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डीवीबी-टी2 तकनीक से इंटरनेट के बिना ही मोबाइल पर देख सकेंगे टीवी
पिछले करीब एक दशक में टेलीविजन की यात्रा में कई बदलाव आये हैं. लेकिन अब स्मार्टफोन की बढ़ती लोकप्रियता के चलते लोगों में टेलीविजन के प्रति रुझान कुछ कम हो रहा है. ऐसे में टीवी को स्मार्टफोन पर मुहैया कराये जाने की कवायद तेज हो गयी है. निकट भविष्य में लोग इंटरनेट कनेक्शन के बिना […]
पिछले करीब एक दशक में टेलीविजन की यात्रा में कई बदलाव आये हैं. लेकिन अब स्मार्टफोन की बढ़ती लोकप्रियता के चलते लोगों में टेलीविजन के प्रति रुझान कुछ कम हो रहा है. ऐसे में टीवी को स्मार्टफोन पर मुहैया कराये जाने की कवायद तेज हो गयी है. निकट भविष्य में लोग इंटरनेट कनेक्शन के बिना भी अपने स्मार्टफोन पर टीवी चैनलों का प्रसारण देख पायेंगे. कैसे होगा यह मुमकिन, किस तकनीक का होगा इसमें इस्तेमाल आदि समेत टीवी प्रसारण की तकनीकों के बारे में बता रहा है आज का नॉलेज.
प्रसन्न प्रांजल
लगभग एक सदी पहले टेलीविजन के आविष्कार ने इंसान को एक नयी दुनिया से परिचित कराया. 1924 में ब्रिटेन के जॉन लेगी बेयर्ड द्वारा टीवी के आविष्कार के बाद से इसमें कई बदलाव आते गये. 20वीं सदी में शुरू हुआ यह ब्लैक एंड व्हाइट बुद्धू बक्शा 21वीं सदी में एलसीडी, एलइडी तक रंग-बिरंगी हाइ डेफिनिशन में पहुंच गया. शुरु में विशेष वर्ग तक सीमित रहनेवाले टेलीविजन की पहुंच आज जन-जन तक है. संचार क्रांति और विकास के साथ इसका दायरा बढ़ता गया.
आज दुनियाभर में एक अरब से ज्यादा लोगों के जीवन का यह अभिन्न हिस्सा बना चुका है. नयी तकनीकों ने टेलीविजन के प्रसारण को बेहतर बनाने में अमूल्य योगदान दिया है. एनालॉग तकनीक के माध्यम से ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर दिखानेवाला यह टीवी आज डीवीबी-टी2 तकनीक के जरिये हाइ डेफिनिशन डिजिटल वीडियो से लोगों का मनोरंजन कर रहा है. भारत में मोबाइल पर बगैर इंटरनेट के टीवी की सुविधा इसी तकनीक से के माध्यम से मुहैया करायी जायेगी. यानी मोबाइल उपभोक्ता बगैर किसी इंटरनेट कनेक्शन के अपने स्मार्टफोन पर टेलीविजन देख पायेंगे. जल्द ही इसके शुरू होने की संभावना जतायी जा रही है.
कैसे होगा यह संभव
स्मार्टफोन उपभोक्ता को बगैर इंटरनेट कनेक्टिविटी के 20 चैनल देखने की सुविधा मिलेगी. इसमें पांच चैनल दूरदर्शन के हो सकते हैं, जबकि 15 अन्य चैनलों को नीलामी के जरिये शामिल किया जा सकता है.
मोबाइल पर यह सुविधा देने के लिए दूरदर्शन डिजिटल वीडियो ब्रॉडकास्टिंग थ्रू टेरेस्ट्रियल सेकेंड (2) जेनरेशन (डीवीबी-टी2) तकनीक का इस्तेमाल करेगा. डोंगल की मदद से उपभोक्ता अपने स्मार्टफोन में इस सुविधा का लाभ उठा सकेंगे. डीवीबी-टी2 तकनीक पर आधारित ‘डीजी दर्शन’ नामक डोंगल को स्मार्टफोन में लगाने पर यह सर्विस आइफोन और एंड्रॉयड मोबाइल पर काम करने लगेगा. कुछ मोबाइल कंपनियां अपने नये प्रोडक्ट भी लॉन्च करनेवाली हैं, जिसमें डीवीबी-टी2 तकनीक इनबिल्ट होगा. ऐसा होने पर गूगल प्ले से ‘टीवी ऑन गो दूरदर्शन’ एप डाउनलोड करने पर स्मार्टफोन में मोबाइल टीवी का आनंद उठाया जा सकेगा.
