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अपने गढ़ में सिमट रहे आइएसआइएस ने बदली रणनीति, अब निशाने पर यूरोप

पेरिस हमले के चार माह बाद एक और यूरोपीय देश बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में बीते मंगलवार को एयरपोर्ट और एक मेट्रो स्टेशन धमाकों से दहल गया. हमले में कम से कम 30 लोग मारे गये और 250 से अधिक घायल हो गये. खूंखार आतंकी संगठन आइएसआइएस ने इस हमले की जिम्मेवारी ली है. माना […]

पेरिस हमले के चार माह बाद एक और यूरोपीय देश बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में बीते मंगलवार को एयरपोर्ट और एक मेट्रो स्टेशन धमाकों से दहल गया. हमले में कम से कम 30 लोग मारे गये और 250 से अधिक घायल हो गये. खूंखार आतंकी संगठन आइएसआइएस ने इस हमले की जिम्मेवारी ली है.
माना जा रहा है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों के सैनिक इराक और सीरिया में आइएसआइएस के कब्जे वाले क्षेत्रों में हमले कर रहे हैं, जहां यह आतंकी संगठन भले ही रक्षात्मक रुख अपना रहा हो, लेकिन अपनी ताकत दिखाने के लिए अब उसने यूरोप में हमले करने की रणनीति अपनायी है. इस तरह यूरोप के देशों में आइएसआइएस के बढ़ते हमलों के मुख्य कारणों और इसके निहितार्थ पर नजर डाल रहा है संडे इश्यू का यह दूसरा पन्ना.
बीते 22 मार्च को यूरोपीय देश बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स के एयरपोर्ट और एक मेट्रो स्टेशन में इसलामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आइएसआइएस) के आतंकियों द्वारा किये गये तीन विस्फोटों ने यूरोप सहित पूरे विश्व को हिला दिया है. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर अपनी विकसित प्रशासनिक एवं सुरक्षा व्यवस्था तथा काफी हद तक सक्षम सुरक्षा मशीनरी के बावजूद यूरोपीय महादेश की सरजमीं क्यों और कैसे इसलामिक स्टेट की आतंकी योजनाओं की प्रयोगभूमि बनी जा रही है?
दरअसल, आइएसआइएस को इराक तथा सीरिया की अपनी जमीनी लड़ाई के लिए बड़ी संख्या में सैनिकों की जरूरत रही है और उसके सिद्धांतों से प्रभावित होकर अपनी सेवाएं देने को इच्छुक मुसलिम युवाओं की एक बड़ी तादाद यूरोप के विभिन्न देशों में तैयार होकर वहां जाती रही है.
यूरोपीय देशों की सरकारें इस प्रवृत्ति को समय रहते रोक नहीं सकीं. अब आइएसआइएस यूरोप से आनेवाले इन्हीं स्वयंसेवकों में से सैकड़ों को आतंकी हमलों के लिए पूरी तरह प्रशिक्षित कर वापस यूरोप भेज रहा है, जो यहां आकर इसलामिक स्टेट से सहानुभूति रखनेवाले और भी लोगों को अपनी जरूरत के मुताबिक भर्ती करते हुए इन हमलावर दस्तों के सदस्य बन कर खून-खराबे को अंजाम दे रहे हैं.
एसोसिएटेड प्रेस के मुताबिक, अपनी इस योजना को मूर्त रूप देने के लिए आइएसआइएस ने करीब 400 लड़ाकों को प्रशिक्षित कर पूरे यूरोप को हिंसक हमलों की एक शृंखला का शिकार बनाने के लिए भेज रखा है, जिन्हें यह निर्देश है कि वे समय, जगह तथा तरीके का चुनाव इस तरह करें कि ज्यादा-से-ज्यादा लोग हताहत हो सकें. इन्हें एक बार यूरोप में प्रवेश पा लेने के बाद इस देश से उस देश तक पहुंचने में कोई मुश्किल पेश नहीं आती, क्योंकि यूरोपीय यूनियन के देशों ने अपनी आपसी सीमाएं खोल रखी हैं, जो इन लड़ाकों के लिए वरदान है.
न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, इन यूरोपीय देशों की इंटेलिजेंस एजेंसियों में इन आतंकी हमलों को रोकने के लिए जरूरी आपसी तालमेल तथा सहयोग का भी अत्यंत अभाव रहा है, जिसने आतंकियों का काम आसान कर रखा है. यह रिपोर्ट यह बताती है कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग की बात तो दूर रही, अकेले फ्रांस में ही विभिन्न स्तरों पर खुफिया जानकारियां इकठ्ठा करनेवाली 33 एजेंसियां हैं, जिनमें खुद ही समुचित समन्वय नहीं है.
