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सबसे बड़ा खतरा : इसलामिक स्टेट का भयावह साया
दुनिया भर में आतंकी दहशत और हिंसा का पर्याय बन चुके इसलामिक स्टेट ने जून, 2014 में अपने शासन की घोषणा के बाद से मध्य-पूर्व के इराक, सीरिया और लीबिया में बड़े इलाके में अपनी समानांतर सत्ता स्थापित कर ली है. बर्बरता, जनसंहार, अपहरण, नृशंस हिंसा जैसी रणनीतियों तथा कट्टर इसलामी साम्राज्य की स्थापना के […]
दुनिया भर में आतंकी दहशत और हिंसा का पर्याय बन चुके इसलामिक स्टेट ने जून, 2014 में अपने शासन की घोषणा के बाद से मध्य-पूर्व के इराक, सीरिया और लीबिया में बड़े इलाके में अपनी समानांतर सत्ता स्थापित कर ली है.
बर्बरता, जनसंहार, अपहरण, नृशंस हिंसा जैसी रणनीतियों तथा कट्टर इसलामी साम्राज्य की स्थापना के इरादे ने विभिन्न देशों से गुमराह और उन्मादी युवकों को उसके प्रति आकर्षित किया है. इसलामिक स्टेट के आतंक की धमक अरब के रेगिस्तानों से निकल कर अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका और एशिया के अन्य देशों तक पहुंच चुकी है. यही कारण है कि पूरी दुनिया में इस आतंकवादी गिरोह के खात्मे के लिए आवाजें उठ रही हैं. विभिन्न देश इसके विरुद्ध सैन्य कार्रवाई को अंजाम दे रहे हैं.
कब्जे में इलाके
पिछले साल सितंबर में अमेरिकी काउंटर टेररिज्म सेंटर के तत्कालीन निदेशक मैथ्यू ओल्सेन ने कहा था कि दजला-फुरात नदी घाटी में अधिकतर इलाकों पर इसलामिक स्टेट का कब्जा है. यह क्षेत्र करीब 2.10 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ, जो कि ब्रिटेन के आकार के बराबर है.
इस साल अमेरिकी रक्षा विभाग ने जानकारी दी कि अमेरिकी एवं सहयोगी देशों तथा इराकी सेना की जवाबी कार्रवाई के कारण उत्तरी एवं मध्य इराक तथा उत्तरी सीरिया में इसलामिक स्टेट के अग्रणी दस्तों को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा है. इस बयान के अनुसार, अब यह आतंकी गिरोह इराक और सीरिया के करीब 20-25 फीसदी आबादीवाले इलाकों में आजादी से अपनी कार्रवाइयों को अंजाम नहीं दे सकता है. अगस्त, 2014 की तुलना में इस साल इसलामिक स्टेट से करीब 30-37 फीसदी इलाके यानी 15 से 20 हजार वर्ग किलोमीटर वापस छीन लिये गये हैं.
इसके बावजूद इस संगठन ने रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कई इलाके जीतने में सफलता पायी है, जिनमें इराक का रमादी और सीरिया के पाल्माइरा उल्लेखनीय हैं. जानकारों की राय है कि अमेरिकी सूचनाएं जमीनी हकीकत को ठीक से बयान नहीं करती हैं. वास्तविकता यह है कि इसलामिक स्टेट अपने इलाके में स्थित शहरों, मुख्य सड़कों, तेल उत्पादन और सैन्य ठिकानों पर ही पूरा कब्जा रखता है.
इस बारे में भी पूरी जानकारी नहीं है कि इराक और सीरिया में इसलामिक स्टेट के कब्जेवाले इलाकों में कितनी आबादी बसर करती है. मार्च, 2015 में रेड क्रॉस के प्रमुख ने अनुमान लगाया था कि इन क्षेत्रों में एक करोड़ से अधिक लोग रहते हैं. शोध संस्था आइएचएस मिडल इस्ट के अनुसार, 2015 में इसलामिक स्टेट को अपने कब्जेवाले इलाके में से 14 फीसदी हिस्से से हाथ धोना पड़ा है. निश्चित रूप से खिलाफत कायम करने के इस गिरोह के इरादों के लिए यह एक बड़ा झटका है.
रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र, जो इसलामिक स्टेट से वापस लिये गये हैं, वे इस प्रकार हैं तुर्की-सीरिया सीमा पर स्थित शहर ताल अबयाद, इराकी शहर तिकरित और बैजी तेल रिफायनरी. सीरिया में स्थित इसलामिक स्टेट की कथित राजधानी राक्का और इराक के बड़े शहर मोसुल को जोड़नेवाली मुख्य सड़क के एक हिस्से पर भी अब उसका कब्जा नहीं है.
इससे दोनों शहरों को होनेवाली परस्पर आपूर्ति पर गहरा असर पड़ा है. इस संस्था के अनुसार, इस साल के शुरू और 14 दिसंबर के बीच इसलामिक स्टेट का क्षेत्र करीब पांच हजार वर्ग किलोमीटर सिकुड़ गया है. अगर इन हारों को इसलामिक स्टेट द्वारा जीते गये नये इलाकों के साथ तुलनात्मक रूप से देखें, तो इसमें एक रणनीतिक-राजनीतिक पैटर्न नजर आता है.
आइएचएस के अनुसार, इसलामिक स्टेट कुर्द इलाकों को कब्जे में रखने को लाभकारी नहीं मानता है, क्योंकि उन क्षेत्रों पर कब्जे के लिए कुर्द भी खूब लड़ रहे हैं. इस वर्ष सीरियाई कुर्दों के कब्जेवाले इलाके में 186 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. ऐसे में इसलामिक स्टेट पारंपरिक रूप से सुन्नी बहुल क्षेत्रों पर ही काबिज होना फायदेमंद मान रहा है. पाल्माइरा और रामादी की जीत को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए.
इलाकों पर कब्जों के लिहाज से देखें, तो इस लड़ाई में इस वर्ष सबसे अधिक नुकसान सीरियाई सरकार को हुआ है, जिसने 16 फीसदी जमीन खो दी है और अब उसके पास करीब 11,500 वर्ग मील का क्षेत्र बचा रह गया है, जो इसलामिक स्टेट के कब्जेवाले इलाके के आकार के आधे से भी कम है.
सीरिया का कुल क्षेत्रफल 71,500 वर्ग मील है. इराकी सरकार लगभग छह फीसदी जमीन वापस लेने में कामयाब रही. वहीं, इराकी कुर्दों ने अपनी दो फीसदी जमीनों पर फिर से कब्जा कर लिया है. साल के बीतते 28 दिसंबर को खबर आ रही है कि इराकी सेना ने रामादी पर फिर से कब्जा कर लिया है.
इसलामिक स्टेट के इरादे
जून, 2014 में इस गिरोह ने अबु बक्र अल-बगदादी के नेतृत्व में इराक के अपने कब्जेवाले इलाके में खिलाफत की स्थापना की घोषणा की, जहां शासन इसलामिक शरिया के हिसाब से चलाने की बात कही गयी.
इस संगठन ने विश्वभर के मुसलिमों से बगदादी को नेता मान कर खिलाफत में आने और उसका समर्थन करने का आह्वान किया. अफ्रीका और एशिया में सक्रिय अनेक कट्टरपंथी हिंसक जमातों ने इसे स्वीकार भी किया. पिछले डेढ़ साल में इस गिरोह ने ताबड़तोड़ हमले कर इराक और सीरिया के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है. सीरियाई शहर राक्का में उसकी कथित राजधानी है.
लड़ाकों की संख्या
इस वर्ष फरवरी में अमेरिकी इंटेलिजेंस प्रमुख जेम्स क्लैपर ने इराक और सीरिया में इस गिरोह के पास 20 से 32 हजार के बीच लड़ाके होने का अनुमान लगाया था, किंतु जून, 2015 में अमेरिकी उप विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने कहा था कि पिछले साल अगस्त से शुरू हुए अंतरराष्ट्रीय सेनाओं के हमलों में 10 हजार से अधिक लड़ाके मारे गये हैं. इराकी विशेषज्ञ हिशाम अल-हशीमी का मानना है कि मात्र 30 फीसदी लड़ाके ही इसलामिक स्टेट की विचारधारा से प्रभावित हैं और बाकी लड़ाके भय या मजबूरी में उनकी ओर से लड़ते हैं.
