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जब सर्दी में सताये गले की सूजन

प्राय: सर्दी, खांसी तथा गैस के प्रभाव से कंठ में सूजन हो जाती है. इसके कारण शरीर में शिथिलता, मंद बुखार तथा गले में सरसराहट होती है और खाने-निगलने में कष्ट होता है. इस सूजन को कंठशोथ कहते हैं. कंठशोथ दो प्रकार का होता है- प्रथम तीव्र कंठशोथ तथा दूसरा जीर्ण कंठशोथ. जीर्ण कंठशोथ पुराना […]

प्राय: सर्दी, खांसी तथा गैस के प्रभाव से कंठ में सूजन हो जाती है. इसके कारण शरीर में शिथिलता, मंद बुखार तथा गले में सरसराहट होती है और खाने-निगलने में कष्ट होता है. इस सूजन को कंठशोथ कहते हैं.

कंठशोथ दो प्रकार का होता है- प्रथम तीव्र कंठशोथ तथा दूसरा जीर्ण कंठशोथ. जीर्ण कंठशोथ पुराना है. तीव्र कंठशोथ प्राय: सर्दी लगने के कारण हो जाता है. इसे एक्यूट ‘लेरेंजाइटिस’ कहा जाता है. इसके अलावा अधिक बोलनेवाले को यह रोग हो जाता है. बच्चों में यह रोग ग्लोटिस में ऐंठन के कारण हो जाता है. इसके कारण सांस अवरोध के लक्षण भी जाग उठते हैं तथा रोगी गहरी-गहरी सांस लेता है. इसके बाद खांसी भी आती है. इस रोग का आक्रमण अचानक होता है तथा इसे आसानी से पहचाना जा सकता है, क्योंकि जीभ के पिछले भाग में सूजन देखी जाती है. इसे स्पर्श कर अनुभव भी किया जा सकता है.

जीर्ण कंठशोथ का मुख्य कारण नासारोग है. यह अत्यंत कष्टदायक है, क्योंकि इसके कारण आवाज भारी हो जाती है तथा रोगी बार-बार कष्ट से कंठ साफ करने की कोशिश करता है. इसके लिए वह बार-बार खखारता है. जो लोग धूलकण में ज्यादा काम करते हैं, उनको यह रोग प्रभावित करता है. इसके अतिरिक्त पुरानी खांसी, रूमेटिज्म, टीवी, कैंसर तथा टाइफाइड इत्यादि के फलस्वरूप यह रोग हो जाता है. कंठ में संक्रमण होने के बाद फेफड़े भी प्रभावित हो जाते हैं. इसके कारण रोगी में व्याधि क्षमता का अभाव हो जाता है.

बार-बार सर्दी होती है तथा बार-बार कंठशोथ होता है. रोगी दुर्बल हो जाता है व बाद में फेफड़े में समस्या होने लगती हैं. कंठ शोथ के रोगी को पहचानना बिल्कुल आसान होता है. म्युकस मेंब्रेन श्वेत हो जाते हैं. इपीग्लोटिस में फोल्ड या सूजन हो जाता है. यक्ष्मा एवं क्षय रोग का भी इतिहास मिलता है. अत: किसी योग्य चिकित्सक से अवश्य मिलें. जीर्ण कंठशोथ सिफलिस के कारण भी देखा गया है. अत: इस ओर भी ध्यान देना चाहिए. सिफलिस की द्वितीय या तृतीय अवस्था में स्वर तंत्र के म्युकस मेंब्रेन में रक्तस्नव भी होता है. यह रोग तेजी से फैलता है तथा बाद में चलकर आवाज भी बैठ सकती है.

सावधानी व उपचार
कंठशोथ के रोगी को बोलना कम कर पूर्ण विश्रम करना चाहिए. बीड़ी, सिगरेट, शराब एवं गले में विक्षोभ उत्पन्न करनेवाले पदार्थ से बचना चाहिए. रोगी की व्याधि क्षमता बढ़ाने का उपाय करना चाहिए. रोगी को ठंड से बचना चाहिए तथा तुलसी पत्ता, गोलमिर्च से बना हुआ गर्म काढ़ा पीने से लाभ मिलता है.

डॉ कमलेश प्रसाद
आयुर्वेद विशेषज्ञ, नागरमल मोदी सेवा सदन और केसी राय मेमोरियल अस्पताल, रांची

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