कारण जो भी हो, पर सच्चाई यह है कि अब तक ऐसे हमलों की पूर्व योजनाओं का सटीक पता लगा कर उन्हें घटित होने के पहले ही विफल कर देने के मामले में इन यूरोपीय देशों की खुफिया एजेंसियों तथा सुरक्षा बलों का रिकॉर्ड कतई बेहतर नहीं रहा है और उनके मुकाबले आतंकियों के तौर-तरीके और उनके नेटवर्क काफी मजबूत रहे हैं. इस बीच, पूरे यूरोप की 50 करोड़ आबादी आगे होनेवाले हमलों की दहशत में जी रही है.
यूरोप में घुसे आतंकी लड़ाकों के खतरनाक तौर-तरीके
न वंबर 2015 के पेरिस हमले के मुख्य अभियुक्त ने मरने से पहले यह दावा किया था कि उसने 90 लड़ाकों के एक ऐसे बहुराष्ट्रीय दल के साथ यूरोप में प्रवेश पाया था, जिसके सदस्य पूरे महादेश में फैल चुके हैं.
यूरोप में भेजे गये इन लड़ाकों के साथ एक खास बात यह है कि इन्हें सीरिया, लीबिया तथा उत्तरी अफ्रीका के अन्य स्थलों पर कड़ा और लंबा प्रशिक्षण देकर इस प्रकार तैयार किया गया है कि वे स्वतंत्र इकाइयों के रूप में काम करने में सक्षम हैं और उन्हें आइएसआइएस के किसी बाहरी केंद्र से निर्देश अथवा मदद की जरूरत नहीं है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि ये लड़ाके केवल प्रशिक्षण प्राप्त कर लौटनेवाले लोगों पर आश्रित नहीं हैं, बल्कि उन्हें स्थानीय स्तर पर भी लड़कों की भर्तियां कर उन्हें काम में लाने की महारत हासिल है.
इन हमलों में जहां एक ओर कुछ लड़ाके अपनी कमर में विस्फोटक बेल्ट बांध कर उसमें विस्फोट करते हुए इन घटनाओं को अंजाम देने के साथ अपनी मौत भी सुनिश्चित कर लेते हैं, वहीं उनके एक अथवा ज्यादा सहयोगी विस्फोट के ठीक पहले वहां से बच निकल किसी अगले हमले की योजना के लिए एक दूसरी इकाई की स्थापना पर निकल जाते हैं.
विगत पेरिस हमले से बच निकला एक ऐसा ही लड़ाका, सलाह अब्देसलाम पिछले 18 मार्च को ही गिरफ्तार हुआ था. ब्रुसेल्स के इस ताजा हमले के हमलावरों के संपर्क भी अब्देसलाम से थे, मगर उसकी गिरफ्तारी भी इस हमले को रोक नहीं पायी. यह एक खतरनाक संकेत है, जो यह बताता है कि हमला करनेवालों की इकाइयां और उनके तौर-तरीके कितने मजबूत तथा अभेद्य हैं.
सुरक्षा बलों की मुश्किल यह है कि उन्हें कुछ छिटपुट सूत्र तो हाथ लगते हैं, पर वे इतने अपूर्ण होते हैं कि उनके आधार पर हमलों को रोक पाना संभव नहीं होता. अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, ब्रुसेल्स हमले के ठीक पहले इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों पर कुछ सांकेतिक बातचीत सुनाई जरूर पड़ी थी, पर वह इतनी संपूर्ण नहीं थी कि उससे इस हमले की सटीक सूचना मिल सकती.
उन्होंने यह चेतावनी दी कि इन लड़ाकों की योजनाएं बहुत लचीली होती हैं और वे उन्हें परिस्थिति की मांग के अनुरूप परिवर्तित करने में समर्थ होते हैं. उन्हें मिली जानकारियों के अनुसार, आइएसआइएस ने अपने लड़ाकों को पेरिस, लंदन, बर्लिन तथा बेल्जियम के कम-से-कम दो शहरों में हमलों की जिम्मेवारी सौंपी है.
