बेंगलुरु की पवित्र ने शारीरिक अशक्तता का सामना करनेवालों को अक्षम नहीं, बल्कि आम लोगों से कहीं ज्यादा सक्षम माना. इन खास लोगों के साथ बीपीओ कंपनी ‘विंध्या इंफोमीडिया’ की बुनियाद रखनेवाली पवित्र वाइ एस, आज एक सफल उद्यमी होने के साथ देश के लिए प्रेरणा भी बन चुकी हैं.
एक पारंपरिक संयुक्त परिवार में पली-बढ़ी होने के चलते बचपन से ही मैंने जीवन के मूल्यों को समझा है. इसी के चलते कॉलेज की पढ़ाई के साथ मैंने गरीबों को रोजगार दिलाने और उनकी अन्य समस्याओं के लिए कुछ एनजीओ के साथ काम करना शुरू कर दिया था. स्नातक की पढ़ाई करने के बाद मेरी शादी हो गयी. शादी के बाद जब जिंदगी कुछ हद तक सैटेल हो गयी, तब मुङो लगने लगा कि मुङो कुछ करना चाहिए. मैंने बीपीओ सेक्टर की एक समस्या के बारे में काफी सुना था कि इस क्षेत्र में काम करनेवाले कर्मचारी अकसर काम को गंभीरता से नहीं लेते. दूसरी ओर, मेरे जहन में ऐसे लोगों का ख्याल भी चलता रहता था, जो पढ़े-लिखे हैं. उन्हें काम करना आता है और वे पूरी गंभीरता से काम करना भी चाहते हैं, लेकिन शारीरिक अशक्तता के चलते उन्हें सामान्य संस्थानों में काम नहीं मिल पाता. तभी मेरे जहन में इन दोनों विचारों को मिला कर एक नये तरह के काम की शुरुआत का ख्याल आया. इस नये विचार ने मुङो कुछ अलग करने का रास्ता दिखा दिया.
लक्ष्य था अलग तरह के लोगों को रोजगार देना
जब मैंने एक अलग तरह के समुदाय के साथ बीपीओ कंपनी की शुरुआत करने का फैसला किया, उस वक्त मैं यह नहीं जानती थी कि मैं इस अलग तरह के विचार को अंजाम दे पाऊंगी या नहीं. मगर, यह जरूर जानती थी कि मुङो इन लोगों के लिए कुछ अलग करना है, वह भी बड़े स्तर पर.
मेरा लक्ष्य शारीरिक अशक्तता का सामना करनेवाले 10 या 20 लोगों को नहीं, बल्कि सैकड़ों लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक बड़ा प्लेटफॉर्म तैयार करना था. मैं इन लोगों को ऐसा बनाना चाहती थी कि जब लोग इन्हें देखें, तो उन्हें लगे कि शारीरिक अक्षम होने के बावजूद ये लोग अयोग्य नहीं, बल्कि हमसे कहीं ज्यादा योग्य हैं और जिस तरह का जीवन ये जीना चाहते हैं, जी सकते हैं. एक आम व्यक्ति की तरह ये लोग भी अपनी अलग पहचान बना सकते हैं.
विश्वसनीयता पैदा करना था सबसे बड़ी चुनौती
मैंने पहले किसी भी तरह के प्रोफेशनल फील्ड में काम नहीं किया था. मैं एक फ्रेशर थी. बीपीओ कंपनी ‘विंध्या इंफोमीडिया’ की शुरुआत करना मेरे लिए एक नयी दुनिया में कदम रखने की तरह था. एक नयी सोच और अलग तरह के लोगों के साथ इस क्षेत्र में नयी शुरुआत करना मेरे लिए आसान नहीं था. इस काम की शुरुआत के लिए जब मैंने बैंक की मदद लेनी चाही, तो वे किसी-न-किसी बहाने मुङो लोन देने से इनकार कर देते थे. अपनी बीपीओ कंपनी विंध्या इंफोमीडिया की शुरुआत करने के लिए मैंने और मेरे पति अशोक ने अपनी पूरी जमा पूंजी लगा दी. एक दोस्त ने फंड का इंतजाम करने में हमारी काफी मदद की. फिर भी सबसे बड़ी चुनौती की बात करें, तो वह थी अपने संस्थान के प्रति लोगों में विश्वसनीयता पैदा करना.
