रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने एक संतुलित बजट पेश किया है. लोक लुभावन वादों से बचते हुए रेल मंत्री ने रेलवे की सेहत को सुधारने के लिए अच्छे उपायों की घोषणा की है. किसी बजट में एक सोच होनी चाहिए कि किस दिशा में आगे बढ़ना है. रेल मंत्री ने आम लोगों के लिए साधारण डिब्बोंवाली ट्रेन चलाने की घोषणा की है. इससे गरीब, मजदूरों को काफी फायदा होगा. मध्यवर्ग के लिए एसी ट्रेन चलाने की भी बात कही गयी है. यानी समाज के सभी वर्गों का ख्याल रखा गया है. लेकिन, मेरा मानना है कि सरकार को यात्री किराये में बढ़ोतरी करनी चाहिए थी. समय के साथ डीजल और पेट्रोल के दामों में इजाफा हो रहा है, लेकिन रेलवे किराया अब भी काफी कम है. लोगों को अगर बेहतर सेवा मिले, तो वे पैसा खर्च करने को तैयार हैं. यात्री किराये को बाजार से जोड़ने की आवश्यकता है, क्योंकि बिना पैसे के रेलवे अपनी क्षमता को नहीं बढ़ा सकता है.
अच्छी बात है कि बिना सोचे-समझे नयी योजनाओं की घोषणाएं नहीं की गयीं. अगर रेलवे पुराने लंबित योजनाओं को ही पूरा कर ले, तो रेलवे की हालत में सुधार हो जायेगी. एक बात साफ है कि रेल मंत्री पहले रेलवे के इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने पर जोर दे रहे हैं. इसके लिए निजी क्षेत्र के अलावा दूसरे देशों के सहयोग से पूंजी जुटाने की पहल की गयी है. कोई भी निवेशक वहीं पूंजी लगायेगा, जहां उसे लाभ की संभावना दिखे. रेल मंत्री ने विभिन्न स्रोतों से पूंजी जुटाने की बात कही है. अगर इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत होगा, तो रेलवे की न सिर्फ आय बढ़ेगी, बल्कि यात्रियों को भी बेहतर सुविधा का लाभ मिल पायेगा.
एक बात साफ है कि सातवें वित्त आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद रेलवे पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा. अनुमान के मुताबिक लगभग 32 हजार करोड़ का बोझ रेलवे पर पड़ने की संभावना है. इसे देखते हुए रेलवे ने ऑपरेटिंग रेशियो को 92 फीसदी रखने का लक्ष्य रखा है. अगर इस लक्ष्य को हासिल कर लिया जाता है, तो यह बड़ी उपलब्धि होगी. रेल बजट में यात्री सुविधाओं को बेहतर करने के साथ ही तकनीक के जरिये सुरक्षा उपायों को मजबूत करने पर जोर दिया गया है. रेलवे के लिए सुरक्षा एक बड़ा सवाल बना हुआ है. बिना सुरक्षा उपायों को बेहतर किये रेलवे विश्वस्तरीय नहीं हाे सकता है. रेलवे के पास सबसे बड़ी समस्या पैसे की है. इसके लिए निजी पूंजी की जरूरत है. लेकिन, सरकार की नीतियाें के कारण निजी क्षेत्र पूंजी लगाने को लेकर सशंकित रहा है. आज लाखों करोड़ की योजनाएं लंबित पड़ी हुई हैं. ऐसे में रेल मंत्री ने किसी नयी योजनाओं को एलान नहीं कर दूरदर्शिता दिखायी है. समय में ट्रेनों का परिचालन, सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम और साफ-सफाई एक बड़ी समस्या है.
ट्रेनों के हादसों को रोकना रेलवे के लिए प्राथमिकता होनी चाहिए. इसके अलावा दबाव वाले क्षेत्रों में ट्रैकों की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए. काफी समय से माल ढुलाई के लिए डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर बनाने की बात हो रही है, लेकिन इसकी गति काफी धीमी है. इसे तत्काल पूरा करने की जरूरत है, ताकि रेलवे की आमदनी में इजाफा हो सके. अब तक रेलवे बजट में आम लोगों को लुभाने के लिए यात्री किराये में कोई बढ़ोतरी नहीं कर माल किराये में बढ़ोतरी करने की प्रवृत्ति देखी गयी. लेकिन, पहली बार दोनों किरायों में किसी प्रकार की बढ़ोतरी नहीं की गयी. रेलवे की आय का सबसे बड़ा स्रोत मालभाड़ा है. इसे तर्कसंगत बना कर ही रेलवे की अामदनी को बढ़ाया जा सकता है. रेलवे की आमदनी बढ़ाने के स्रोत को मजबूत नहीं करने के कारण ही मौजूदा वित्तीय वर्ष में यात्री और मालभाड़े से होनेवाली आमदनी में 15 हजार करोड़ रुपये की कमी का अनुमान है. रेलवे की सबसे बड़ी दिक्कत यह रही है कि यात्रियों और ट्रेनों की संख्या समय के साथ बढ़ी, लेकिन पटरियों का उस अनुपात में विकास नहीं हो पाया. आज रोजाना लगभग तीन करोड़ लोग ट्रेन से सफर करते हैं और आजादी के बाद मात्र 12 हजार किलोमीटर पटरियों की संख्या बढ़ पायी, जबकि इस दौरान रेलवे का खर्च लगातार बढ़ता गया. बिना आमदनी के रेलवे का विस्तार नहीं किया जा सकता है. आज भी यात्रा का सबसे सस्ता और आसान जरिया रेलवे है. देश में हाइस्पीड ट्रेन तभी चल पायेगी, जब इसके लिए रेलवे के पास पर्याप्त संसाधन हों, क्योंकि खस्ताहाल पटरियों पर तेज रफ्तार ट्रेनें नहीं दौड़ सकती हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए रेल मंत्री ने तत्काल नयी ट्रेनों को चलाने का एलान नहीं किया है. रेलवे ने हाल में दो कारखानों के लिए विदेशी कंपनियों से करार किया है और इससे रेलवे में पूंजी निवेश की संभावना मजबूत हुई है. विश्वस्ततरीय रेल बनने के लिए पैसे के साथ मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत है. (बातचीत : विनय तिवारी)
एसएस खुराना
पूर्व चेयरमैन, रेलवे बोर्ड