.
अगर आप ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल से पूछेंगे, तो वह विकास का मतलब यह बतायेंगे कि पहले बिजली की मांग ज्यादा होती थी, आपूर्ति कम. अब हर समय अतिरिक्त बिजली उपलब्ध रहती है. आप पूछेंगे कि अतिरिक्त बिजली है तो फिर बिजली जाती क्यों है? गोयल साहब कहेंगे कि यह सवाल अपने राज्य के बिजली बोर्ड से पूछें, जो बिजली उपलब्ध रहने पर भी उसे खरीद कर आप तक नहीं पहुंचाता है.
अगर आप नितिन गडकरी से विकास का मतलब पूछेंगे कि तो वह गिनायेंगे कि सड़क निर्माण की गति 24-25 किलोमीटर प्रति दिन पर पहुंच गयी है, जबकि यूपीए शासन में सड़क निर्माण दो किलोमीटर प्रति दिन की धीमी रफ्तार पर सिमट गया था. आप रेल मंत्री सुरेश प्रभु से विकास का मतलब पूछेंगे, तो वह बतायेंगे कि रेलवे 5.6 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं के साथ विकास की गाड़ी को आगे बढ़ा रहा है. ब्रॉड गेज लाइनें बिछाने की गति 2014 में 4.3 किलोमीटर प्रति दिन थी, जो अब 2016 में बढ़ कर 7.8 किलोमीटर प्रति दिन हो गयी है.
अब इन बातों पर आप चाहें तो कह सकते हैं कि यह सब आंकड़ेबाजी है. पूछ सकते हैं कि जीडीपी विकास दर 7 सात के ऊपर रहने से हमारी-आपकी जिंदगी पर क्या असर पड़ा? दूसरी ओर, चाहें तो आप यह महसूस कर सकते हैं कि सड़कें ज्यादा बनने या रेल पटरियां ज्यादा बिछने से उतनी ही मात्रा में आर्थिक गतिविधियां बढ़ीं, कंपनियों और लोगों के हाथों में ज्यादा पैसा आया, उतने ही ज्यादा लोगों को रोजगार मिला.
आज की हकीकत यह है कि चाहे बहस किसी आर्थिक मुद्दे पर हो, मगर लोगों के तर्कों और धारणाओं पर राजनीतिक पसंद-नापसंद ही हावी रहती है. इसलिए अगर आप विकास के बारे में मुझसे पूछेंगे तो मैं पलट कर पूछूंगा कि आप मोदी समर्थक हैं या विरोधी? अगर मोदी समर्थक हैं तो विकास हुआ, अगर मोदी विरोधी हैं तो कुछ नहीं हुआ. मेरे कुछ कहने से क्या होगा, आप मानेंगे तो वही जो आप मानना चाहते हैं.
इस राजनीतिक खेमेबंदी के बावजूद मैं कहूंगा कि अंततः विकास ही हर धारणा पर हावी होगा. ऊपर मैंने दिसंबर, 2007 के अपने जिस लेख का जिक्र किया था, उसका शीर्षक था – विकास का विकल्प नहीं. और आज भी यह बात उतनी ही सच है.
भ्रष्टाचार उन्मूलन : वादे बनाम काम
घोषणा पत्र में वादे
– इ-गवर्नेंस द्वारा पारदर्शिता को बढ़ावा.
-प्रशासन और नागरिकों के बीच कार्यप्रणाली में मनमानी के अवसर समाप्त करना.
-प्रत्येक स्तर पर प्रक्रियाओं और तरीकों को सरलीकृत करना
-नागरिकों, संस्थाओं और प्रतिष्ठानों में आपसी विश्वास बढ़ाना.