यूरोपीय जिहादी
रूस 800
फ्रांस 700
ब्रिटेन 500
जर्मनी 400
तुर्की 400
बेल्जियम 300
नीदरलैंड्स 150
अल्बानिया 140
कोसोवो 120
डेनमार्क 100
स्पेन 100
स्वीडन 100
आस्ट्रिया 60
बोसनिया 60
इटली 50
नार्वे 50
यूक्रेन 50
फिनलैंड 30
आयरलैंड 30
स्विटजरलैंड 10
आइएसआइएस को यूरोप से मिलती रही है स्वयंसेवकों की बड़ी खेप
2012 से लेकर 2015 तक छोटे से यूरोपीय देश बेल्जियम से ही तकरीबन 500 व्यक्ति आइएसआइएस के लिए लड़ने हेतु इराक तथा सीरिया गये, जबकि इसी अवधि में इसी उद्देश्य से फ्रांस से जानेवाले लोगों की तादाद लगभग 1200 रही.
यूरोपीय देशों की कुछ मुसलिम आबादियों में आइएसआइएस को अपने समर्थक आसानी से मिल जाते हैं, जो उसके लिए लड़ने की खातिर इराक तथा सीरिया भी जाते रहे हैं. सीएनएन के मुताबिक, 2012 से लेकर 2015 तक छोटे से यूरोपीय देश बेल्जियम से ही तकरीबन 500 व्यक्ति आइएसआइएस के लिए लड़ने हेतु इराक तथा सीरिया गये, जबकि इसी अवधि में इसी उद्देश्य से फ्रांस से जानेवाले लोगों की तादाद लगभग 1200 रही. जब ये लड़के छिपते-छिपाते हुए वापस अपने देश आते हैं, तो अपने सगे-संबंधियों तथा मित्रों के यहां शरण लेने और छिपने में उन्हें कोई मुश्किल नहीं होती.
तथ्य यह बताते हैं कि अकेले बेल्जियम से जानेवाले लोगों से 117 लड़ाके वापस आये, जिनमें से कई तो तुरंत ही गिरफ्तार कर लिए गये, मगर कई अन्य यहां-वहां छिप कर पुलिस की पकड़ से बाहर बने रहे, जो अब इन आतंकी हमलावर दस्तों के सदस्य बन रहे हैं.
आइएसआइएस की यूरोप में बढ़ती घुसपैठ को समझिए
कमर आगा
विदेश मामलों के जानकार
यूरोप में हाल के दिनों में जिस तरह से आतंकी हमले बढ़े हैं, जिनकी अक्सर आइएसआइएस ने जिम्मेवारी ली है, उनसे यह तो पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि पूरा यूरोप अब आतंक के निशाने पर है, लेकिन इसके पीछे कुछ वजहें गौरतलब हैं, जो यूरोप में हमलों की वजह बन रही हैं.
रूस, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और दूसरे देशों ने जबसे आइएसआइएस के क्षेत्रों में बमबारी शुरू की है, और साथ ही सीरियन आर्मी ने रूस की मदद से आइएसआइएस के कब्जे से सीरिया और इराक के बहुत से शहरों को खाली कराना शुरू किया है, तबसे इसका बदला लेने के लिए आइएसआइएस पर एक प्रकार का दबाव बनने लगा है. इसी दबाव के चलते वहां लड़ रहे यूरोपीय युवा इराक और सीरिया से वापस यूरोप पहुंच कर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप यूरोप में हमले हो रहे हैं.
किसी भी आंदोलन या संगठन में युवाओं की सबसे बड़ी भूमिका होती है. युवाओं के बगैर कोई संगठन अपनी संपूर्ण ऊर्जा के साथ काम नहीं कर सकता. यही बात आतंकी संगठन आइएसआइएस पर भी लागू होती है. यूरोप में भारी संख्या में मुसलमान रहते हैं, जिनमें युवाओं की संख्या भी अच्छी-खासी है. यूरोप में बड़ी संख्या में मुसलिम युवा आइएसआइएस की विचारधारा से कुछ हद तक प्रभावित हो रहे हैं.
यही वजह है कि बीते वर्षों में यूरोप से हजारों की संख्या में मुसलिम युवा सीरिया पहुंचे थे और उनमें से ज्यादातर युवा आइएसआइएस के साथ ट्रेनिंग हासिल कर वापस यूरोप लौटे हैं. वे पूरे यूरोप में अपना नेटवर्क बढ़ा रहे हैं. साथ ही सीरिया और इराक में आइएसअाइएस पर बमबारी का जवाब देने के लिए जेहाद के नाम पर ऐसे हमलों को अंजाम दे रहे हैं. इन वजहों से ऐसा लग रहा है कि आइएसअाइएस का अगला ठिकाना यूरोप बनता जा रहा है.
