झारखंड छात्र संघ पिछले सात सालों से राज्य में छात्रों के सवालों पर मुखर रहा है. छात्रों के हितों पर इस संगठन के कई लड़ाई छेड़ी और उसे मुकाम तक पहुंचाया. संघ से जुड़े युवा पत्र, ज्ञापन, वार्ता व आंदोलन के साथ आरटीआइ का भी सहारा अपनी लड़ाई को मुकाम तक पहुंचाने में लेते हैं. संघ ने जेपीएससी के घोटाले, वंचित समूह के छात्रों के हित सहित कई मुद्दों को जोरदार ढंग से उठाया है. पंचायतनामा के लिए झारखंड छात्र संघ के अध्यक्ष एस अली से राहुल ने खास बातचीत की. प्रस्तुत है प्रमुख अंश :
हमारे यहां सरकारी संस्थानों की शिक्षा व्यवस्था में वंचित समूह का हित कहां तक सध पाता है?
सरकारी विद्यालयों में सरकारी शिक्षा की स्थिति कमजोर होने के कई कारण हैं. सरकारी स्कूलों के शिक्षक खुद अपने बच्चों को वहां नहीं पढ़ाते. वे अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाते हैं. अल्पसंख्यक स्कूलों के शिक्षक भी वहां अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते. उनका भरोसा भी निजी स्कूलों पर ही है. मेरा मानना है कि ऐसा नियम होनी चाहिए कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक अपने बच्चों को उसी स्कूल में पढ़ायें. जब उनके बच्चे ऐसे स्कूलों में पढ़ेंगे, तो वे पढ़ाई के प्रति संवेदनशील होंगे.
हमारे देश में आरक्षण की व्यवस्था भी गलत है. इससे भी उपलब्ध सुविधा का वंचित समूह के बच्चे सही ढंग से लाभ नहीं ले पाते हैं. अगर मान लीजिए किसी आरक्षित समूह का लड़का डीएसपी बन जाता है, तो फिर वह संपन्न तबके में शामिल हो जाता है. उसके इस स्तर तक पहुंचने के बाद उसी जाति वर्ग के दूसरे परिवारों को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए. लेकिन देखने में आता है कि फिर उसके बच्चे को भी आरक्षण का लाभ मिलता है और वह बेहतर जगह पहुंच जाता है. जबकि अब उसे आरक्षण की जरूरत नहीं होनी चाहिए थी.
आदिवासी बच्चों की स्थिति बेहद खराब है. समय पूर्व स्कूल छोड़ने का उनका प्रतिशत भी अधिक है. जबकि उन्हें शिक्षा से जोड़ने के लिए बहुत सारी योजनाएं हैं. ऐसा क्यों?
आदिवासी समुदाय के नेताओं को अपने समुदाय के गरीब बच्चों के लिए काम करना होगा. पहले ऐसा देखने में आता था कि जब कोई बच्च स्कूल नहीं जाता था या बाहर में टहलता नजर आता तो उसे मुहल्ले समाज के दूसरे लोग भी नजर आने पर स्कूल पहुंचा देते थे. अब ऐसा नहीं दिखता. ऐसा भी देखने में आता है कि किसी समुदाय विशेष के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अपने संघर्ष व काम के दौरान जब कोई सूचना एकत्र करते हैं, तो उसका उपयोग वे चुनावी राजनीति में खुद को मजबूत बनाने के लिए करते हैं. वे चाहते हैं कि वे भी विधायक-सांसद बन जायें.
हमारे यहां अनुपातिक रूप से विश्वविद्यालयों, कॉलेजों व स्कूलों की संख्या कम है. इससे बच्चों, खास कर वंचित समूह के बच्चों का हित किस तरह प्रभावित हो रहा है?
