अंतरिक्ष में इंटरनेट
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आइएसएस) से ट्वीट भेजना या इंटरनेट का इस्तेमाल करना आसान नहीं है. इसके लिए आइएसएस को विशेष इंटरनेट नेटवर्क और कंप्यूटरों के एक जखीरे से समृद्ध बनाया गया है.
वर्ष 2009 में सी-नेट के मार्क हैरिस, जो आइएसएस के आइटी स्टाफ भी हैं, ने जानकारी दी थी कि करीब 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित और तकरीबन करीब 28 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गतिशील इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर इंटरनेट की सुविधा मुहैया कराने के लिए व्यापक इंतजाम किये गये हैं.
जानकारी के मुताबिक आइएसएस पर 68 आइबीएम के थिंक पैड ए-31 लैपटॉप और 32 लेनेवो थिंकपैड टी-61 डिवाइस लगाये गये हैं. सारे लैपटॉप वाइ-फाइ एक्सेस प्वाइंट से जुड़े हैं.आइएएसएस पर मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों के लिए समर्पित आइपी फोन भी हैं और वे अपने परिवार के साथ सीमित वीडियो कांफ्रेंसिंग भी कर सकते हैं.
आइएसएस पर काम करनेवाले इंटरनेट की स्पीड से थ्रीजी इंटरनेट इस्तेमाल करनेवालों को हालांकि निराशा हो सकती है, लेकिन यह उतना खराब भी नहीं है. यहां एस्ट्रोनॉट्स 3 एमबीपीएस से 10 एमबीपीएस स्पीड के इंटरनेट का इस्तेमाल करते हें, जो सामान्य डीएसएल कनेक्शन की स्पीड के बराबर ही है.
वर्ष 2009 के अंत तक आइएसएस पर निजी मेल या इंटरनेट की सुविधा नहीं थी. इस समय तक स्पेस स्टेशन पर मौजूद सदस्यों को दिन में सिर्फ तीन बार इ-मेल अपडेट मुहैया कराया जाता था. यानी हर आठ घंटे में एक बार. इसके लिए केयू-बैंड सैटेलाइट का इस्तेमाल किया जाता था.
लेकिन नासा की वेबसाइट पर मौजूद सूचना के मुताबिक आइएसएस के सॉफ्टवेयर को 2010 में अपग्रेड किया गया, जिसने स्पेस स्टेशन से सीधे इंटरनेट और वर्ल्ड वाइड वेव (डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू) से जुड़ना मुमकिन बना दिया.
इसी के बार एक्सपीडीशन22 के फ्लाइट इंजीनियर ने पहली बार अंतरिक्ष स्टेशन से सीधे ट्वीट किया. इस निजी वेव इस्तेमाल की सुविधा को क्रू सपोर्ट लैन (छअठ) का नाम दिया गया है. इस नयी प्रणाली के लिए मौजूदा संचार लिंक का ही इस्तेमाल किया गया.
दरअसल होता क्या है!
वास्तव में जब स्टेशन सक्रियता से जमीन के साथ केयू बैंड संचार के सहारे संवाद कर रहा होता है, उस वक्त स्टेशन सदस्य ग्राउंड स्टेशन पर मौजूद कंप्यूटर के सहारे इंटरनेट से जुड़े होते हैं. सदस्यों को ऑनबोर्ड लैपटॉप के सहारे जमीन पर मौजूद कंप्यूटर का डेस्कटॉप दिखाई देता है, वे उस डेस्कटॉप पर ही अपने कीबोर्ड टचपैड के सहारे काम करते हैं.
आमतौर पर हम इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आइएसएस) को अपनी रिहाइश बनानेवाले एस्ट्रोनॉट्स (अंतरिक्ष यात्रियों) का नाम भी नहीं जानते. उनसे संवाद करना, उनके हर दिन, हर क्षण की गतिविधि को देख पाना तो हमारी कल्पना से बाहर ही रहा है. लेकिन पिछले छह महीने में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की दुनिया लोगों के घरों में आ गयी.
यह काम किया है माइक्रो सोशल नेटवर्किग साइट ट्विटर और अंतरिक्ष स्टेशन से भेजे गये अपने अनगिनत ट्वीट्स के कारण आज ‘ट्विटर मैन’ के नाम से मशहूर हो चुके क्रिस हैडफील्ड ने. क्रिस हैडफील्ड पहले शख्स नहीं थे, जिन्होंने आइएसएस से ट्विटर संदेश भेजा. यह उपलब्धि तो टीजे क्रीमर के नाम दर्ज है, जिन्होंने वर्ष 2010 में अंतरिक्ष से पहला सीधा ट्विटर संदेश भेजा था.
