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अयोध्या का बदला बदला-सा मिजाज
मंदिर व मसजिद की चर्चा की जगह आर्थिक विकास की चाहत 6 दिसंबर, 1992 के बाद से अयोध्या का मिजाज बदला है. लगता है राजनीति और विवादों से लोगों का मन ऊब गया है. 23 बरस पहले जो सरगर्मी थी, अब उसका असर कहीं नहीं दिखता. यही नहीं, पहले हिंदुत्व की जो लहर थी, वह […]
मंदिर व मसजिद की चर्चा की जगह आर्थिक विकास की चाहत
6 दिसंबर, 1992 के बाद से अयोध्या का मिजाज बदला है. लगता है राजनीति और विवादों से लोगों का मन ऊब गया है. 23 बरस पहले जो सरगर्मी थी, अब उसका असर कहीं नहीं दिखता. यही नहीं, पहले हिंदुत्व की जो लहर थी, वह भी नगण्य है. जनता मंदिर व मसजिद की चर्चा की जगह आर्थिक विकास से जुड़ना चाहती है. पढ़िए एक रिपोर्ट.
लखनऊ से राजेंद्र कुमार
भारत की ऐतिहासिक धार्मिक नगरी अयोध्या बीते वर्षों में बहुत बदल गयी है. रामजन्मभूमि परिसर में खड़े होने पर इसका अहसास होता. यह पवित्र स्थल (रामजन्म भूमि परिसर) बीते तेइस बरसों में तो करीब- करीब सैनिक छावनी में ही तब्दील हो गया है.
लोहे के पाइप वाली करीब ग्यारह फुट ऊंची बैरिकेडिंग से घिरे इस परिसर में अब पीएसी और सीआरपीएफ के जवानों के बूटों की धमक, मेटल डिटेक्टर, सीसीटीवी कैमरे और लोहे की जालियों से घिरे कटघरेनुमा छोटे-छोटे बाड़े हर तरफ दिखायी देते हैं.
इतनी सुरक्षा के बीच अयोध्या में रामलला के मंदिर तक पहुंचना किसी शत्रु देश की सीमा के पास से गुजरने जैसा अहसास कराता है. ऐसे माहौल में अब यहां रामलला के दर्शन में श्रद्धा कम, रोमांच और भय ज्यादा है. फिर भी देश और विदेश से यहां रामलला के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं का आना लगातार जारी है.
हालांकि, अब रामलला के दर्शन करने वाले हर व्यक्ति पर सुरक्षाकर्मी की पैनी नजर रहती है. नारियल लेकर रामलला का दर्शन करने जाने पर अब रोक है. पहले ऐसी कोई बंदिश नहीं थी. तब सुबह चार बजे से रात 12 बजे तक कोई भी रामलला के दर्शन कर सकता था, लेकिन अब सिर्फ सुबह और दोपहर में ही दर्शन किये जा सकते हैं. हर दिन करीब दो से ढाई हजार लोग इस व्यवस्था के तहत रामलला का दर्शन करने आते हैं.
इस परिसर में आने पर ही यह अहसास होता है कि अयोध्या में रामलला को सरकार ने वीवीआइपी का दर्जा दे रखा है. रामलला की सुरक्षा में शैडो यानी नौ बाडी गार्ड तैनात किये गये हैं, जो चौबीस घंटे तीन -तीन की टीम बनाकर उनके आस पास रहते हैं. यही नहीं राम जन्मभूमि के अधिग्रहीत करीब 67 एकड़ के परिसर के अंदर की सुरक्षा के लिए 12 कंपनी पीएसी, दो कंपनी सीआरपीएफ , चार कंपनी आरएएफ, एक कंपनी महिला आरएएफ, 55 कमांडो, 32 लोगों की इंटेलिजेंस टीम, दो डॉग स्क्वायड, बम डिस्पोजल दस्ता, फायर ब्रिगेड की दो टीमें अंदर हमेशा मुस्तैद रहती हैं.