राज्य गठन के बाद कुछ विश्वविद्यालयों का गठन जरूर हुआ, लेकिन एक भी नया कॉलेज नहीं खुला. नये इंजीनियरिंग या मेडिकल कॉलेज नहीं खुले. गुणवत्ता पूर्ण तकनीकी संस्थान नहीं खुले. जबकि 13 सालों में जनसंख्या तो बढ़ी ही पढ़ाई को लेकर युवाओं व परिवार वालों में जागरूकता भी आयी. ऐसे में छात्र-छात्रओं की संख्या काफी बढ़ी. जाहिर है जब अपने राज्य में सीटें कम होंगी, तो बच्चे बाहर जायेंगे या फिर वे नामांकन नहीं ले सकेंगे. हमने आंदोलन कर कॉलेज में नामांकन की सीटों की संख्या बढ़वायी. कॉलेजों व स्कूलों में आधारभूत संरचना व आवश्यक सुविधा की व्यवस्था करवाने के लिए संघर्ष किया. मुसलिम लड़कियों की शिक्षा के लिए अभियान चलाया. अगर संसाधन व सीटें कम होंगी तो उसका नुकसान वंचित समूह को होगा.
भ्रष्टाचार कैसे बच्चों-युवाओं को प्रभावित करता है?
भ्रष्टाचार के कारण बच्चों व युवाओं को उनकी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता. जेपीएससी में प्रशासनिक सेवा, लेरर, बाजार पर्यवेक्षक जैसे पदों की नियुक्ति में गड़बड़ियां की गयी. प्रभावशाली लोगों के परिजनों को गलत ढंग से नियुक्त किया गया. इसके खिलाफ हमने काफी आंदोलन किया. भ्रष्टाचार से हर समूह के लोग प्रभावित होते हैं. उसमें वंचित समूह के बच्चे भी शामिल हैं.
बच्चों-छात्रों के मुद्दों पर राजनीतिक दलों की भूमिका क्या है?
राजनीतिक दल का एजेंडा सिर्फ चुनाव जितना है. शिक्षा, विकास, रोजगार के मुद्दे पर वे आज कोई आंदोलन नहीं करते हैं. झारखंड में दो लाख रिक्तियां हैं. इनमें से ज्यादातर रिक्तियां तृतीय व चतुर्थ श्रेणी की हैं. इन पर नियुक्ति हो तो बड़ी संख्या में राज्य से बेरोजगारी की समस्या दूर हो जायेगी. हमने झारखंड शिक्षा परियोजना में 2011 में आरटीआइ डाला. यह आरटीआइ प्राथमिक व माध्यमिक स्कूलों के एमडीएम, बेंच-डेस्क व अन्य संसाधनों की उपलब्धता व उसके बजट से संबद्ध था. हमें जानकारी मिली कि राज्य की ओर से जो बजट प्रस्ताव केंद्र को भेजा गया था, वह सिर्फ इस कारणवश स्वीकृत नहीं हो सका, क्योंकि पिछले बार के आवंटन का उपयोगिता प्रमाण पत्र राज्य केंद्र को नहीं दे सका था.
अगर यहां सर्व शिक्षा अभियान सही ढंग से काम करे तो गरीब बच्चों को बहुत बड़ा लाभ मिलेगा. इन गरीब बच्चों में अधिकतम संख्या वंचित समूह के बच्चों की है. पर, हमारे अधिकारी योजनाओं पर ऐसे काम करते हैं कि ज्यादा से ज्यादा राशि को कैसे गबन किया जाये. सर्व शिक्षा अभियान से बने भवन में कुछ ही साल में दरार नजर आने लगती है. 12 लाख रुपये के भवन में से पांच लाख का काम होता है, बाकी पैसे गबन हो जाते हैं. यह वंचित समूह के बच्चों का हक छीना जाना ही है. किताबों के लिए बड़े पैमाने पर टेंडर होता है, यही हाल मध्याह्न् भोजन व पोशाक खरीद की है. मेरा सवाल है कि क्या सरकार अपना प्रिंटिंग प्रेस नहीं लगा सकती. ताकि इस स्तर पर गड़बड़ियां रोकी जा सके.
अलग-अलग तरह के आयोग राष्ट्रीय या राज्य स्तर पर होते हैं. उनकी जिम्मेवारी है कि वे जिस वर्ग के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं, उनके मुद्दों को लेकर सरकार के पास सिफारिशें करें. आप उनकी भूमिका व योगदान को कैसे देखते हैं?
