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गांवों में केवल बूढ़े रह जायेंगे

– बड़ी संख्या में गांवों से होगा शहरों की ओर पलायन तकनीक और शहरीकरण पूरी दुनिया को तेजी से बदल रहे हैं. खास कर विकासशील देशों को. अपना देश भी इससे अछूता नहीं है. जैसे-जैसे ‘इंडिया’ 2025 की ओर बढ़ रहा है, हम ‘भारत’ के बारे में भूल रहे हैं. इस श्रृंखला में हम यह […]

– बड़ी संख्या में गांवों से होगा शहरों की ओर पलायन

तकनीक और शहरीकरण पूरी दुनिया को तेजी से बदल रहे हैं. खास कर विकासशील देशों को. अपना देश भी इससे अछूता नहीं है. जैसे-जैसे ‘इंडिया’ 2025 की ओर बढ़ रहा है, हम ‘भारत’ के बारे में भूल रहे हैं. इस श्रृंखला में हम यह आकलन पेश करने की कोशिश करेंगे कि 2025 में कैसी होगी हमारी जिंदगी. पेश है पहली कड़ी.

नयी दिल्ली : आज भारत में कस्बे तेजी से शहरों में तब्दील हो रहे हैं और शहर पहले से भी ज्यादा बढ़े हो रहे हैं. गांव बदल रहे हैं. सिमट रहे हैं. जनसांख्यिकी विशेषज्ञों का मानना है कि आनेवाले समय में शहरों की ओर यह पलायन और तेज होगा. इस समय रियल एस्टेट के एजेंट दफ्तरों और आवास के लिए कृषि योग्य भूमि खरीद रहे हैं.

सरकार 2025 तक सुपर हाइवे बनाने के लिए बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण कर रही है. ऐसे हालात में गांवों की संख्या और आबादी पहले से और कम हो जायेगी. इस तरह वर्ष 2025 तक भारतीय गांव सुनसान जगह हो जायेंगे, अधिकतर युवा शहरों की ओर पलायन कर जायेंगे और गांवों में मुख्यत: बुजुर्गो की आबादी रह जायेगी.

फिर गांवों में वही लोग बचेंगे, जिन्होंने अपनी जमीन बेच कर काफी पैसा कमाया है, क्योंकि उनके पास कृषि के अलावा दूसरी कोई योग्यता नहीं होगी. मसलन हरियाणा में बहुत से किसान अपनी जमीन बेच कर रातोरात करोड़पति हो गये हैं और वे अक्सर गोलबंद होकर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हैं.

अगर यही सिलसिला चलता रहा, तो ग्रामीण भारत में सामाजिक ताना-बना पूरी तरह बिखर जायेगा. ऐसी जगहों में, जहां गांववाले कर्ज के बोझ तले दबे हैं और कृषि से उचित आय नहीं हो रही है, आत्महत्या की घटनाएं बढ़ जायेंगी. फिर भारतीय गांव या तो फिल्मों में दिखनेवाले गांव की तरह बेहतर हो जायेंगे, जहां सरसों की खेत के इतर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना से बने अच्छे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होंगे.

सैम पित्रोदा के नेतृत्व में चल रहे नेशनल ऑप्टिक फाइबर मिशन से पंचायत स्तर पर ब्राडबैंड की सुविधा पहुंच जायेगी और इससे लोगों को डिजिटल चिकित्सा, ऑनलाइन शिक्षा और हो सकता है कि ऑनलाइन रोजगार भी मिलने लगे.

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के पीयूआरए (प्रोविजन ऑफ अरबन एमिनिटीज टू रूरल एरियाज) से गांव-शहर के अंतर को पाटा जा सकता था, जबकि प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना से गांवों में सड़कों की व्यवस्था अच्छी हो सकती थी.ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क और ब्रॉडबैंड दो महत्वपूर्ण गेमचेंजर हो सकते हैं. हाइवे इंजीनियरों की तकनीकी शाखा इंडियन रोड कांग्रेस के सदस्य एके ठाकुर का कहना है कि ग्रामीण सड़क प्राथमिकता में सबसे ऊपर हैं. कई राज्यों में 500 की आबादी वाले गांवों को सड़कों से जोड़ा जा चुका है.

योजना है कि 250 की आबादी वाले गांवों को भी सड़कों से जोड़ा जाये. एक बार अगर सड़क बन गये तो अन्य सभी ढांचागत सुविधाएं, बिजली से लेकर शिक्षा तक, रास्ते पर आ जायेंगी. कलाम ने पहले ही कहा था कि लोग शहरों की ओर पलायन इसलिए करते हैं क्योंकि उनके पास सुविधा और रोजगार के साधन नहीं हैं. अगर उन्हें आजीविका मिले तो गांव वाले क्यों शहर की झुग्गी में रहना चाहेंगे? इस बीच बाजार की ताकतों की नजरें ग्रामीण क्षेत्र पर टिक गयी हैं.

उनका मानना है कि भविष्य इन्हीं क्षेत्रों में है. यह क्षेत्र स्वास्थ्य, शिक्षा और उपभोक्ता वस्तुओं का बड़ा बाजार बन सकता है. विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक अब भी देश की 69 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र में रहती है. वर्ष 2025 तक केवल ग्रामीण स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजी निवेश 2.8 ट्रिलियन डॉलर का होगा.

गांधीजी ने कहा था कि अगर गांव खत्म हो गये तो भारत खत्म हो जायेगा. फिलहाल गांवों के खत्म होने की संभावना नहीं है, लेकिन इनके बदलते स्वरूप से ही भविष्य के भारत की दिशा तय होगी.

(साभार : द वीक)

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