इस साल अक्तूबर के महीने में काउंटर टेररिज्म सेंटर के निदेशक निकोलस रासमुसेन ने अमेरिकी कांग्रेस को जानकारी दी थी कि इस गिरोह ने 28 हजार से अधिक विदेशी लड़ाकों को आकर्षित किया है, जिनमें कम-से-कम पांच हजार पश्चिमी देशों से हैं. इनमें करीब 250 लड़ाके अमेरिकी हैं.
लंदन स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ रेडिक्लाइजेशन एंड पोलिटिकल वायलेंस तथा न्यूयॉर्क स्थित सौफान ग्रुप का कहना है कि करीब एक-चौथाई लड़ाके पश्चिमी देशों से हैं, लेकिन अधिकतर विदेशी लड़ाके अरब के देशों ट्यूनिशिया, सऊदी अरब, जॉर्डन और मोरक्को से हैं.
पृष्ठभूमि
इस गिरोह की जड़ें अबु मुसाब अल-जरकावी के इराकी अल-कायदा में खोजी जा सकती हैं. इराक पर हमले के एक साल बाद 2004 में जरकावी ने इस गुट की नींव डाली थी. दो साल बाद उसकी मौत के बाद अल-कायदा ने इराक में इसलामिक स्टेट की स्थापना की, जिसकी जिम्मेवारी 2010 में बगदादी को मिली.
एक साल पहले तक बगदादी अमेरिकी सेनाओं की कैद में था. इसने नये तरीके से लड़ाकों को संगठित किया और 2013 में सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद के विरुद्ध लड़ाई के लिए अल-नुसरा फ्रंट बनाया. उसी साल अप्रैल में उसने इराक और सीरिया में सक्रिय अपने लड़ाकों को इसलामिक स्टेट इन इराक एंड लेवांत/सीरिया (आइएसआइएस) के अंतर्गत मिला लिया.
वर्ष 2013 के दिसंबर में बगदादी ने अपना पूरा ध्यान इराक में लगाया और एक-के-बाद-एक कई शहर जीते और मसूल को अपना मुख्य ठिकाना बनाया. जून, 2014 में मसूल से बगदादी ने खिलाफत की स्थापना की घोषणा की.
इराक और सीरिया से बाहर हमले
वर्ष 2015 के दूसरे हिस्से में इसलामिक स्टेट ने अपने कब्जेवाले क्षेत्रों से बाहर कई हमलों की जिम्मेवारी लेना शुरू किया. इससे जुड़े एक मिस्री गुट ने सिनाई इलाके में रूसी नागरिक विमान को मार गिराने की जिम्मेवारी ली. इस दुर्घटना में 228 लोग मारे गये थे.
लेबनान की राजधानी बेरुत में हुए दो बम विस्फोटों की भी जिम्मेवारी इसलामिक स्टेट ने ली, जिनमें कम-से-कम 41 लोग मारे गये थे. पिछले महीने पेरिस में हुए हमलों के बारे में भी माना जाता है कि इसमें इसलामिक स्टेट का हाथ है. इन हमलों में 128 लोग मारे गये थे.
इसलामिक स्टेट पर हमला
अमेरिका के नेतृत्व में बने व्यापक लामबंदी ने आठ अगस्त, 2014 को अभियान की शुरूआत के बाद से 23 दिसंबर, 2014 तक इसलामिक स्टेट के इराकी ठिकानों पर 5,710 हवाई हमले किये. सीरिया में इन हमलों की तादाद करीब 2,904 रही है. फ्रांस ने सीरिया में इसलामिक स्टेट के खिलाफ सितंबर में और ब्रिटेन ने दिसंबर में हवाई हमले करने शुरू किये. रूस अमेरिकी गंठबंधन का हिस्सा नहीं है, लेकिन इसके लड़ाकू जहाजों ने सीरिया में 30 सितंबर से हमले करने शुरू कर दिये हैं.
