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आंखों से इंचभर दूरी पर होगा टीवी, सिनेमा का बड़ा पर्दा

स्मार्टफोन ने टीवी, वीडियो देखने का तरीका बिलकुल बदल दिया है और आनेवाले समय में इसमें और भी ज्यादा बदलाव आने की संभावना है. इस बीच वर्चुअल रियलिटी तकनीक ने इसमें सेंध लगाना शुरू कर दिया है और माना जा रहा है कि टीवी, वीडियो देखने के लिए हैंडसेट की बजाय अब हेडसेट का इस्तेमाल […]

स्मार्टफोन ने टीवी, वीडियो देखने का तरीका बिलकुल बदल दिया है और आनेवाले समय में इसमें और भी ज्यादा बदलाव आने की संभावना है. इस बीच वर्चुअल रियलिटी तकनीक ने इसमें सेंध लगाना शुरू कर दिया है और माना जा रहा है कि टीवी, वीडियो देखने के लिए हैंडसेट की बजाय अब हेडसेट का इस्तेमाल ज्यादा होगा.

क्या है वर्चुअल रियलिटी तकनीक, कैसे लोग आंखों के निकट से चीजों को देखने में होंगे सक्षम समेत इससे संबंधित अनेक अन्य महत्वपूर्ण पहलुआें को रेखांकित कर रहा है आज का साइंस एंड टेक्नोलॉजी पेज …

– शंभु सुमन

हाथों में स्मार्टफोन यानी एक से बढ़ कर एक खूबियों वाले महंगे हैंडसेट के बाद आनेवाले दिनों में लोग हेडसेट के दीवाने बन जायेंगे. कारण वर्चुअल रियलिटी (वीआर) तकनीक का इस्तेमाल कई क्षेत्रों में काफी हद तक बढ़ सकता है और मनोरंजन से लेकर सोशल नेटवर्किंग, चिकित्सा, शिक्षा, गेम्स, फिल्में, विभिन्न जानकारियां, किताबें और कल्पनशीलता का रोमांच ठीक हमारी और केवल हमारी आंखों के सामने आ सकता है. हम मन और मस्तिष्क से उन जगहों पर तुरंत पहुंच सकते हैं, जहां जाना आसानी से संभव नहीं हो सकता है.

यह हमें कई मामलों में संभावनाओं और आत्मविश्वास को जागृत कर रचनात्मक बना सकता हैै, अनोखा अनुभव करा सकता है और जानकारियों को सीधे दिमाग में भर सकता है. वह दिन दूर नहीं जब कानों में हेडफोन लगाने और हैंडसेट रखनेवाले लोग आंखों पर करीब 315 ग्राम का आयताकार डब्बानुमा चश्मा पहने नजर आयेंगे.

स्मार्टफोन निर्माण करनेवाली कंपनी सैमसंग ने आॅकुलस द्वारा निर्मित गियर वीआर हेडसेट इ-काॅमर्स और चुनिंदा रिटेल बाजार में उतारा है, जिसका सफल प्रदर्शन आॅकुलस कनेक्ट काॅन्फ्रेंस के दौरान बीते साल सितंबर माह में किया जा चुका है. कंपनी का दावा है कि यह पिछले हेडसेट गियर वीआर इनोवेटर एडिशन के मुकाबले 22 प्रतिशत हल्का है. इसकी लंबाई 21 सेंटीमीटर, चौड़ाई 12 सेंटीमीटर और मोटाई में नौ सेंटीमीटर के करीब है.

कंपनी के अनुसार इसमें एकोमॉडेट ग्लास व सिकी मास्क के साथ फोम का इस्तेमाल किया गया है, तो आंखों पर अच्छी पकड़ बनाये रखने के लिए इलास्टिक वेल्क्रो की पट्टियां लगायी गयी हैं. यह सभी स्मार्टफोन के साथ काम करने में सक्षम है और उससे माइक्रो यूसएबी पोर्ट के जरिये कनेक्ट हो सकता है, जबकि इसमें सेंसर के तौर पर एस्केलेटर, ग्रायोमीटर व प्रोक्सिमिटी

टू डिटेक्स माउंटिंग व अनमाउंटिंग दिये गये हैं.

क्या है वर्चुअल रियलिटी?

