रांची : राजनीतिक उथलपुथल के लिए चर्चित झारखंड ने इस वर्ष जहां दो राज्य सरकारें देखीं वहीं यहां लगभग छह माह तक राष्ट्रपति शासन भी लागू रहा.वर्ष 2000 में गठित झारखंड में 13 वर्ष में कुल 9 राज्य सरकारें बनीं और 4 बार राष्ट्रपति शासन भी लग चुका है. स्थापना के बाद के 13 साल में झारखंड में कुल 13 बार शासन बदला और इनमें से 3 बार यह बदलाव वर्ष 2013 में ही हुआ. 8 जनवरी को भाजपा-झारखंड मुक्ति मोर्चा-आजसू और जदयू की अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में चल रही लगभग 28 माह पुरानी गठबंधन सरकार झारखंड मुक्ति मोर्चा के समर्थन वापसी के चलते गिर गयी और मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने इस्तीफा दे दिया.
तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने अपने प्रमुख सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा से लगभग एक माह तक चली तनातनी के बाद 8 जनवरी को झारखंड मुक्ति मोर्चा की शर्तों की परवाह किये बगैर सुबह अपने आवास पर राज्य मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर विधानसभा भंग करने की सिफारिश की और इसकी सूचना तथा अपना इस्तीफा राज्यपाल डा सैयद अहमद को दे दिया. इसके बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपने अध्यक्ष शिबू सोरेन के नेतृत्व में राजभवन पहुंच कर राज्य सरकार से समर्थन वापसी का औपचारिक पत्र राज्यपाल को सौंप दिया. अंतत: 18 जनवरी को राज्य में राज्यपाल की सलाह पर केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया और विधानसभा भंग न कर उसे निलंबित अवस्था में रख दिया.
जब राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद कांग्रेस पार्टी ने तत्काल झामुमो के साथ मिलकर नई गठबंधन सरकार बनाने से मना किया तो झामुमो को लगा कि वह तो कांग्रेस की राजनीतिक चाल में फंस गयी है. लेकिन उसके पास इंतजार करने के अलावा कोई चारा भी नहीं था. झामुमो निराश भाव से राष्ट्रपति शासन की 175 दिनों की अवधि में नई सरकार के गठन के लिए कांग्रेस के सकारात्मक रुख का इंतजार करती रही.
राष्ट्रपति शासन की छह माह की अवधि समाप्त होने से ठीक तीन सप्ताह पूर्व कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने अपने केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाया और फिर बैठकों के अनेक दौर के बाद झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्रित्व में यहां नई सरकार के गठन का फैसला दोनों दलों ने किया. 9 जुलाई को हेमंत सोरेन कांग्रेस, राजद और निर्दलीयों के समर्थन पत्र के साथ सरकार बनाने का दावा पेश करने राजभवन पहुंच गये और उन्हें राज्यपाल ने 13 जुलाई को झारखंड के नवें मुख्यमंत्री के रुप में शपथ दिला दी.
नई सरकार ने आनन फानन में 18 जुलाई को ही विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर विश्वास मत प्रस्ताव 37 के मुकाबले 43 मतों से जीत लिया. कुल 82 सदस्यीय झारखंड विधानसभा में सिर्फ झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के निजामुद्दीन अंसारी अनुपस्थित थे जबकि विधानसभाध्यक्ष को छोड़कर उपस्थित अन्य सभी विधायकों ने मत विभाजन में अपने मत का प्रयोग किया.
विश्वास मत जीतने के लिए नई सरकार ने कई दागी और फरार चल रहे विधायकों को भी येनकेन प्रकारेण सदन में उपस्थित करा कर उनका मत भी सरकार के पक्ष में डलवाने में सफलता हासिल की. अपने गठन के बाद हेमंत सोरेन की सरकार ने अनेक झटके खाये. 13 जुलाई को शपथ ग्रहण के बाद उसे अपना विस्तार लगभग डेढ़ माह में चार अगस्त और 24 अगस्त को दो बार में करना पड़ा क्योंकि सहयोगी दल कांग्रेस में मंत्री पद पाने के लिए जबर्दस्त टकराव था.
नई सरकार ने गठन के पहले ही तय कर लिया कि आपसी समन्वय बनाये रखने के लिए एक समन्वय समिति का गठन किया जायेगा और न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत सरकार काम करेगी. सरकार बनने के 5 माह बाद 17 दिसंबर को नौ सदस्यीय राज्य समन्वय समिति का गठन किया गया जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश को सौंपी गयी है. इसके बावजूद घटक दलों में खींचातान जारी है और इसका सबसे बड़ा नमूना पिछले दो माह से राज्य के बालू घाटों की नीलामी के हेमंत सरकार के फैसले को लेकर चल रही तकरार है.
पहले तो सरकार के गठनबंधन सहयोगियों कांग्रेस और राजद ने आरोप लगाया कि हेमंत सोरेन ने बालू घाटों की नीलामी का फैसला व्यक्तिगत लाभ के मद्देनजर उन्हें विश्वास में लिये बिना कर लिया. फिर दोनों दलों के कुछ नेताओं और यहां तक कि मंत्रिमंडल सहयोगियों ने मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर मुख्यमंत्री पर इस मामले में 500 करोड़ रुपये का सौदा करने के आरोप लगाये. अंतत: पिछले सप्ताह मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर मुख्यमंत्री ने यह फैसला रद्द कर दिया और पुराने तरीके से ही बालू घाटों के उठाव का अधिकार ग्राम पंचायतों को दे दिया.
हेमंत सोरेन सरकार का भविष्य फिलहाल तो सुरक्षित लगता है क्योंकि कांग्रेस ने झामुमो से मुख्य रुप से लोकसभा चुनावों में गठबंधन को ध्यान में रखकर समझौता किया है और अप्रैल-मई में होने वाले इन चुनावों में राज्य की 14 में से 10 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस और सिर्फ चार पर झामुमो के चुनाव लड़ने की बात तय हुई है. यद्यपि इस समझौते को लेकर झामुमो में भारी असंतोष है.
पार्टी अध्यक्ष शिबू सोरेन ने तो कांग्रेस के साथ ऐसा कोई समझौता होने की बात सिरे से खारिज कर दी जबकि मुख्यमंत्री ने समझौते की बात न सिर्फ स्वीकार की है बल्कि इसी के अनुसार लोकसभा चुनाव लड़ने की बात सार्वजनिक तौर पर कही है. वर्तमान लोकसभा में झारखंड से कांग्रेस के पास सिर्फ रांची की सीट है जिससे उसके सांसद पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय हैं जबकि झामुमो के पास दुमका से शिबू सोरेन और पलामू से कामेश्वर बैठा की दो लोकसभा सीटें हैं.