दक्षा वैदकर
बात उस जमाने की है, जब अंगरेज लोगों ने तकरीबन 2000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर 100 किमी लंबी कालका से शिमला तक रेलवे लाइन बिछाने का काम शुरू किया था. जब कई महीनों तक अंगरेज इस रेल लाइन का रूट बनाने में असफल रहे, तो उन्हें किसी ने समझाया कि यहां एक भलकू नाम का लड़का भेड़-बकरियां चराया करता है. यदि आप उसकी मदद लें, तो आपका यह रुका हुआ काम पूरा हो सकता है. इस पर एक अंगरेज अफसर ने पूछा कि भलकू ने कितनी पढ़ाई की है, जो हमारे काबिल कारीगरों को वो यह काम सिखा सकता है? अंगरेज अफसर से उस व्यक्ति ने कहा कि पढ़ाई तो बहुत दूर, भलकू ने कभी स्कूल का दरवाजा तक नहीं देखा. लेकिन, उसके पास इस सारे इलाके का बहुत अनुभव है, जिससे आपकी हर परेशानी खत्म हो सकती है.
कई दौर की बातचीत के बाद सभी अंगरेज अफसरों ने मिल कर फैसला किया कि इस रेलवे लाइन को ठीक उसी तरह बनाया जाये, जैसे भलकू राह दिखाता है. काम शुरू होने के कुछ ही दिनों बाद भलकू को इस परियोजना का सलाहकार नियुक्त कर दिया गया. इसके बाद जैसे-जैसे भलकू ने अंगरेजों को राह के बारे में खुलासे किये, उसी राह पर चलते हुए पहाड़ों के बीचों-बीच 100 से अधिक सुरंगें बना कर इस योजना को पूरा किया जा सका. भलकू के अनुभव की बदौलत इस परियोजना के पूरा होने पर इस इलाके के लोगों ने अनपढ़ और गंवार से दिखनेवाले भलकू को ‘महाराज’ और ‘भलकू बाबा’ की उपाधियों से नवाजना शुरू कर दिया.
एक किताब में मैंने यह कहानी पढ़ी, जो सीख देती है कि पढ़ाई-लिखाई को ही सब कुछ नहीं समझना चाहिए. हम अपने विचारों और जीवन में होनेवाली घटनाओं को भी अनुभव के आधार पर बदल सकते हैं. अगर आप किन्हीं कारणों से पढ़-लिख नहीं पाये हैं, तो दुखी न हों.
दुनिया में आपको ऐसे लाखों लोग मिल जायेंगे, जिन्होंने दुनिया की परवाह करे बगैर, स्वयं के अपने अनुभव पर भरोसा किया और आज ऊंचे मुकाम पर हैं.
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in
बात पते की..
अनुभव इस दुनिया का सबसे अच्छा शिक्षक है. बस शर्त इतनी है कि जब तक जीना है, तुम्हारे अंदर अनुभव पाने की लालसा खत्म नहीं हो.
किसी चीज को समझने के लिए ज्ञान की जरूरत होती है. लेकिन, उसे महसूस करने के लिए अनुभव की आवश्यकता होती है.
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