वीआर हेडसेट का सिद्धांत कंप्यूटर सिमुलेटेड रियलिटी या इमर्सिव मल्टीमीडिया का विकसित रूप है, जिसकी परिकल्पना वर्ष 1938 में एंटोनियो आर्तोद ने की थी. बाद में लेखक डेमिन ब्रोड्रिक ने इस टर्म का उपयोग 1982 में प्रकाशित अपने विज्ञानकथा वाले एक उपन्यास में किया था, जिसे आॅक्सफोर्ड डिक्शनरी में वर्ष 1987 में शामिल कर लिया गया था.

वर्चुअल रियलिटी में वर्चुअल का अर्थ निकटता से है, जबकि रियलिटी का अर्थ उस अनुभव से है, जिसे मानवीय तौर पर अनुभव किया जाता है. यानी वर्चुअल रियलिटी का अर्थ उस वास्तविकता से लगाया जा सकता है, जो काफी निकट है. जाहिर है ऐसा कुछ भी हो सकता है. लेकिन, सामान्य तौर पर वास्तविक अनुकरण एक विशेष प्रकार का ही होगा.

वैसे आज यह साफ्टवेयर द्वारा बनाया जानेवाला एक तरह का बनावटी माहौल है, लेकिन इसको देखने वाला व्यक्ति न केवल वास्तविक माहौल को महसूस करता है, बल्कि इसे काफी हद तक स्वीकारता भी है.

इसमें हमारी पांचों इंद्रियों में से केवल दो इंद्रियां, आंख और कान ही पूरे माहौल का अनुभव करवाती है, जिससे हम दिल-दिमाग से काफी संभावनाओं के साथ जल्द जुड़ जाते हैं. इसका साधारण व सरल रूप 3डी इमेज या वीडियो हैं. इन्हें पर्सनल कंप्यूटर कीबोर्ड की कूंजी या माउस के जरिये मनचाहे ढंग से संचालित किया जा सकता है. तसवीरें विभिन्न दिशाओं में घूमती हुई या काफी बड़ी या फिर छोटी कर देखी जा सकती है.

इस तरह से बननेवाले माहौल को बंद कमरे या घिरी हुई स्क्रीन या फिर पूरी तरह से लिपटे हुए हैप्टिक्स उपकरणों में देखा जा सकता है. यही बोलचाल की भाषा में हेडसेट कहलाता है.

वैसे वीआर के उपयोग को दो वर्गों में बांटा जा सकता है. पहला प्रशिक्षण या शिक्षा के लिए प्रभावी अनुकरणीय संसाधन जुटाना है, तो दूसरा गेम या प्रभावशाली कथा-कहानी की प्रस्तुति के लिए कल्पनाशील माहौल को विकसित करना है. यह सब साॅफ्टवेयर प्रोग्रामिंग भी भाषा वर्चुअल रियलिटी माॅडलिंग लैंग्वेज (वीआरएमएल) के जरिये तैयार किया जा सकता है.

इससे खास तरह की तसवीरों को बनाने और उसे प्रदर्शन व जुड़ाव का एहसास देने योग्य निर्देश दिये जा सकते हैं. वीडियो के लिए खास तरह के 360 डिग्री वाले कैमरे से फिल्मांकन किया जाता है. इसके व्यापक इस्तेमाल की संभावनाएं आर्किटेक्चर, मेडिसीन, कला, मनोरंजन और शिक्षा के क्षेत्र में है. हालांकि यह रोमांचक खोजों या शोध के लिए उपयोगी साबित हो सकता है.

सोशल नेटवर्क में बदलाव!

फेसबुक भी वर्चुअल रियलिटी तकनीक को अपनायेगा. इसके लिए उसने एक वीआर टीम का गठन किया है. माना जा रहा है कि यह तकनीक आनेवाले दिनों में महत्वपूर्ण कंप्यूटिंग प्लेटफाॅर्म बन सकता है और लोग हैंडसेट के बजाय हेडसेट में ही अपनी सोशल नेटवर्किंग का इस्तेमाल करेंगे. कंपनी का कहना है कि मोबाइल डिवाइसेज पर फेसबुक, इंस्टाग्राम, मैसेंजर और वाॅट्सएप आदि को विभिन्न तरीकों से लोगों को आपस में जुड़ने में मदद की गयी है.