हालांकि क्रीमर भी अंतरिक्ष से पहली बार ट्विटर संदेश भेजनेवाले व्यक्ति नहीं थे. इससे पहले ट्विटर संदेश पहले जमीन पर स्थित स्टेशन पर इ-मेल किये जाते थे और उसके बाद ग्राउंड स्टेशन से ही उसे ट्वीट किया जाता था. 22 जनवरी, 2010 को क्रीमर द्वारा पहली बार अंतरिक्ष से प्रत्यक्ष संदेश भेजने के बाद से अंतरिक्ष से ट्विटर संदेश भेजने की खबरें आती रही हैं.
लेकिन हैडफील्ड ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से इस कुशलता के साथ और अनवरत रूप से ट्विटर का इस्तेमाल किया, कि वे निस्संदेह अंतरिक्ष अभियानों के इतिहास में आज अपनी अलग पहचान बना चुके हैं और उन्हें आनेवाले समय में ट्विटर मैन के नाम से भले न जाना जाये, ‘ट्विटर एस्ट्रोनॉट’ के तौर पर तो याद किया ही जायेगा.
एक आम आदमी के शब्दों में कहें तो क्रिस हैडफील्ड ने अपने ट्वीट्स से एक तरह के तूफान को जन्म देने का काम किया. उनके ट्वीट्स का धरती पर किस तरह बेसब्री से इंतजार किया जा था और किस तरह से ज्यादा से ज्यादा लोग उनके ट्विटर एकाउंट के फॉलोवर बनते गये, इसका जवाब आंकड़े खुद देते हैं.
पिछले साल 19 दिसंबर को जब वे धरती से अंतरिक्ष की ओर रवाना हुए थे, तब उनके ट्विटर एकाउंट पर 20 हजार अनुसरणकर्ता (फॉलोवर) थे. जब वे 15 मई, 2013 को धरती पर वापस लौटे, तो उनके फॉलोवर्स की संख्या बढ़ कर 8 लाख 24 हजार हो गयी थी. कनाडा के इस एस्ट्रोनॉट के फॉलोवर्स सिर्फ कनाडा, अमेरिकी महाद्वीप या यूरोप से ही नहीं थे, दुनिया के चप्पे-चप्पे में उनके ट्विटर एकाउंट के फॉलोवर हैं.
और हों भी क्यों नहीं आखिर हैडफील्ड पहले व्यक्ति थे, जो उन्हें अब तक रहस्यों के परदे में लिपटी रही आइएसएस की दुनिया की पहली बार सैर जो करा रहे थे. इसके साथ ही हैडफील्ड आइएसएस की निगाह से यानी पृथ्वी से 350 से 400 किलोमीटर ऊपर से धरती को देखने का मौका दे रहे थे.
हैडफील्ड ने अपने करीब छह महीने के आइएसएस प्रवास के दौरान 81 वीडियोज अपलोड किये. कनाडाई स्पेस एजेंसी की साइट पर ये वीडियो काफी लोकप्रिय रहे और साइट पर आनेवाले आगंतुकों की संख्या इन वीडियोज के कारण काफी बढ़ गयी.
कनाडाई स्पेस एजेंसी के मुताबिक पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में हैडफील्ड के आइएसएस प्रवास के दौरान साइट ट्रैफिक (साइट पर आनेवालों की संख्या) करीब 70 फीसदी बढ़ गयी. हैडफील्ड ने केवल ट्विटर का ही नहीं, बल्कि दूसरे सोशल नेटवर्किग साइट्स, यू-ट्यूब टंबलर ब्लॉग का भी धरती पर अपने साथी भाइयों के साथ संवाद करने के लिए इस्तेमाल किया. इस दौरान उन्होंने म्यूजिक एलबम भी बनाये, जो अब अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में यादगार बन गये हैं.
अंतरिक्ष में रिकॉर्ड किया गया पहला गीत ‘ज्वेल इन द नाइट’ 2012 के क्रिस्मस के मौके पर यू-ट्यूब पर जारी किया गया था. एड रॉबर्टसन के साथ मिल कर उन्होंने ‘इज समवन सिंगिंग’ गीत गाया, जो सीबीसी रेडियो प्रोग्राम और सीबीसी म्यूजिक ऑनलाइन पर 8 फरवरी, 2013 को रिलीज किया गया.
12 मई, 2013 को हैडफील्ड ने आइएसएस की कमान छोड़ने के बाद ‘स्पेस ऑडिटी’ नामक गीत के रूपांतरित रूप को रिलीज किया.
हैडफील्ड वापस धरती पर आ गये हैं, लेकिन उन्होंने पहली बार वास्तविक तौर पर धरती और आसमान को अपने ट्विटर संदेशों से जोड़ने का काम किया है.