परिसर की सुरक्षा को अधिक सुदृढ़ करने के लिए इस परिसर के बाहर यलो जोन में तीन मजिस्ट्रेट के साथ पांच बड़े प्रशासनिक अधिकारी, यूपी पुलिस के 350 दारोगा (उपनिरीक्षक ), दो कंपनी पीएसी और 400 सिपाही भी तैनात किये गये हैं. कुल मिलाकर करीब 4,000 सुरक्षाकर्मी अयोध्या में रामलला की सुरक्षा के नाम पर हर समय मौजूद रहते हैं. रामलला के दर्शन के लिए अयोध्या पहुंचे श्रद्धालु की सबसे पहले बड़ा स्थान मंदिर के पास की पहले बैरिकेड पर तलाशी ली जाती है.
फिर लव-कुश मंदिर के पास बने प्रवेशद्वार के चेकपोस्ट पर मेटल-डिटेक्टर से गुजरना होता है. यहां मौजूद सिपाही चमड़े का सामान, मोबाइल फोन आदि रखवा लेते हैं. इसके उपरांत ही लोहे की पाइप वाली बैरिकेडिंग से घिरे रास्ते से गुजरते हुए रामलला के दर्शन कराये जाते हैं. रामलला के मंदिर तक किसी भी श्रद्धालु को जाने नहीं दिया जाता. दूर से सिर्फ रामलला की मूर्ति देखने के लिए कुछ क्षण रुकने का मौका ही उनके भक्त को मिलता है.
किसी भी श्रद्धालु को सीता रसोई, मानस भवन और रामखजाना मंदिर भी जाने नहीं दिया जाता, क्योंकि इन मंदिरों को सरकार ने अधिग्रहीत कर रखा है और वहां सिर्फ पुजारी को जाने की अनुमति है. 23 बरस पहले ऐसा कुछ नहीं था.
भगवान राम की करीब नब्बे हजार आबादी वाली इस ऐतिहासिक अयोध्या के सुरक्षा प्रबंधों और सुरक्षाकर्मियों की इतनी मौजूदगी ने यहां का सामाजिक चरित्र भी बदला है. उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों की तरह अयोध्या और फैजाबाद में विकास की चमक दमक दिखायी नहीं देती. हालांकि,अयोध्या में आर्थिक प्रगति हुई है. अयोध्या -फैजाबाद के मार्ग पर सड़क किनारे ऊंची-ऊंची इमारतें बन गयी हैं. तमाम मंदिरों में पुजारियों के कमरे एसी हो गये हैं. बाज़ार का कारोबार भी बढ़ा है और शहर में वाहनों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.
नगर निगम भी अन्य शहरों से आने वाले वाहनों से टैक्स वसूलने में लगे हैं. फिर भी इस विकास को फैजाबाद के वरिष्ठ पत्रकार त्रियुग नारायण तिवारी अधूरा मानते हैं. वे कहते हैं-अयोध्या बाबा, वानर और विद्यार्थी की नगरी थी, परंतु 6 दिसंबर 1992 में हुए बाबरी विध्वंस के बाद यहां रामलला की सुरक्षा के नाम पर जो माहौल बना है, उसमें बड़े उद्योग को लगाने में कोई भी इच्छुक नहीं होता.
इस बात से रामलला के भोग का प्रबंध करने वाले सीताराम यादव भी सहमत हैं. वह कहते हैं कि 6 दिसंबर 1992 से पहले अयोध्या और फैजाबाद का माहौल ही कुछ और था. तब अयोध्या में देर रात तक रामलला के दर्शन होते थे.
मानस भवन, सीता रसोई, रामखजाना, ठाकुर जी के मंदिरों में भी खूब रौनक रहती थी. 23 बरस पहले जो सरगर्मी थी, अब उसका असर कहीं नहीं दिखता. यही नहीं पहले हिंदुत्व की जो लहर दिखती थी, वह भी नगण्य है. अब यहां के लोग मंदिर-मसजिद की चर्चा की जगह आर्थिक विकास चाहते हैं . हां, अब अयोध्या में रामलला के जर्जर हो चुके पंडाल को बदलने की जो कवायद हो रही है, उस पर शहर के लोग जरूर चर्चा करते दिखते हैं.
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