।। विनय तिवारी ।।
– विश्व में होनेवाले कुल शोध में भारत की हिस्सेदारी महज 3.5 फीसदी
चुनावी मौसम में तमाम मुद्दे फिजां में तैर रहे हैं. नरेंद्र मोदी सरकार के शिक्षा और शोध पर बजट पर लगातार सवाल उठा रहे हैं. इस बीच, भारत रत्न के लिए नामित वैज्ञानिक प्रो सीएनआर राव ने विज्ञान को कम रकम अवंटन के लिए नेताओं को कठघरे में खड़ा किया, तो भूचाल मच गया है.
नयी दिल्ली : भारत रत्न के लिए चुने गये प्रोफेसर चिंतामणि नागेसा रामचंद्र राव (सीएनआर राव) ने विज्ञान के क्षेत्र में जरूरतों के मुताबिक आर्थिक सहायता नहीं मिलने को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की है. प्रधानमंत्री की वैज्ञानिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष राव ने कहा कि चीन इस मामले में काफी आगे निकल चुका है.
रिसर्च के लिए और अधिक संसाधन की जरूरत पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय कठिन परिश्रम नहीं करते. हम चीनवालों की तरह नहीं हैं. हम बहुत आरामपसंद हैं. उतने राष्ट्रवादी नहीं हैं.
अगर हमें थोड़ा ज्यादा पैसा मिल जाता है, तो विदेश जाने को तैयार हो जाते हैं. सीएनआर राव सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित होनेवाले चौथे वैज्ञानिक हैं. दुनिया के 60 विश्वविद्यालयों से मानद डॉक्टरेट उपाधि पानेवाले राव की केमिस्ट्री में काबिलियत को दुनिया मानती है. राव की बातों में दम है.
भारत के शोध के मामले में पिछड़ते जाने पर पूर्व में भी वैज्ञानिक और शिक्षाविद् सवाल उठा चुके हैं. आंकड़ों पर गौर करने से साफ जाहिर होता है कि शोध के मामले में चीन हमसे कहीं आगे निकल चुका है. देश में शोध के हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश का प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थान आइआइटी में एक फीसदी से कम छात्र शोध को प्राथमिकता देते हैं.
वैज्ञानिक राव के बयान ने नीति–निर्माताओं को इस पर सोचने को विवश किया है. विश्व शोध में भारत की हिस्सेदारी 3.5 फीसदी है. वर्ष 2010 में जारी थॉमसन रायटर की रिपोर्ट के मुताबिक, कंप्यूटर साइंस में भारत काफी आगे माना जाता है, लेकिन शोध के मामले में हालात काफी खराब हैं. यहां हम चीन ही नहीं, कोरिया और ताइवान से भी पीछे हैं.
रिसर्च की मौजूदा स्थिति
भारत सरकार रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर जीडीपी का एक फीसदी से भी कम खर्च करती है. वर्ष 2000-01 में इसके लिए सरकार ने 16200 करोड़ रुपये का आवंटन किया था, जो बढ़ कर लगभग 40 हजार करोड़ रुपये हो गया है. लेकिन जिस प्रकार अर्थव्यवस्था का विस्तार हुआ है, उस लिहाज से यह जीडीपी का 0.9 फीसदी होता है. वहीं चीन जहां रिसर्च पर 2000 में जीडीपी का 0.9 फीसदी खर्च करता था, वह 2006 में ही बढ़ कर 1.4 फीसदी हो गया. भारत में शोध के लिए अधिकांश पैसा सरकार देती है. जबकि रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर होनेवाले खर्च के मुकाबले सरकारी मदद में कमी आयी है. वर्ष 1990-2001 में जहां यह 80 फीसदी था, वह 2007-08 में 66 फीसदी हो गया. इसी दौरान उद्योग घरानों से शोध में होनेवाला निवेश 14 फीसदी से 30 फीसदी हो गया. यह निवेश फार्मा और ऑटोमोबाइल क्षेत्र में अधिक हुआ है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के मुताबिक, रिसर्च में विदेशी निवेश 2004-05 में 221 मिलियन डॉलर से बढ़ कर 2010-11 में 878 मिलियन डॉलर का हो गया.
हमसे काफी आगे है चीन
विषय शोध में हिस्सा
क्लिनिकल मेडिसिन 1.9% 17%
सायकेट्री 0.5% ..
न्यूरोसाइंस 1.4% ..
इम्यूनोलॉजी 1.8% ..
मौलीक्यूलर बॉयोलॉजी 2.1% ..
इनवायरमेंटल रिसर्च 3.5% ..
मैथेमेटिक्स 2% 17%
मेटेरियल साइंस 6.4% 26%
फिजिक्स 4.6% 19%
कंप्यूटर साइंस 2.4% 15%