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”किस कानून के तहत पाकिस्तान कोहिनूर की वापसी की मांग कर सकता है”

लाहौर : पाकिस्तान की एक अदालत ने याचिकाकर्ता को दो सप्ताह में इस सवाल का जवाब देने को कहा है कि किस कानून के तहत पाकिस्तान प्रसिद्ध कोहिनूर हीरे को ब्रिटेन से वापस लाने की मांग कर सकता है जबकि भारत सालों से इसे ब्रिटेन से हासिल करने की कोशिश में लगा है. याचिकाकर्ता बैरिस्टर […]

लाहौर : पाकिस्तान की एक अदालत ने याचिकाकर्ता को दो सप्ताह में इस सवाल का जवाब देने को कहा है कि किस कानून के तहत पाकिस्तान प्रसिद्ध कोहिनूर हीरे को ब्रिटेन से वापस लाने की मांग कर सकता है जबकि भारत सालों से इसे ब्रिटेन से हासिल करने की कोशिश में लगा है. याचिकाकर्ता बैरिस्टर जावेद इकबाल जाफरी ने लाहौर हाई कोर्ट को बताया कि कोहिनूर ‘पाकिस्तान की संपत्ति’ है और यह ब्रिटेन के ‘अवैध कब्जे’ में है. उन्होंने कहा, ‘ब्रिटिश सरकार भारत को हीरा सौंपने से इंकार कर चुकी है. अब पाकिस्तान को इस पर दावा करना चाहिए क्योंकि उसपर पहला हक उसका है. इसे वापस लाना पाकिस्तान सरकार का कर्तव्य है.’

मामले पर सुनवाई के दौरान लाहौर हाई कोर्ट के न्यायाधीश खालिद महमूद खान ने याचिकाकर्ता से कानून के उस प्रावधान का उल्लेख करने को कहा जिसके तहत पाकिस्तान सरकार ब्रिटिश सरकार से हीरे की वापसी की मांग कर सकती है. अदालत मामले के गुण दोष पर सुनवाई कर रही थी. हाई कोर्ट ने संघीय और पंजाब के विधि अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे 25 फरवरी को अगली सुनवाई पर हाजिर हों और इसके गुण दोष के बारे में अपने तर्क दें.

पिछले दिसंबर को लाहौर हाई कोर्ट के पंजीयक कार्यालय ने याचिका के गुण दोष पर यह कहते हुए आपत्ति जाहिर की थी कि ब्रिटिश महारानी के खिलाफ मामले की सुनवाई के लिए अदालत के पास न्यायिक क्षेत्राधिकार नहीं है. लेकिन आठ फरवरी को लाहौर हाई कोर्ट ने आपत्ति को खारिज कर दिया और याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया. इस मामले में ब्रिटिश महारानी, पाकिस्तान में ब्रिटिश उच्चायोग और पाकिस्तानी सरकार को प्रतिवादी बनाया गया है. जाफरी का कहना है कि ब्रिटेन ने यह हीरा महाराजा रंजीत सिंह के पौत्र दलीप सिंह से छीना था और इसे ब्रिटेन ले गये थे.

जाफरी ने कहा था, ‘यह हीरा 1953 में महारानी ऐलिजाबेथ द्वितीय की ताजपोशी के समय उनके ताज का हिस्सा बन गया. महारानी ऐलिजाबेथ का कोहिनूर पर कोई हक नहीं है. यह हीरा 105 कैरेट वजनी और अरबों रुपये कीमत का है.’ उन्होंने साथ ही कहा कि कोहिनूर हीरा पंजाब प्रांत की सांस्कृतिक विरासत था और इस पर इसके नागरिकों का अधिकार है. बताया जाता है कि 1849 में ब्रिटिश फौजों द्वारा पंजाब को फतह किए जाने के बाद सिख साम्राज्य की संपत्ति पर कब्जा कर लिया गया. कोहिनूर को इसके बाद लाहौर में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खजाने में जमा करा दिया गया.

सिख साम्राज्य की संपत्तियों को युद्ध के मुआवजे के तौर पर लिया गया. यहां तक की लाहौर संधि की एक पंक्ति में भी कोहिनूर हीरे के भविष्य का जिक्र किया गया है. बाद में इस हीरे को एक पोत से ब्रिटेन ले जाया गया. पोत पर हैजा फैल गया और समझा जाता है कि हीरे जिसके पास था, यह कुछ समय के लिए उसके हाथ से निकल गया. बाद में उसके नौकर ने इसे लौटा दिया. 1850 में हीरे को महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया गया. मध्य दक्षिण भारत में गोलकुंडा की खदानों से निकला यह हीरा मुगल शहजादों, ईरानी यौद्धाओं, अफगान शासकों और पंजाबी महाराजाओं के हाथों से होते हुए अंत में 1849 में पंजाब की हार के बाद एक युवा सिख राजकुमार द्वारा ब्रिटेन को सौंप दिया गया.

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