कंपनी चाहती है कि नया माध्यम वीआर हेडसेट भी ऐसा ही हो. फेसबुक के सीइओ मार्क जुकरबर्ग का कहना है, ‘वीआर हमारा अगला प्लेटफाॅर्म है. हम जल्द ही ऐसी दुनिया में आनेवाले हैं, जहां हर किसी के पास प्रत्येक चीज शेयर करने की कुशल क्षमता होगी.’ मार्क यह मानते हैं कि फिलहाल वीआर शुरुआती चरण में है और इसमें हार्डवेयर व साॅफ्टवेयर संबंधी काफी चुनौतियां है, जिसे फेसबुक को ठीक करना है.

फेसबुक ‘आॅकुलस रिफ्ट’ नामक हेडसेट बना चुकी है, तो सोनी ने भी हेडसेट के लिए प्रोजेक्ट ‘मार्फियस’ की घोषणा की है. माइक्रोसाॅफ्ट भी ‘एक्सबाॅक्स’ नाम का वीआर हेडसेट बनाने जा रही है. इसके अलावा गूगल भी एक उच्च तकनीक वाले कंप्यूटर हेलमेट विकसित करने की योजना बना चुकी है, जिसका इस्तेमाल वर्चुअल रियलिटी की दुनिया में किया जायेगा.

वीआर हेडसेट वास्तव में हेड-माउंटेड डिस्प्ले (एचएमडी) है, जो चश्मे की तरह ही होता है. इसमें 3डी तसवीरों को दर्शाया जाता है. हेडसेट में आंखों के लिए एक अलग माॅनिटर हाता है, जिससे स्टीरियोस्कोपिक प्रभाव बनता है और देखनेवाले को यह भ्रम होता है कि वह आभासी माहौल में वास्तविक तौर पर मौजूद है. आॅडियो और वीडिया के मेल से यह बहुत ही असली लगता है.

हेडसेट में देखें लाइव आॅपरेशन

वीआर हेडसेट के लिहाज से 14 अप्रैल खास दिन होगा, क्योंकि उस दिन राॅयल लंदन अस्पताल में एक कैंसर मरीज के आॅपरेशन को लोग स्मार्टफोन और वर्चुअल रियलिटी हेडसेट के सहयोग से लाइव देख सकेंगे. ऐसा पहली बार होगा जब किसी सर्जरी को स्मार्टफोन और हेडसेट की मदद से वर्चुअल रियलिटी तकनीक के जरिये लाइव दिखाया जायेगा.

इसे देखनेवाले दर्शकों को ठीक वैसा ही महसूस होगा, जैसे वे आॅपरेशन थियेटर में ही सर्जन के सामने मौजूद हों. सीधा प्रसारण के लिए आॅपरेशन टेबल पर कई कैमरे लगाये गये हैं. डाॅ शफी अहमद वर्चुअल रियलिटी तकनीक के इस्तेमाल के विशेषज्ञ माने जाते हैं. पहली बार वर्ष 2014 में इन्होंने सर्जरी के दौरान गूगल ग्लास और 360 डिग्री कैमरों का इस्तेमाल किया था.

हुलु लाया हेडसेट में टीवी

टेलीविजन देखना अब नया और अनोखा अनुभव हेडसेट के जरिये मिलनेवाला है. अमेरिका में टीवी शो, क्लिप्स, मूवी और अन्य प्रकार की स्ट्रीमिंग सर्विस मुहैया करानेवाली ऑनलाइन कंपनी हुलु ने इसे और भी रोमांचक बना दिया है. हुलु द्वारा लॉन्च किये गये पहले वीआर एप्प की मदद से हेडसेट पर टीवी देखने का आनंद लिया सकता है.

यानी आप अपने घर के किसी भी हिस्से, लिविंग रूम, स्टडी रूम, किचन, बालकनी या फिर बगीचे में हों, तो हुलु का यह एप्प आपको हेडसेट पर आपके पसंदीदा टीवी कार्यक्रम दिखा सकता है.