फिलहाल इस सुविधा का प्रसारण सिर्फ आइफोन व एंड्रॉयड फोन पर करने की बात है. एडवांस्ड तकनीक डीवीबी-टी2 के इस्तेमाल की वजह से 180 किलोमीटर की स्पीड से यात्रा के दौरान भी मोबाइल में टीवी देखा जा सकेगा.
16 शहरों से होगी शुरुआत
शुरु आत में देश के 16 शहरों में मोबाइल पर बगैर इंटरनेट के टीवी की सुविधा शुरू की जायेगी. ये 16 शहर हैं: दिल्ली, लखनऊ, पटना, रामपुर, मुंबई, चेन्नई, अहमदाबाद, कोलकाता, बेंगलुरु, भोपाल, रांची, इंदौर, गुवाहाटी, कटक, जालंधर और हैदराबाद.
टीवी प्रसारण तकनीक
दुनिया के अधिकांश देशों में टीवी प्रसारण के लिए अब ज्यादा फोकस डीवीबीटी और डीवीबी-टी2 तकनीक पर दिया जा रहा है.
अमेरिका, इंगलैंड, चीन, जापान, भारत, फ्रांस, खाड़ी देशों के साथ दुनिया के अन्य देशों में टीवी प्रसारण में डीवीबी-टी व डीवीबी-टी 2 के अलावा आइपीटीवी, डीटीएच, सेटेलाइट और केबल टीवी का इस्तेमाल हो रहा है. कई दशकों तक टीवी प्रसारण को सुलभ बनानेवाली एनालॉग तकनीक अब धीरे-धीरे खत्म हो रही है. एनालॉग से कई गुना बेहतर क्वालिटी आ जाने की वजह से अब 2020 तक इसे समाप्त करने के कयास लगाये जा रहे हैं.
डीवीबी-टी2
डीवीबी-टी 2 दुनिया का सबसे एडवांस्ड डिजिटल टेरेिस्ट्रयल टेलीविजन सिस्टम है. इसका पूरा नाम डिजिटल वीडियो ब्रॉडकास्टिंग थ्रू टेरेिस्ट्रयल सेकेंड (2) जेनरेशन है. यह डीवीबी-टी का अपग्रेड वर्जन है.
डीवीबी ने मार्च, 2006 में डीवीबी-टी को अपग्रेड करने के लिए काम शुरू किया और अप्रैल, 2007 में डीवीबी-टी2 बना कर तैयार किया. आज के समय में यह तकनीक तेजी से विश्वभर में अपनायी जा रही है. डीवीबी-टी2 डिजिटल टेरेिस्ट्रयल टेलीविजन (डीटीटी) सिस्टम को मजबूती और लचीलापन प्रदान करता है. साथ ही किसी अन्य डीटीटी सिस्टम की तुलना में इसकी कार्यक्षमता 50 तक फीसदी ज्यादा है. यह स्टैंडर्ड डेफिनिशन (एसडी), हाइ डेफिनिशन (एचडी), यूएचडी, मोबाइल टीवी और इनमें से किसी के कॉम्बिनेशन से बने अन्य सिस्टम को बेहतर तरीके से सपोर्ट करता है. लैपटॉप, कंप्यूटर, कार रिसिवर, स्मार्टफोन, डोंगल और अन्य सभी इनोवेटिव रिसिविंग डिवाइस के लिए भी इसे तैयार किया गया है.
