।। डॉ जगदीश गांधी ।।
अपने जीवन को आध्यात्मिक प्रकाश से प्रकाशित करने का पर्व है दीपावली. दीपावली परिवार, समाज, देश एवं विश्व में शांति एवं एकता का त्योहार है. दीपावली में मिट्टी के दीयों को जलाने की परंपरा रही है. हमारा यह शरीर भी मिट्टी के दीये का ही प्रतीक है.इस शरीर रूपी मिट्टी के दीये में परमात्मा की दी हुई लौ (आत्मा) बाती के रूप में जल रही है.
हमारा मानना है कि जिस प्रकार एक जलता हुआ दीया अनेक बुझे हुए दीयों को प्रज्वलित कर सकता है ठीक उसी प्रकार ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित किसी भी मनुष्य की आत्मा दूसरी आत्माओं को भी आध्यात्मिक प्रकाश से प्रज्वलित कर एक सभ्य एवं समृद्ध समाज का निर्माण कर सकती है.
इस प्रकार दीपावली तो सारे समाज में व्याप्त ईष्र्या, विद्वेष, अशांति, आपसी मनमुटाव व अनेकता जैसे अंधकार को आध्यात्मिक प्रकाश से समाप्त करते हुए सारे समाज में भाईचारे, शांति, प्रेम व एकता की स्थापना करने का पावन पर्व है न कि पटाखों एवं जहरीले धुओं से पर्यावरण व समाज को प्रदूषित करने का.
ज्ञान, विवेक एवं मित्रता की लौ जलाने का पर्व है दीपावली: दक्षिण में दीवाली उत्सव के संबंध में एक और कथा प्रचलित है.
हिंदू पुराणों के अनुसार राजा बली एक दयालु दैत्यराज था. वह इतना शक्तिशाली था कि वह स्वर्ग के देवताओं व उनके राज्य के लिए खतरा बन गया. बली की ताकत को खत्म करने के लिए ही भगवान विष्णु एक बौने भिक्षुक ब्राह्मण के रूप में चतुराई से राजा बली से तीन पग के बराबर भूमि मांगी.
राजा बली ने खुशी के साथ यह दान दे दिया. राजा बली को कपट से फंसाने के बाद जब भगवान विष्णु ने स्वयं को प्रभु के स्वरूप में पूर्ण वैभव के साथ प्रकट करते हुए अपने पहले पग (पैर) से ‘स्वर्ग’ व दूसरे पग से ‘पृथ्वी’ को नाप लिया तब राजा बली को वास्तविकता का ज्ञान हुआ और उन्होंने आत्म समर्पण करते हुए अपना शीश अर्पित करते हुए भगवान विष्णु को अपना तीसरा पग उस पर रखने के लिए आमंत्रित किया.
भगवान विष्णु ने अपने अगले पग से उसे अधोलोक में धकेल दिया लेकिन इसके बदले में भगवान विष्णु ने राजा बली को समाज से अंधकार को दूर करने के लिए उसे ज्ञान का दीपक प्रदान किया. उन्होंने उसे यह आशीर्वाद भी दिया कि वह वर्ष में एक बार अपनी जनता के पास अपने एक दीपक से लाखों दीपक जलाने के लिए आयेगा ताकि दीपावली की अंधेरी रात से अज्ञान, लोभ, ईष्र्या, कामना, क्रोध, अहंकार और आलस्य के अंधकार को दूर करते हुए सभी में ज्ञान, विवेक और मित्रता की लौ जलायी जा सके.