अब तक क्या-क्या हुआ
द इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड-2015
लोकसभा में पारित हो चुके इस बिल के कानून का रूप से लेने से कारोबार से जुड़ी कई मुश्किलें आसान हो जायेंगी. इससे घाटे में चल रहीं कंपनियों को बंद करने, कर्मचारियों का वेतन भुगतान और कर्जों की रिकवरी में आसानी होगी. नये बिल में ‘द नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल’ और ‘द डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल’ (डीआरटी) के गठन का प्रस्ताव किया गया है. द नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल कंपनियों के दिवाला होने की स्थिति में संबंधित मामलों की सुनवाई करेगा, जबकि व्यक्तिगत ऋणों की उगाही से संबंधित मामलों पर फैसले देने का अधिकार डीआरटी को होगा. व्यापार से जुड़े लचर प्रावधानों के कारण ‘ईज ऑफ डुइंग बिजनेस’ इंडेक्स के मामले में भारत की स्थिति चिंताजनक है.
माना जा रहा है कि नये कानून को लागू करने पर विश्व बैंक द्वारा जारी किये जानेवाले इस इंडेक्स में भारत की स्थिति बेहतर हो सकेगी. यहां उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने मार्च माह में भारतीय रिजर्व बैंक को विलफुल डिफॉल्टर लोगों की सूची जारी करने के निर्देश दिये थे. बीते दो वर्षों (2013 से 2015) के दौरान 29 सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों द्वारा 1.14 लाख करोड़ रुपये डूबे कर्ज को माफ करने की खबर मीडिया में आने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया था.
ब्लैकमनी बिल (द अनडिस्क्लोज्ड फॉरेन इनकम एंड असेट (इंपोजिशनऑफ टैक्स) बिल
अपनी चुनावी वादे के मद्देनजर भाजपा ने इस बिल को संसद में पेश किया था. इस प्रावधान के अनुसार निर्धारित अवधि में अपनी संपत्ति को घोषित करने की छूट दी गयी थी. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक 30 सितंबर, 2015 तक केवल 3770 करोड़ रुपये की जानकारी हासिल हो सकी. सरकार ने इस प्रावधान के तहत लोगों को संपत्ति की घोषणा करने पर 30 प्रतिशत टैक्स व 30 प्रतिशत जुर्माना भरने का विकल्प दिया था. कुल मिला कर, सरकार ने कालेधन को रोकने और वापस लाने के लिए कानूनी स्तर पर कई प्रावधान किये हैं, लेकिन इस मामले में बहुप्रतीक्षित सफलता अभी कोसों दूर नजर आती है.
डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) :
– मोदी सरकार ने आम लोगों को सब्सिडी का सीधे तौर पर फायदा देने के उद्देश्य से लाभ राशि को बैंकों खातों में ट्रांसफर करने की योजना लागू की है. सब्सिडी के लिए सभी खातों को आधार नंबर से जोड़ने की कवायद शुरू की गयी.
– सरकार के दावे के मुताबिक ‘पहल’ योजना से वर्ष 2014-15 में कुल 14672 करोड़ रुपये की बचत हुई. इसके अलावा, 1.62 करोड़ फर्जी राशन कार्डों को रद्द कर 10 हजार करोड़ रुपये बचाये गये.
– साथ ही, 1.5 लाख फर्जी पेंशनधारकों को लाभार्थी सूची से हटा गया.
– सरकार ने वर्ष 2015-16 में मनरेगा से तीन हजार करोड़ बचाने का लक्ष्य रखा है.
प्राकृतिक संसाधनों का पारदर्शी आवंटन
– मोदी सरकार ने संस्थागत भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कोल ब्लॉक आवंटन, एफएम रेडियो स्पेक्ट्रम और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने पर जोर दिया.
– भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम,1988 में संशोधन : प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 अप्रैल, 2015 को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम,1988 में संशोधन की मंजूरी दी थी. इसके तहत भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) विधेयक 2013 में आधिकारिक संशोधनों को शामिल किया गया. प्रस्तावित संशोधनों से देश में भ्रष्टाचार निरोधक कानूनों की खामियों को दूर करने तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के तहत भारत के उत्तरदायित्व को प्रभावी रूप से लागू करने में मदद मिलेगी.
– सरकार ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा नियुक्त सार्वजनिक क्षेत्र के छह प्रमुखों बरखास्त कर दिया था. सितंबर, 2014 में सिंडिकेट बैंक के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक एसके जैन की घूस लेने के आरोप में गिरफ्तारी भी हुई थी.