दो कर्मचारियों के साथ हुई शुरुआत
शुरुआती दौर में मैंने लोगों से बातचीत करके, आस-पास के क्षेत्रों में संदेश पहुंचा कर और अपने ऑफिस के बाहर बैनर लगा कर इस काम और अपने संस्थान के बारे में लोगों को बताना शुरू किया. इसी बीच एक एनजीओ की मदद से मुङो पहले दो कर्मचारी मिले. इसके बाद हमने सरकार द्वारा शारीरिक अशक्तों के लिए आयोजित किये जानेवाले समारोहों में जाकर लोगों को अपने काम और कंपनी के बारे में बताना शुरू किया. धीरे-धीरे इस खास समुदाय के लोग हमारे पास इंटरव्यू के लिए आने लगे. इन लोगों को काम की ट्रेनिंग देने के साथ ही मुङो खुद भी इन लोगों के साथ तालमेल बिठाना सीखना था. मुङो इस बात का ख्याल भी रखना था कि मैं जिस काम की शुरुआत कर रही हूं, उसमें अपने क्लाइंट्स को बेहतर और क्वालिटी वर्क दे पाऊं. क्योंकि बेहतर काम ही इस बात का प्रमाण दे सकता था कि मैंने जो सपना देखा, उसे सच करने में मैं सफल हुई. मैं बिना किसी चैरिटी के बहुत ही प्रोफेशनल तरीके से इस संस्थान की शुरुआत करना चाहती थी.
योग्यता से ज्यादा महत्वपूर्ण है जज्बा
प्रकृति यदि किसी इनसान को कुछ मामलों में असमर्थ रखती है, तो उसे एक बहुत बड़ी ताकत भी देती है. इन खास लोगों के साथ काम करके मैंने इस ताकत को बखूबी देखा और महसूस किया है. शुरुआती दौर में मैंने अपनी कंपनी में चयन-प्रक्रिया काफी सामान्य रखी. कंप्यूटर का ज्ञान और अंगरेजी समझनेवालों को हम अपने संस्थान में रख लेते थे. वहीं इंटरव्यू के दौरान मेरे पास कई लोग ऐसे भी आये जो वादा करते थे कि यदि उन्हें सही प्रशिक्षण मिले, तो वे जल्द-से-जल्द काम सीख लेंगे. तभी मैंने महसूस किया कि योग्यता की अपेक्षा लोगों में खुद को साबित करने का जज्बाहोना कहीं ज्यादा मायने रखता है. ऐसे लोग जिस काम को करना चाहते हैं, वे अपने जज्बे के दम पर उसे बेहतर से बेहतर तरीके से अंजाम देने में कोई कमी नहीं छोड़ते. मगर यह जज्बा हर किसी में नहीं होता. इसी के चलते मैं अपने इंप्लॉइज का चयन करते वक्त सिर्फ उनके सकारात्मक जज्बे पर ध्यान देती हूं. मुङो लगता है कि यदि आप वाकई में किसी काम को करना चाहते हैं तो सिर्फ आप ही उस काम को बेहतर अंजाम तक पहुंचा सकते हैं.
क्षमता के अनुसार निर्धारित होता है काम
मेरी कंपनी में अधिकतर शारीरिक अशक्त और बोलने में अक्षम कर्मचारी हैं. उनके काम करने की क्षमता को परख कर उन्हें किस काम में बेहतर बनाया जा सकता है, यह देखना हमारा काम है. मैं अपने रिशेप्सनिस्ट की बात करूं, तो उसके दोनों हाथ नहीं हैं. जाहिर है, ऐसे में मैं उसे डेटा एंट्री प्रोजेक्ट में नहीं लगा सकती थी. हां, मगर वह बात करने में पूरी तरह से सक्षम है. उसकी इस योग्यता को देखते हुए मैंने उसे वॉइस प्रोजेक्ट में लगाया. मैंने उसे अपने संस्थान में फ्रंट ऑफिस का काम संभालने की जिम्मेदारी दी है. वह कॉल रिसीव कर सकता है और लोग जिस बात की जानकारी लेना चाहते हैं, उन्हें बता सकता है. उसने दसवीं तक की पढ़ाई की है, तो वह अन्य इंप्लॉइज को पढ़ाने में भी हमारा सहयोग करता है. इसी तरह हम हमेशा अपने इंप्लॉइज की क्षमता को देखते हुए उन्हें अलग-अलग तरह के काम करने में सक्षम बनाने की कोशिश करते हैं.