हालांकि यह पूरी सच्चाई नहीं है. यूरोप में बढ़ रहे हमलों के पीछे कुछ लोकल फैक्टर भी काम कर हैं, जिनके चलते वहां जेहाद के नाम पर आतंकी गतिविधियां तेज हुई हैं. लोकल फैक्टर को समझने के लिए थोड़ा सा पीछे जाना पड़ेगा. यूरोप एक ग्लैमरस जगह है, जो पूरी दुनिया को अपनी तरफ आकर्षित करता है. बरसों पहले इराक और सीरिया के अलावा भी कई अन्य देशों से मुसलमान आकर यूरोप में बसते गये थे. वे मुसलमान फ्रेंच ठीक वैसे ही बोलते हैं, जैसे फ्रांसीसी बोलते हैं. वे वहां बस तो गये, लेकिन वे यूरोपीय समाज और संस्कृति में पूरी तरह से घुल-मिल नहीं पाये.
उनकी हमेशा यही कोशिश रही है कि यूरोप में रहते हुए भी वे इसलामी तहजीब को बचाये रखें. यानी एक तरफ तो यूराेपीय तहजीब, उसका ग्लैमर, उसकी मुक्त पहचान और दूसरी तरफ इसलामिक धर्म-संस्कृति, इन दोनों के बीच में एक प्रकार का द्वंद्व बना रहता है. यही वजह है कि जब आइएसआइएस इसलाम का हवाला देते हुए जेहाद की बात करता है, तो यूरोपीय मुसलिम युवा उससे प्रभावित होते हैं और वे आइएसआइएस की ओर खिंचे चले जाते हैं.
एक और बड़ी वजह यह है कि पिछले काफी सालों से यूरोप में एक प्रोपगेंडा चल रहा है कि अगर वहां खिलाफत स्थापित हो जाता है, तो मुसलमानों की सारी समस्याएं खत्म हो जायेंगी. आइएसआइस उसी तरह का खिलाफत स्थापित करना चाह रहा है, जैसा मुहम्मद साहब के बाद के जमाने में बना था.
इसी खिलाफत को आगे बढ़ाने की बात आइएसआइएस करता रहा है, जिसके लिए वह सीरिया और इराक में लड़ रहा है और इसमें बाकी क्षेत्रों की तरह यूरोप से भी लोग शामिल हो रहे हैं. जेहाद के नाम पर आतंक की यह समस्या बड़ी है. इसलिए इससे बमबारी, हथियार या लड़ाई के जरिये निपटना उतना आसान नहीं होगा. दुनिया के तमाम बड़े देश अपनी-अपनी सेनाएं भेज कर आइएसआइएस को खत्म तो कर सकते हैं, लेकिन उसकी विचारधारा को नहीं खत्म कर सकते. लड़ाई किसी भी समस्या का समाधान नहीं है, आखिर में आपको संवाद का रास्ता अख्तियार करना ही पड़ेगा, लेकिन फिलहाल यह नजर नहीं आ रहा है.
यह इसलिए भी मुमकिन नहीं है, क्योंकि अरब जगत के कई देश चाहते हैं कि सीरिया में उनके मातहत सरकार चले. टर्की चाहता है कि सीरिया में ऐसी हुकूमत आ जाये, जो टर्की की हिमायत करे. स‍ऊदी चाहता है कि सीरिया में उसका वर्चस्व कायम हो. साथ ही, छिपे तौर पर कई देश वहां हथियार सप्लाई करते हैं और आइएसआइएस को और मजबूत करते हैं.
एक तरफ वे आइएसआइएस से सस्ते तेल खरीद रहे हैं और दूसरी तरफ उनको भीतर ही भीतर हथियार भी सप्लाई कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में जाहिर है कि यह लड़ाई इतनी आसानी से नहीं खत्म हो सकती. हर बाहरी देश को अपने-अपने वर्चस्व की पड़ी है, उन्हें सीरिया या इराक में मर रहे आम नागरिकों की कोई परवाह ही नहीं है. यह मसला तभी हल हो सकता है, जब वहां अरब और यूरोपीय देशों का हस्तक्षेप बंद हो. बाहर के सभी देशों को चाहिए कि वे अपना वर्चस्व स्थापित करने के बजाय सब मिलकर सीरिया और इराक में चुनाव कराने की पहल करें, ताकि वहां शांति स्थापित हो सके.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधािरत)
ब्रुसेल्स से ही हुई थी यूरोप में आतंकी हमलों की शुरुआत
नागरिकों की मौत हो चुकी है पिछले 15 महीनों में यूरोप के विभिन्न स्थलों पर छोटी आतंकी वारदातों के अलावा तीन बड़ी घटनाओं में.