– नरेंद्र मोदी ने 2014 में जनता से वादा किया था कि भ्रष्ट अधिकारियों को बख्शा नहीं जायेगा, लेकिन दो साल पूरा होने के बाद भी इस दिशा में कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया.
भ्रष्टाचार के िखलाफ कार्रवाई
अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाला
वर्ष 1985 में भारत ने 21 वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर खरीदे. इसके लिए तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री माग्रेट थैचर ने भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी को तैयार किया. उस समय यह पूरी तरह से ब्रिटिश कंपनी थी. थैचर ने राजीव गांधी को विशेषज्ञों की सलाह को दरकिनार कर यह हेलीकॉप्टर खरीदने के लिए आग्रह किया.
इसे ब्रिटेन द्वारा भारत को एड के रूप में दिये गये 65 मिलियन पाउंड से खरीदा गया. हालांकि भारत को दिये गये हेलीकॉप्टर अच्छे साबित नहीं हुए और 1988 में दो दुर्घटनाग्रस्त हो गये, जिसमें 10 लोगों की मौत हो गयी.फिर अगस्त 1999 में एयरफोर्स ने वीआइपी हेलीकॉप्टर खरीदने का प्रस्ताव सरकार को दिया. फरवरी 2010 में रक्षा मंत्रालय ने अगस्ता वेस्टलैंड के साथ 12 हेलीकॉप्टर 3,726 करोड़ में खरीदने का समझौता किया.
नवंबर 2012 से फरवरी 2013 के बीच तीन हेलीकॉप्टर पालम एयरबेस पर पहुंचे. 12 फरवरी, 2013 को इटली पुलिस ने इस हेलीकॉप्टर सौदे में घूस देने के आरोप में फिनमैनिका के प्रमुख ओरसी को गिरफ्तार किया. 25 फरवरी, 2013 को सीबीआइ ने 11 लोगों, जिसमें एयर चीफ मार्शल एसपी त्यागी, उनके परिवार के सदस्य शामिल थे, और 4 कंपनियों के खिलाफ इस सौदे में दलाली के आरोप में जांच करने के लिए मामला दर्ज किया. सरकार ने भी माना कि इस सौदे में दलाली दी गयी है.
27 फरवरी 2013 काे सरकार ने इस मामले की जांच के लिए राज्यसभा में संयुक्त समिति गठित करने का प्रस्ताव पेश किया. जनवरी, 2014 में भारत ने इस सौदो को रद्द करने का फैसला लिया. 11 जनवरी, 2014 को दलाल हैशके की डायरी में कुछ नेताओं के नाम दर्ज होने की बात सामने आयी.
सितंबर 2014 में प्रवर्तन निदेशालय ने वकील गौतम खेतान को इस मामले में गिरफ्तार किया. अक्तूबर, 2014 में इटली की अदालत ने ओरसी और अगस्ता-वेस्टलैंड के पूर्व प्रमुख सैपोलिनी को भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी कर दिया.
7 अप्रैल, 2016 को इटली की उच्च अदालत ने दोनों को आरोपी मानते हुए 2 दो साल की सजा सुना दी. इसके बाद भारत में राजनीतिक बवाल के बाद सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय ने गौतम खेतान और पूर्व वायु सेना प्रमुख एसपी त्यागी से कई दौर की पूछताछ की. प्रवर्तन निदेशालय इस मामले में 360 करोड़ रुपये घूस देने के मामले की जांच कर रहा है.
वीरभद्र सिंह के खिलाफ तेज हुई जांच
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लाउंड्रिंग के मामले में केस दर्ज किया है. उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले की जांच सीबीआइ पहले से कर रही है.