आयोगों की स्थिति खुशबू विहीन गुलदस्ते जैसी है. किसी भी वर्ग से संबंधित आयोग क्यों नहीं हो, उसकी शक्ति उसके अध्यक्ष की इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है. अगर अध्यक्ष इच्छाशक्ति दिखायेंगे तो वे बेहतर कार्य कर सकेंगे और अगर यूं ही आयोग के अध्यक्ष बन गये तो फिर! अल्पसंख्यक आयोग के ऐसे भी सदस्य हैं, जो आठवीं पास नहीं हैं. 15 सूत्री के सदस्य गलत तरीके से बनाये गये हैं. और भी दूसरे आयोग में ऐसी स्थिति दिखती है. अगर आप बिना संघर्ष किये किसी पद तक पहुंच जायेंगे तो स्थिति कैसे ठीक होगी.
राज्य के छात्र नेताओं से छात्रों के मुद्दों पर सरकार का संवाद कैसा है?
सरकार की भूमिका नगण्य है. जो छात्र नेता राज्य में हैं, उन्हें सरकार को स्वीकार करना चाहिए. छात्र हित में उनसे सरकार की संवाद की प्रक्रिया चलानी चाहिए. इसके बेहतर नतीजे दिखेंगे. जब मधु कोड़ा राज्य के मुख्यमंत्री थे व बंधु तिर्की शिक्षा मंत्री थे, तो हमलोगों ने छात्र हित में कई बार उनसे मिल कर सवाल उठाया. पर, कुछ हुआ नहीं. राज्य के 40 प्रतिशत युवा अच्छी शिक्षा व रोजगार के लिए बाहर पलायन कर गये.
क्या आपको यह जरूरत महसूस होती है कि छात्रों के लिए जो कल्याणकारी योजनाएं स्कूल, कॉलेज या विश्वविद्यालय में उपलब्ध हैं, उसका ब्योरा नोटिस बोर्ड पर चिपकाया जाये व उसका लाभ पाने वालों का भी ब्योरा चिपकाया जाये?
बिल्कुल. पारदर्शिता के लिए यह बेहद जरूरी है. आज सरकारी कार्यालयों व संस्थानों में पारदर्शिता पर जोर दिया जा रहा है. मेरा मत है कि स्कूलों, कॉलेजों व विश्वविद्यालयों में भी बोर्ड पर विभिन्न मद से अलग-अलग वर्ग के छात्रों को मिलने वाली आर्थिक मदद, पोशाक, किताब-कॉपी व अन्य सहायता का पूरा ब्योरा हो. साथी एक दूसरे बोर्ड पर इसे पाने वाले छात्र का पूरा ब्योरा लिखा होना चाहिए. इससे पारदर्शिता आयेगी. इससे छात्रों को खुद के लिए उपलब्ध योजनाओं की पूरी जानकारी मिल सकेगी और सभी छात्र व कर्मी जान सकेंगे कि उससे लाभान्वित कौन हुआ.
छात्र नेतृत्व छात्रों के हितों को पूरा करने का महत्वपूर्ण माध्यम है. झारखंड में यह कमजोर दिखता है. इसकी व्यवस्था कैसे हो?
छात्र नेतृत्व बहुत आवश्यक है. प्राथमिक, मध्य, माध्यमिक व प्लस टू स्कूलों में भी कक्षावार व स्कूल के स्तर पर छात्र नेता होना चाहिए. कॉलेज व विश्वविद्यालय के स्तर पर भी छात्र नेता हो. इसे हमारी शिक्षा व्यवस्था से जुड़े महत्वपूर्ण लोग अनिवार्य बनायें. हम विभिन्न अधिकारियों से मिल कर व पत्र लिख कर यह मांग रखेंगे. छात्र नेता छात्रों के हितों का बेहतर ढंग से ख्याल रख सकेंगे.
एस अली
अध्यक्ष, झारखंड छात्र संघ