जो गरुड़ पर आरूढ़ होती हैं, उग्र कोप और रौद्रता से युक्त रहती हैं तथा चंद्रघण्टा नाम से प्रसिद्ध हैं,वे दुर्गा देवी मेरे लिए कृपा का विस्तार करें.
सर्व मंगलमयी मां
सर्व मंगलमयी मां के स्वरूप के संबंध में जनमेजय ने व्यासजी से पूछा था—सा का. कथं समूत्पन्ना. कुत्र कस्माच्च किंगुणा. व्यासजी ने उन्हें इस संबंध में वही उत्तर दिया था, जो उन्हें नारदजी ने बताया था. ब्रह्माजी ने स्वयं नारदजी को यह देवीतत्व बताया था.
ब्रह्माजी ने नारद मुनी से कहा था कि जब प्रलयकाल में जलराशि मात्र शेष थी और कुछ नहीं बचा था, उस समय मुझे अपने कारण की जिज्ञासा हुई और मैं सहस्रवर्ष पर्यंत कमलनाल से उतर कर पृथ्वी (आधार) नहीं प्राप्त कर सका था, तपस्तप की आकाशवाणी से तप करने का आदेश पाकर उसी पद्म में एक सहस्र वर्ष तक तप करता रहा. पुनः सृज का आदेश मिलने पर निरूपाय होकर चिंतित था, तभी मधु-कैटभ दैत्यों ने मुझे युद्ध के लिए ललकारा.
यहां जल में उतरते-उतरते मुझे शेषशायी भगवान महाविष्णु के दर्शन हो गये. महाविष्णु योगनिद्रा में शयन कर रहे थे. ब्रह्माजी ने निद्रास्वरूपिणी देवी की स्तुति की. निद्रामुक्त भगवान विष्णु ने पांच हजार वर्षों तक युद्ध करने के पश्चात मंगलमयी मां की कृपा से मधु-कैटभ दैत्यों का वध कर डाला. वहीं भगवान शिव भी आ गये. वहीं इन महाविष्णु योगनिद्रा में शयन कर रहे थे. ब्रह्माजी ने निद्रास्वरूपिणी देवी की स्तुति की. निद्रामुक्त भगवान विष्णु ने पांच हजार वर्षों तक युद्ध करने के पश्चात मंगलमयी मां की कृपा से मधु-कैटभ दैत्यों का वध कर डाला. वहीं भगवान शिव भी आ गये. वहीं इन ब्रह्मा, विष्णु, शिव-त्रिदेवों को देवी ने दर्शन देकर सृष्टि, स्थिति तथा संहार के कार्यों को सावधानी पूर्वक करने का निर्देश दिया. साधनहीन ब्रह्मा ने किंकर्तव्यविमूढ़ होकर पुनः देवी से कहा कि हम तो अशक्त हैं, सब ओर जलमयी हैं, पृथ्वी दिखायी नहीं देती, तब सृष्टि कैसे करें. ब्रह्माजी ने सृष्टि-साधनों की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की.
अब्र म तामशक्ताः स्मः कथं कुमंस्त्विमाः प्रजाः।
न मही वितता मातः सर्वत्र विततं जलम् ।।
न भूतानि गृणाश्चापि तन्मात्राणीन्द्रियाणि च ।
तदाकर्ण्य वचोअस्माकं शिवा जाता स्मितानना ।।
अभी पंच महाभूत, गुण, तन्मात्राएं और इंद्रियां भी नहीं हैं. यह सुनकर भगवती शिवा मुस्कराने लगी. तभी आकाश से एक सुंदर विमान वहां आ गया और देवी ने आदेश दिया -हे देवताओं, तुम इस विमान पर चढ़ जाओ.
(क्रमशः) प्रस्तुति : डॉ एनके बेरा