सीबीआइ की ओर सितंबर में दर्ज एक आपराधिक मामले का संज्ञान लेते हुए प्रवर्तन निदेशालय मनी लॉड्रिंग रोकथाम अधिनियम के तहत इस बात की जांच कर रहा है कि वीरभद्र सिंह और उनके परिवार के सदस्यों ने 2009 से 2011 के बीच कैसे ज्ञात स्रोतों से अधिक 6.1 करोड़ रुपये कमाये. गौरतलब है कि इस दौरान वे केंद्रीय इस्पात मंत्री थे. सीबीआइ वीरभद्र सिंह, उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह, बीमा एजेंट आनंद चौहान के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारक अधिनियम के तहत पहले ही मामला दर्ज कर चुकी है. सीबीआइ को आशंका है कि 2009-11 के दौरान वीरभद्र ने कथित तौर पर अपने और अपने परिवार के नाम एलआइसी में एजेंट चौहान के जरिये 6.1 करोड़ रुपये निवेश किया था. उन्होंने इस धनराशि को कृषि से आमदनी बताया था. कृषि से होनेवाली आय पर किसी तरह का कर नहीं लगता है. वीरभद्र का कहना है कि सेब बागान से यह आदमनी हुई है. एलआइसी एजेंट चौहान और वीरभद्र सिंह के बीच जून 2008 में सेब के बगीचे के रखरखाव और सेब बेचने के लिए एमओयू किया गया. यह एमओयू स्टैंप पेपर पर किया गया, लेकिन जांच में पता चला कि ये स्टैंप पेपर आरोपियों को नहीं बेचे गये थे.
आय से अधिक संपत्ति में सीबीआइ की पूछताछ : वीरभद्र पर आरोप है कि 2012 में नया आयकर रिटर्न दाखिल कर इस धनराशि को कृषि आय के रूप में वैध बनाने की कोशिश की गयी.
नये आइटीआर में कृषि आय को उचित नहीं पाया गया. सीबीआइ ने प्राथमिकी दर्ज करने के बाद वीरभद्र और उनके परिवार से संबंधित विभिन्न परिसरों पर छापे मारे थे. प्रवर्तन निदेशालय ने दिल्ली में वीरभद्र सिंह की 8 करोड़ की संपत्ति को जब्त कर लिया है. दिल्ली हाइकोर्ट ने अप्रैल में सीबीआइ को उनसे पूछताछ की इजाजत दे दी है, लेकिन गिरफ्तारी से पहले कोर्ट को सूचित करने का आदेश दिया है.
महाराष्ट्र के कद्दावर नेता छगन भुजबल हुए गिरफ्तार
एनसीपी के कद्दावर नेता और महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री को प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लॉड्रिंग के मामले में 16 मार्च को गिरफ्तार कर लिया. पूर्व उपमुख्यमंत्री उनके रिश्तेदारों की कंपनियों में पैसे के निवेश की जानकारी नहीं दे पाये. प्रवर्तन निदेशालय का आरोप है कि पथ निर्माण मंत्री रहते भुजबल ने ऐसी कंपनियों को ठेके दिये, जिन्होंने उनकी कंपनियों में निवेश किया. हालांकि भुजबल के बेटे और भतीजे की कंपनियों से वे किसी तरह नहीं जुड़े थे, लेकिन पद का दुरुपयोग करते हुए उन्होंने इन कंपनियों को लाभ पहुंचाया.
17 जून, 2015 को प्रवर्तन निदेशालय ने छगन भुजबल, भतीजे समीर और अन्य रिश्तेदारों के खिलाफ प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉउंड्रिंग एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया. महाराष्ट्र के एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा भुजबल के 26 ठिकानों पर छापा मारने के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने यह कदम उठाया. 2006 में उपमुख्यमंत्री रहते भुजबल द्वारा 100 करोड़ के तीन ठेकों में अनियमितता को लेकर एससीबी ने यह कदम उठाया. इसमें दिल्ली में बननेवाला महाराष्ट्र सदन भी शामिल था. आरोप है कि भुजबल ने नियमों की अनदेखी कर ये ठेके दिये और इसकी एवज में इन कंपनियों ने उनके रिश्तेदारों की कंपनियों में निवेश किया.
कैग ने भी 2009 में पेश अपनी रिपोर्ट में भुजबल द्वारा दिये गये ठेकों में गंभीर अनियमितता की बात कही थी. महाराष्ट्र के एंटी करप्शन ब्यूरो की रिपोर्ट में कहा गया कि इन ठेके के आवंटन में गड़बड़ी से राज्य को लगभग 2900 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है, जबकि महाराष्ट्र की पब्लिक एकाउंट कमेटी ने इससे 5-6 हजार करोड़ रुपये नुकसान होने की बात कही.
