आधुनिकता के इस दौर में ‘सामूहिकता’ जहां मायने तलाश रही है, वहीं ‘मूल्य’ कमजोर पड़ता हुआ प्रतीत हो रहा है. क्या इन दोनों के बगैर बेहतर भविष्य की नींव रखी जा सकती है. विशेष कर तब जब हमारे समक्ष प्रगतिशील समाज बनाने की चुनौती है. इन्हीं चर्चाओं के बीच पिछले दिनों लाल बहादुर शास्त्री अवार्ड फॉर पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन एंड मैनेजमेंट साइंसेज में ‘वर्तमान समाज में पश्चिमी मूल्यों की भूमिका’ विषय पर नारायणमूर्ति ने विचार व्यक्त किये. पेश है व्याख्यान के अंश.
।।नारायणमूर्ति।।
भाइयों और बहनों,
मुङो खुशी है कि मैं आज लाल बहादुर शास्त्री प्रबंधन संस्थान में हूं. शास्त्री जी उच्च मूल्यों वाले इनसान थे. हमेशा सादा जीवन पर जोर दिया. वह एक स्वतंत्रता सेनानी और कुशल प्रशासक थे, जिन्होंने राष्ट्र निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया. यह मेरे लिए अत्यंत सम्मान की बात है कि मुङो लाल बहादुर शास्त्री अवार्ड फॉर पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन एंड मैनेजमेंट साइंसेज के लिए चुना गया. इस सम्मान के लिए जूरी को धन्यवाद. जब मुङो यहां बोलने के लिए आमंत्रित किया गया, मैंने उस महत्वपूर्ण विषय पर बोलने का निश्चय किया, जिस पर मैं वर्षो से बोलता आया हूं. वह है-‘वर्तमान समाज में पश्चिमी मूल्यों की भूमिका.’
मेरा संबंध वैसी कंपनी से रहा है, जिसका निर्माण उच्च मूल्यों पर हुआ है, इसलिए यह विषय मेरे दिल के करीब है. सबसे बड़ी बात यह है कि एक संस्थान समाज का प्रतिनिधित्व करता है. मैंने जो कुछ सीखा है, उसे राष्ट्रीय संदर्भ में देखा जा सकता है. वास्तव में ‘मूल्य’ आपको आगे बढ़ाते हैं और तय करते हैं कि समाज में जीवन की क्या गुणवत्ता होगी. ‘कम्युनिटी’ शब्द दो लैटिन शब्दों को जोड़ कर बना है.
‘कॉम’ जिसका अर्थ है ‘साथ’ और ‘ऑनस’ जिसका अर्थ है ‘एक’. इसलिए एक कम्युनिटी का मतलब एक और कई दोनों हैं. ये एकताबद्ध लोगों की भीड़ होती है, न कि केवल कुछ समूह के लोग. जैसा कि वेदों में कहा गया है कि मनुष्य अकेले रह तो सकता है, पर सामूहिक रूप से ही जिंदा रह सकता है. इसलिए हमारे सामने एक प्रगतिशील समुदाय बनाने की चुनौती है, जिसमें व्यक्ति विशेष और समाज के हितों के बीच संतुलन की स्थिति हो. ऐसा करने के लिए, हमें मूल्य आधारित एक ऐसे सिस्टम को अपनाने की जरूरत है, जहां लोग आपसी हितों के लिए छोटे-छोटे त्याग कर सकें.
मूल्य आधारित सिस्टम क्या है? यह वस्तुत : हमारे आचार-विचार का एक प्रोटोकॉल होता है, जिससे विश्वास, भरोसा और समुदाय में प्रतिबद्धता कायम होती है. यह नियम-कानूनों से तय नहीं होता. यह हमारे मर्यादित और वांछनीय व्यवहार पर निर्भर करता है. साथ ही यह भी ध्यान देना है कि अपने हितों की बजाय समुदाय की हितों को आगे रखें.
इन मूल्यों को अपना कर ही हम सामूहिक रूप से अपना अस्तित्व और अपनी प्रगति बनाये रख सकते हैं. सांस्कृतिक मूल्य प्रणाली के दो स्तंभ हैं. पहला परिवार के प्रति निष्ठा और दूसरा समुदाय के प्रति निष्ठा. एक को दूसरे से अलग-थलग नहीं रहना चाहिए, क्योंकि वही समाज सफल होता है, जो इन दोनों के साथ तालमेल बैठाता है.
इसी संदर्भ में मैं वर्तमान भारतीय समाज में पश्चिमी मूल्यों की भूमिका पर चर्चा करना चाहूंगा. आप में से कुछ यह कह सकते हैं कि जिन चीजों पर मैं बात करने जा रहा हूं, दरअसल वो तो भारत के प्राचीन सांस्कृतिक मूल्य रहे हैं और वे पश्चिमी मूल्य नहीं हैं. मैं वर्तमान में रहता हूं, गुजर चुके दौर में नहीं. इसलिए मैं कहता हूं कि मैंने पश्चिम में इन मूल्यों को व्यवहार में लाते देखा है, न कि भारत में. इसलिए मैंने यह विषय चुना है.
चाहे वह पश्चिमी के मूल्य हों या प्राचीन भारतीय मूल्य, मैं इन्हें व्यवहार में लाकर खुश हूं. एक भारतीय होने के नाते मैं खुश हूं कि मैं उस संस्कृति का अंग हूं, जिसमें पारिवारिक मूल्य की गहरी जड़े हैं. हम भारतीय अपने परिवार के प्रति अत्यंत निष्ठावान होते हैं. उदाहरण के लिए, माता-पिता अपने बच्चों के लिए बड़े त्याग करते हैं. वे उनके साथ तब तक मजबूती से खड़े होते हैं, जब तक कि वे अपने पैरों पर खड़े नहीं हो जाते. दूसरी ओर, बच्चे भी अपना कर्तव्य समझ कर, अपने बूढ़े मां-बाप की सेवा करते हैं.
हमलोग ‘मातृदेव भव:’ पर विश्वास करते हैं. मां ईश्वर है. ‘पितृ देव भव:’ यानी पिता भगवान होते हैं. यही नहीं, भाई और बहन एक दूसरे के लिए त्याग करते हैं. वास्तव में घर में बड़े भाई-बहन दूसरे बच्चों से बहुत आदर पाते हैं. शादी को ही लीजिए. पति-पत्नी का पवित्र गंठबंधन, जिसे प्राय: दोनों पक्ष आजीवन निभाते हैं. संयुक्त परिवारों में, पूरा परिवार एक-दूसरे के हितों के बारे में सोचता है, काम करता है. हमारे पारिवारिक जीवन में बहुत प्यार और स्नेह है. (जारी)