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इनसान की कीमत उसके लिबास से न आंको
दक्षा वैदकर मिस्र देश में एक सूफी संत जुन्नुन रहते थे. एक नौजवान ने उनके पास आकर पूछा, ‘मुझे समझ में नहीं आता कि आप जैसे लोग सिर्फ एक चोगा ही क्यों पहने रहते हैं? बदलते वक्त के साथ यह जरूरी है कि लोग ऐसे लिबास पहनें, जिनसे उनकी शख्सियत सबसे अलहदा दिखे और देखने […]
दक्षा वैदकर
मिस्र देश में एक सूफी संत जुन्नुन रहते थे. एक नौजवान ने उनके पास आकर पूछा, ‘मुझे समझ में नहीं आता कि आप जैसे लोग सिर्फ एक चोगा ही क्यों पहने रहते हैं? बदलते वक्त के साथ यह जरूरी है कि लोग ऐसे लिबास पहनें, जिनसे उनकी शख्सियत सबसे अलहदा दिखे और देखने वाले वाह-वाही करें.’
जुन्नुन मुस्कुराये और अपनी अंगुली की एक अंगुठी निकालकर बोले, ‘बेटे, मैं तुम्हारे सवाल का जवाब जरूर दूंगा, लेकिन पहले तुम मेरा एक काम करो. इस अंगुठी को सामने बाजार में एक अशर्फी में बेचकर दिखाओ.’ नौजवान ने जुन्नुन की सीधी-सादी-सी दिखने वाली अंगुठी को देख कर मन ही मन कहा, ‘इस अंगुठी के लिए सोने की एक अशर्फी? इसे तो कोई चांदी के एक दीनार में भी नहीं खरीदेगा.’ यह सोच कर वह बाजार की ओर निकल गया. उसने बहुत से सौदागरों, परचूनियों, साहूकारों, यहां तक कि हज्जाम और कसाई को भी अंगुठी दिखायी, पर उनमें से कोई भी उस अंगुठी के लिए एक अशर्फी देने को तैयार नहीं हुआ. हार कर उसने जुन्नुन को जा कर कहा, ‘कोई भी इसके लिए चांदी के एक दीनार से ज्यादा की रकम नहीं दे रहा है.
जुन्नुन ने कहा, ‘अब तुम सड़क के पीछे सुनार की दुकान पर जा कर इस अंगुठी को दिखाओ. अंगुठी बेचना नहीं, बस कीमत पता कर के आओ.’ नौजवान दुकान पर गया. वहां से लौटने के बाद उसने जुन्नुन से कहा, ‘आप सही थे. बाजार में किसी को भी इस अंगुठी की सही कीमत का अंदाजा नहीं है. सुनार ने इस अंगुठी के लिए सोने की एक हजार अशर्फियों की पेशकश की है. यह तो आपकी मांगी कीमत से भी हजार गुना है.’ जुन्नुन ने कहा, ‘और यही तुम्हारे सवाल का जवाब है. किसी भी इनसान की कीमत उसके लिबास से नहीं आंको. नहीं तो तुम बाजार के उन सौदागरों की तरह बेशकीमती नगीनों से हाथ धो बैठोगे.
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in
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