फरवरी में प्रवर्तन निदेशालय ने भुजबल के भतीजे समीर को गिरफ्तार किया. 2012 में भाजपा नेता किरीट सौमैया ने एसीबी से भुजबल के संपत्तियों की जांच करने की मांग की. बाद में बांबे हाइकोर्ट ने जनहित याचिका दाखिल कर भुजबल के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग की गयी. बांबे हाइकोर्ट ने 19 दिसंबर, 2014 को इस मामले की जांच के लिए एसआइटी के गठन का आदेश दिया. उसी हफ्ते मुंबई पुलिस ने समीर और पंकज भुजबल के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया.
भाजपा शासित राज्यों में भ्रष्टाचार के आरोप
मध्य प्रदेश : व्यापम घोटाले की गूंज
वर्ष 2013 में व्यापम घोटाला सामने आने से पहले मेडिकल प्रवेश परीक्षा में धांधली की शिकायतों को लेकर मध्य प्रदेश के कई थानों में मामले दर्ज किये गये, इस मामले में पहली गिरफ्तारी इंदौर की क्राइम ब्रांच ने 2013 में की. शुरुआती जांच जगदीश सागर पर टिकी रही, जिसे मुंबई के एक आलीशान होटल से गिरफ्तार किया गया. सागर, जिसके पास स्वयं एमबीबीएस की डिग्री थी, पर आरोप है कि उसने पैसे लेकर तीन साल में लगभग 100 लोगों को मेडिकल में प्रवेश दिलाया.
26 अगस्त, 2013 को इस मामले की जांच मध्य प्रदेश के एसटीएफ को सौंपी गयी. एसटीएफ ने इंदौर कोर्ट में दाखिल चार्जशीट में कहा कि 438 छात्रों ने अवैध तरीके से मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लिया है. इसके बाद एसटीएफ ने परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी को गिरफ्तार कर लिया. जांच में पाया गया कि यह घोटाला सिर्फ मेडिकल तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यापम द्वारा आयोजित अन्य परीक्षाओं में भी धांधली हुई है. नवंबर 2014 में हाइकोर्ट ने इस मामले की जांच एसआइटी को सौंपने का आदेश दिया. हालांकि हाइकोर्ट ने इस मामले की सीबीआइ से जांच कराने की कांग्रेस नेताओं की मांग को खारिज कर दिया.
कांग्रेस नेताओं का आरोप था कि इस मामले में सत्ता से जुड़े नेता शामिल हैं, इसलिए इसकी निष्प्क्ष जांच राज्य की एजेंसी नहीं कर सकती है. एसआइटी ने इस मामले में राज्यपाल रामनरेश यादव से पूछताछ की इजाजत मांगी, जिसे काेर्ट ने खारिज कर दिया. प्रवर्तन निदेशालय ने जगदीश सागर की कई संपत्तियों को जब्त कर लिया. बाद में इस मामले से जुड़े कई लोगों की संदिग्ध हालात में मौत हो जाने पर सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की जांच सीबीआइ से कराने की याचिका दाखिल की गयी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले मध्य प्रदेश सरकार ने इस मामले की जांच सीबीआइ से कराने का निर्णय लिया. अब इस मामले की जांच सीबीआइ के हवाले है.
छत्तीसगढ़ : कई आरोपों की चल रही है जांच
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह के पनामा पेपर लीक में नाम सामने आने के बाद कांग्रेस ने इस मामले की जांच सीबीआइ से कराने की मांग की. कांग्रेस ने रमन सिंह पर जनवितरण प्रणाली में हुए हजारों करोड़ रुपये के घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया.
इस घोटाले के आरोपी से जब्त दस्तावेज में रमन सिंह, उनकी पत्नी और अन्य रिश्तेदारों के नाम सामने आने के आरोप लगे. इस मामले की जांच राज्य की एंटी करप्शन ब्यूरो कर रहा है. हाल में रमन सिंह पर अगस्ता-वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर खरीदने में कंपनी को फायदा पहुंचाने का भी आरोप लगा है.
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