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वो डॉक्टर बनने के लिए नाचती है…

सीटू तिवारी पटना से, बीबीसी हिन्दी के लिए सर्दियों की शाम धीरे-धीरे गहरा रही है. 19 साल की ममता अपने तीखे नैन-नक्श पर भड़काऊ मेकअप की परत चढ़ा रही है. उसे स्टेज पर गोरी दिखने को कहा गया है. ममता बिहार के सोनपुर पशु मेले में लगने वाले थिएटर में नाचती हैं. वह बीते साल […]

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सर्दियों की शाम धीरे-धीरे गहरा रही है. 19 साल की ममता अपने तीखे नैन-नक्श पर भड़काऊ मेकअप की परत चढ़ा रही है. उसे स्टेज पर गोरी दिखने को कहा गया है.

ममता बिहार के सोनपुर पशु मेले में लगने वाले थिएटर में नाचती हैं.

वह बीते साल भी यहां आई थीं. उसके पिता की मौत हो चुकी है और मां नर्स हैं. लेकिन बीमार रहती हैं. ऐसे में घर चलाने की ज़िम्मेदारी ममता पर है. ममता कोलकाता के एक स्कूल में बाहरवीं में पढ़ती हैं.

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वो बताती हैं, ”मैं अपनी पढ़ाई का ख़र्च इसी मेले से निकालती हूं, एक महीने में यहां से मुझे क़रीब डेढ़ लाख रूपए मिल जाते हैं. यहां से कमा कर जाऊंगी तो फिर पढ़ाई में लग जाऊंगी. इस बीच जो पढ़ाई होगी, उसके नोट्स अपनी सहेली से ले लूंगी.”

ममता आगे चलकर डॉक्टर बनना चाहती हैं. वो कहती हैं, ”मेरी पढ़ाई बहुत अच्छी है. मेरी मां नर्स है तो मैं डाक्टर ज़रूर बनूंगी…मैं रोज़ाना 6 घंटे पढ़ती हूं.”

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परिवार में कोई विरोध नहीं होता, ये पूछने पर वो बताती हैं, ”मां को मालूम है. लेकिन हमारे पास और कोई रास्ता नहीं. मां रोज़ मुझसे बात करती है. मैं घर से बाहर हूं तो उसे चिंता लगती है.”

ममता जैसे ढेरों कलाकार आपको सोनपुर मेले में मिल जाएगें.

श्वेता पिछले पांच साल से सोनपुर मेले में आ रही हैं. मैं जब उनसे मिली तो उन्होंने हाथ जोड़कर नमस्कार किया. उसकी पांच बहनें हैं. वो बताती हैं कि घर के हालात के चलते पढ़ाई 10 वीं में ही छोड़ दी. पहले एक कंपनी में काम किया, लेकिन घर नहीं चला पाई तो थिएटर में नाचने लगी.

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उसे हर रात नाचने पर 1200 रुपए मिलते है और तीन-चार हज़ार रुपए ‘बख़्शीश’ के तौर पर. लेकिन श्वेता के घरवाले इस बात से अनजान हैं. वो यह कहकर आई हैं कि वो इवेंट कंपनी के लिए काम करने जा रही हैं.

थिएटर और अश्लीलता के सवाल पर श्वेता बेफ़िक्र होकर कहती हैं, ”हम अपने अंदर की कला दिखाते हैं, दर्शक हमसे क्या लेता है या क्या सुनता है…यह हम नहीं जानते.”

लेकिन थिएटर में पैसा कमाना इतना आसान भी नहीं.

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दिलचस्प है कि थिएटर की शुरूआत और अंत दोनों ही भगवान के भजन से होता है. शाम के छह बजते-बजते मेले में लगे ग्यारह थिएटरों से भोजपुरी गीतों की आवाज़ माहौल में अजीब घालमेल पैदा करना शुरू कर देती है. ये लड़कियां 6 बजे से ही स्टेज पर खड़ी हो जाती हैं और रात बारह बजे तक समूह में नाचती रहती हैं.

इसके साथ ही थिएटर वाले अपने अपने रेट्स को भी अनांउस करते रहते है. सुपर वीआईपी सीट से लेकर स्पेशल सीट तक. इनके टिकट की क़ीमत एक हज़ार से लेकर दौ सौ रुपए तक है.

तक़रीबन छह घंटे समूह में नाचने के बाद रात बारह बजे से सोलो परफ़ॉरमेंस शुरू होता है, जो सुबह चार बजे तक चलता है.

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ये लड़कियां दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, उत्तर प्रदेश से मेले में आती हैं.

‘दी ग्रेट शोभा’ थिएटर के संचालक विनय कुमार सिंह कहते हैं, ”हम भी बेरोज़गार हैं और ये लड़कियां भी. साल में एक बार ये मौक़ा आता है तो पैसे कमाने की कोशिश करते हैं."

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