सीरिया में रूसः मध्य-पूर्व के हिंसक और जटिल माहौल में रूस के प्रवेश ने पश्चिमी देशों और अरब के समीकरण को बदल दिया है.
रूस का कहना है कि वह सीरिया के वैधानिक शासनाध्यक्ष बशर अल-असद के शासन को स्थिर करने और इसलामिक स्टेट को खदेड़ने के लिए हवाई हमले कर रहा है. लेकिन अमेरिका और अन्य नाटो देशों का आरोप है कि रूस सीरिया के उन विद्रोहियों पर भी हमले कर रहा है, जो बशर अल-असद के विरोधी हैं.
हालांकि, सर्वसम्मति से पारित संयुक्त राष्ट्र के हालिया प्रस्ताव में इसलामिक स्टेट के विरुद्ध मिल-जुल कर काम करने का निर्णय लिया गया है, पर अमेरिकी और रूसी खेमा एक-दूसरे के उद्देश्यों और रणनीति को लेकर सशंकित है. परस्पर अविश्वास के कारण ही तुर्की ने एक रूसी लड़ाकू विमान को मार गिराया था जिसके बाद दोनों देशों के संबंध बेहद खराब हो गये हैं.
यजीदी समुदाय पर कहर
इराक में बसनेवाले यजीदी लोगों पर इसलामिक स्टेट का कहर सबसे भयावह रहा है. यह आतंकी गिरोह इस समुदाय को इस्लाम का पालन नहीं करने के कारण ‘काफिर’ या ‘नास्तिक’ मानता है तथा उनके ऊपर हर तरह की हिंसा की इजाजत देता है.
पिछले साल 5,200 से अधिक यजीदी अपहृत किये गये थे जिनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे थे. समुदाय के नेताओं के अनुसार अभी भी आइएसआइएस के कब्जे में 34 सौ यजीदी हैं. अब तक हजारों यजीदियों की हत्या की जा चुकी है और चार लाख से अधिक लोग शरणार्थी बनने पर मजबूर हुए हैं.
भारत के लिए खतरा
पिछले कई वर्षों से भारत देसी-विदेशी आतंकी गिरोहों का शिकार होता रहा है. स्वाभाविक रूप से इसलामिक स्टेट के उदय ने भारत को भी चिंतित किया है. पेरिस में हुए हमलों के बाद नवंबर में गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों को आगाह करते हुए संदेश भेजा कि भारतीय क्षेत्रों में इसलामिक स्टेट के हमलों की संभावना है.
अक्तूबर महीने की 27 तारीख को इंटरनेट पर बंगाली में मुस्लिम युवाओं को उग्र बनाने के उद्देश्य से डाले गये ऑडियो क्लिप के बाद से ही भारतीय सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हो गयी थीं. बांग्लादेश में इसलामिक स्टेट ने दो विदेशियों की हत्या की जिम्मेवारी ली है, पर वहां की सरकार ने देश में इस आतंकी गिरोह की उपस्थिति से इनकार किया है.
विभिन्न रिपोर्टों से जानकारी के मुताबिक, पिछले डेढ़ साल में करीब दो दर्जन भारतीय युवा सीरिया और इराक में इसलामिक स्टेट की ओर से लड़ने के लिए भारत से गये हैं. इनमें से छह के मारे जाने की खबर है.
सितंबर महीने में संयुक्त अरब अमीरात की सरकार ने पांच संदिग्ध भारतीयों को पकड़ कर वापस भेजा था. जुलाई में एक अमेरिकी अखबार यूएसए टुडे ने 32 पन्ने के एक इसलामिक स्टेट के दस्तावेज के हवाले से बताया था कि यह खतरनाक गिरोह भारत पर हमले की तैयारी कर रहा है.
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