इसकी बड़ी खासियत यह भी होगी कि इससे आपको बड़े पर्दे पर कार्यक्रम देखने का एहसास होगा. इसमें बाहर के असहजता पैदा करनेवाला माहौल या प्रकाश व्यवस्था जैसी चीजें बाधक नहीं बनेगी. अगर सबकुछ इसी गति से चलता रहा, तो आनेवाले दिनों में लोगों को हेडसेट पर ही 70 एमएम की फिल्म देखने को मिलेगी. उम्मीद तो यह भी जतायी जा रही है कि ऐसा होने पर फिल्म निर्माता नयी फिल्म को हेडसेट के प्लेटफॉर्म पर ही रीलिज करना पसंद करेंगे.

कैसे-कैसे हेडसेट

हेडसेट का सामान्य अर्थ सुननेवाले हेडफोन से है, जिनमें अच्छी आवाज सुनने के लिए हेडसेट या वाइफाइ या ब्लूटूथ जैसी सुविधाएं मिल जाती हैं. इनसे शोरगुल के माहौल से निजात मिलती है. वीडियो देखनेवाले विविध हेडसेट इस प्रकार हैं :

– इयरबड्स : कान के बाहरी हिस्से तक लगायी जानेवाली इयरबड्स पतले तार से मोबाइल फोन से जुड़ी होती है और कानों में इस तरह आसानी से फिट हो जाती है कि बाहर की आवाज कान के भीतर नहीं जा पाती है. इस तरह शोररहित मोबाइल की आवाज सुनने में आसानी होती है. इसे ही बोलचाल की भाषा में लीड कहा जाता है.

– इन-इयर कनाल हेडफोन : इसे कानो में भीतर तक लगाया जा सकता है, जिससे बाहरी आवाज बिल्कुल नहीं जा पाती है. इसके जरिये सुनी जाने वाली आवाज स्पष्ट होती है और स्टीरियो फोनिक मधुरता का एहसास देती है. सामान्य इयरबड्स से यह मंहगी होती है.

– कनालबड्स : इसे कानों के पहले हिस्से तक ही लगाया जा सकता है और इससे सुनी जानेवाली आवाज इयरबड्स से थोड़ी अधिक स्पष्ट होती है.

– लाइटवेट हेडफोन : कान के दोनों तरफ बाहर से सिर के जरिये पहना जानेवाला यह हेडफोन ड्राइविंग के दौरान उपयुक्त होता है. वैसे यह दोनों कानों के बीच के हिस्से को ही ढंक पाता है, लेकिन उन पर अच्छी पकड़ बनाये रखता है.

– फुल साइज हेडफोन : यह दोनों कानों को पूरी तरह से ढक लेता है और आरामदायक एहसास देता है. इससे किसी भी तरह की बाहरी आवाज कान में नहीं जा पाती है.

– ब्लूटूथ हेडसेट : वायरलेस तरीके से काॅल्स और म्यूजिक सुनने में मददगार बुलेट नामक यह ब्लूटूथ हेडफोन काफी छोटा होता है. इसकी बैटरी आठ-नौ घंटे तक चलती है.

– खाने के डब्बे का हेडसेट : वीआर हेडसेट की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए स्वीडन में मैकडोनाल्ड एक ऐसा हैप्पी मील बाॅक्स लेकर आयी है, जो वीआर हेडसेट में बदल सकता है. इसमें बच्चों के लिए स्कीइंग से संबंधित गेम भी विकसित किये गये हैं और गोगल्स का उपयोग किया गया है. गेम के जरिये स्की सेफ्टी की जानकरी भी इसमें दी गयी है.

कुछ आशंकाएं भी हैं

वीआर तकनीक से जहां मनोरंजन का दायरा विकसित हो सकता है, वहीं अनैतिकता से जुड़े पहलुओं में भी बढ़ोतरी होने की आशंका है. अब तक कंप्यूटर या किताबों तक सिमटी एक्स या थ्री एक्स रेटेड अश्लील सामग्री के वीआर हेडसेट में समाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है.

इसके लिए पोर्न की एडल्ड इंडस्ट्री भी कमर कस चुकी है. पार्नोग्राफी का बड़े पैमाने पर वीआर हेडसेट पर हमला हो सकता है, क्योंकि संबंधित कंपनियां आमदनी बढ़ाने के लिए नयी तकनीक का सहारा लेती रही हैं. एडल्ट इंडस्ट्री एचडी और 3डी तकनीक पहले से ही अपना चुकी है.

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