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कुम्हारबांधी: यहां 2016 में भी दिखती है 18वीं सदी जैसी गरीबी

सारठ बाजार. गरीबों के उत्थान की बातें अक्सर होती हैं, लेकिन इसके प्रति गंभीरता नहीं दिखायी जाती है. यही कारण है कि सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब परिवारों का जीवन सिर्फ दो वक्त की रोटी कमाने के प्रयास में ही बीत जा रहा है. प्रखंड के कुम्हराबांधी गांव के हरिजन टोले का ग्रामीणों का जीवन […]

सारठ बाजार. गरीबों के उत्थान की बातें अक्सर होती हैं, लेकिन इसके प्रति गंभीरता नहीं दिखायी जाती है. यही कारण है कि सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब परिवारों का जीवन सिर्फ दो वक्त की रोटी कमाने के प्रयास में ही बीत जा रहा है. प्रखंड के कुम्हराबांधी गांव के हरिजन टोले का ग्रामीणों का जीवन सिर्फ दो वक्त की रोटी तक सिमट कर रह गयी है और वह रोटी भी आसानी से मयस्सर नहीं हो रही. हरिजन टोले में समस्याओं का अम्बार है, लेकिन सरकार द्वारा कोई पहल नहीं हो रही. शिक्षा हो या स्वास्थ्य सभी मामले में गांव पिछड़ा हुआ है. ग्रामीणों ने बताया कि उनका पूरा वक्त दो वक्त की रोटी जुगाड़ने में बीत जाता है.

सरकार द्वारा दी जाने वाली कई सुविधाएं एवं योजनाओं उन तक नहीं पहुंच रहीं. गांव के कई वृद्धों, विधवाओं एवं निशक्त सरकारी लाभ से वंचित हैं. लोग रोटी के लिए परिवार के सभी सदस्यों को साथ लेकर बंगाल में ईंट भट्ठे में काम करने चले जाते हैं. लेकिन वहां भी अब काम का अभाव होने लगा है. टोले में एक भी बच्चा आठवां पास नहीं है. इससे शिक्षा व्यवस्था का अंदाजा लग जाता है. बहुत पहले कुछ सरकारी आवास बनाये गये थे जो अब जर्जर स्थिति में है.

ग्रामीणों ने बीडीओ को गांव आकर समस्याओं से रूबरू होने की मांग की है. ग्रामीण गगांधर मांझी, कारु मांझी, ननकु मांझी, मनोज मांझी, जीतन मांझी, सुदन मांझी समेत दर्जनों ने कहा कि सरकार उनकी समस्या सुने ताकि वे भी समाज की मुख्य धारा में आ सके और गरीबी की विभीषिका से बाहर निकल सके.

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