यू रोप में आतंकी हमलों की शुरुआत मई 2014 में ब्रुसेल्स से ही हुई, जब आइएसआइएस से संबद्ध एक फ्रांसीसी लड़ाके ने ब्रुसेल्स के एक यहूदी संग्रहालय में गोलीबारी कर तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया.
इसी घटना के बाद फ्रांस की राजधानी पेरिस से निकलनेवाले सुप्रसिद्ध व्यंग्य साप्ताहिक शार्ली एब्दो के कार्यालय में जनवरी, 2015 में एक सुनियोजित हमला किया गया. उसके बाद अगले हमले डेनमार्क में और फिर पेरिस में पिछले साल के नवंबर में एक स्टेडियम तथा कॉन्सर्ट हॉल में किये गये भयानक हमले, जिसमें हताहतों की तादाद अब तक सबसे ज्यादा रही. और अब ब्रुसेल्स की यह ताजा घटना, जिसमें 30 से अधिक लोगों की जानें गयीं, जबकि 250 से अधिक व्यक्ति जख्मी हुए, जिनमें एक भारतीय, जेट एयरवेज की फ्लाइट अटेंडेंट निधि चाफेकर भी शामिल हैं.
इस हमले सहित पिछले 15 महीनों में यूरोप के विभिन्न स्थलों पर छोटी आतंकी वारदातों के अलावा तीन बड़ी घटनाओं में कुल 185 नागरिकों की मौत हो चुकी है. सुरक्षों बलों द्वारा की जा रही पिछली घटनाओं की तफ्तीश के हवाले से यह आशंका प्रकट की जा रही है कि यूरोपीय महादेश में ऐसे ही अन्य कई हमलों की एक पूरी शृंखला की जिम्मेवारी इन आतंकी मिशनों को सौंपी जा चुकी है.
यह सही है कि आइएसआइएस अपनी मुख्य लड़ाई मध्य-पूर्व के इराक तथा सीरिया में लड़ रहा है, पर अमेरिकी प्रसारण कंपनी एनबीसी के मुताबिक, मध्यपूर्व में इसका प्रभावक्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है और पिछले 15 महीनों में वह इराक तथा सीरिया में अपने कब्जे के कुल रकबे का लगभग चौथाई हिस्से से पीछे हट चुका है. मगर दूसरी ओर, उसके लड़ाके पूरी दुनिया में अपने आतंक का विस्तार करने में लगे हैं.
अमेरिकी समाचार चैनेल सीएनएन के अनुसार, इन दोनों देशों के बाहर भी उसके द्वारा अब तक कुल 20 देशों में 75 आतंकी हमले प्रायोजित किये जा चुके हैं, जिनमें कुल मिला कर 1280 लोगों की जानें जा चुकी हैं. साफ है कि आइएसआइएस की रणनीति केवल मध्य-पूर्व तक सीमित न रह कर अपनी मौजूदगी पूरे विश्व में दर्ज कराने की है.
यूरोपियन यूनियन की एकता पर मंडराने लगे हैं संदेह के बादल
पिछले हमलों से सबक लेते हुए अब फ्रांस अपने यहां आवागमन को नियंत्रित करने की कोशिशों में लगा हैयू रोपीय यूनियन के समझौते के फलस्वरूप इसके 26 देशों ने अपनी सीमाएं सभी यूरोपीय नागरिकों, सेवाओं तथा माल-असबाब के अबाधित यातायात के लिए खोल रखी हैं, जिनसे होकर आइएसआइएस के आतंकी लड़ाके आसानी से यूरोप के एक देश से दूसरे देश में आते-जाते रहे हैं. पिछले हमलों से सबक लेते हुए अब फ्रांस अपने यहां आवागमन को नियंत्रित करने की कोशिशों में लगा है. उधर ब्रिटेन में यूनियन की सदस्यता छोड़ने बनाम उसमें बने रहने पर एक जनमत संग्रह होने जा रहा है.
दूसरी ओर, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन और स्वीडन में भी ऐसे ही जनमत संग्रह की मांग जोर पकड़ती जा रही है. साफ है कि इन स्थितियों ने यूरोपीय यूनियन के रूप में पिछली सदी के इस सबसे बड़े राजनीतिक प्रयोग को खतरे में डाल दिया है.
आइएसआइएस बस यही चाहता रहा है और उसकी यह कोशिश है कि यूरोप में ज्यादा-से-ज्यादा हमले प्रायोजित कर इस आग को हवा दी जाये, ताकि यूरोप की यह एकता उसकी अनेकता में बदल जाये.
– प्रस्तुति सहयोग : विजय नंदन

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