कैसे करता है काम
डीवीबी-टी2 में ओएफडीएम (ऑर्थोगोनल फ्रीक्वेंसी डिवीजन मल्टीप्लेक्स) मॉड्यूलेशन और एलपीडीसी व बीसीएच कोडिंग से तैयार नयी तकनीक रोटेडेट कॉन्स्टेलेशन्स का इस्तेमाल किया गया है. डीवीबीटी 2 सिस्टम डिजिटल ऑडियो, वीडियो और अन्य डाटा को सबसे एडवांस मॉड्यूलेशन ओएफडीएम मॉड्यूलेशन के माध्यम से फिजिकल लेयर पाइप (पीएलपी) में ट्रांसमिट करता है. फिर सैटेलाइट या लोकल टीवी सिगनल्स को डिजिटल फॉरमेट में बदलता है.
डीवीबी-टी2 सिस्टम में 256 क्यूएएम मॉड्यूलेशन के इस्तेमाल पर आठ मेगाहर्ट्ज चैनल में 40.2 एमपीबीएस तक दे सकता है, जिससे सिंगल आठ मेगाहर्ट्ज चैनल में 5-6 एचडी प्रोग्राम या 15-20 टीवी प्रोग्राम आसानी से प्रसारित किया जा सकता है. सामान्य शब्दों में इसे ऐसे समझा जा सकता है कि इस तकनीक के इस्तेमाल के लिए मोबाइल या टीवी या अन्य डिवाइस में इस तकनीक को फिट किया जाता है. यह तकनीक टीवी टावर से ट्रांसमिट सिगनल को डिवाइस से कनेक्ट करता है और संबंधित डिवाइस पर टीवी प्रोग्राम को प्रसारित करने का काम करता है.
क्या है खासियत
डीवीबी-टी2 में मॉड्यूल्स, कोडिंग समेत कई नयी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है. ये सभी नयी तकनीक इसे बेहद खास बनाने का काम कर रहे हैं और डिजिटल ब्रॉडकास्टिंग की राह को आसान बना रहे हैं.
यह सिगनल को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ पिक्चर क्वालिटी को भी बेहतर बनाता है. एसडी, एचडी, यूएचडी और मोबाइल टीवी सभी में यह बेहतर तरीके से काम कर सकता है. हाइ स्ट्रेंथ सिगनल पावर की वजह से इस तकनीक से मोबाइल में बगैर इंटरनेट के ही टीवी देखा जा सकता है.
150 देशों में चल रहा काम
डीवीबी की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक 150 देशों में डीवीबी-टी2 अपनाने को लेकर तेजी से काम चल रहा है. कुछ देशों में इसका इस्तेमाल शुरू किया जा चुका है, तो कई देशों में ट्रायल प्रक्रिया जारी है.
अमेरिका और ब्रिटेन समेत यूरोप, एशिया व अफ्रीका के कई देशों में इसका प्रसारण शुरू हो चुका है. वर्ष 2014 में अफगानिस्तान यूके, इटली, फिनलैंड, स्वीडन, थाइलैंड, सर्बिया, यूक्रेन, क्रोेएशिया, डेनमार्क और कई अन्य देशों में मल्टीप्लेक्स, एसडी चैनल, एचडी चैनल टेलीविजन में इसका प्रसारण किया गया. भारत में भी इस क्षेत्र में काफी तेजी से काम चल रहा है.
डीवीबीटी
डिजिटल वीडियो ब्रॉडकास्टिंग टेरेस्ट्रियल परंपरागत एनालॉग तकनीक से काफी प्रभावी और लचीला साबित हुआ. डिजिटल टेरेस्ट्रियल टेलीविजन सिस्टम में ब्रॉडकास्ट ट्रांसमिशन के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. पहली बार इसका निर्माण 1997 में हुआ, जबकि यूनाइटेड किंगडम में वर्ष 1998 में पहली बार इस तकनीक के जरिये टेलीविजन प्रसारण किया गया. यह तकनीक कोडेड ऑर्थोगोनल फ्रिक्वेंसी-डिविजन मल्टीप्लेक्सिंग (सीओएफडीएम) मॉड्यूलेशन के जरिये कम्प्रेस्ड डिजिटल ऑडियो, डिजिटल वीडियो व अन्य डाटा को एमपीइजी ट्रांसपोर्ट स्ट्रीम में ट्रांसमिट करता है. यूनाइटेड किंगडम में इसका सफल प्रसारण होने के बाद अमेरिका, यूरोप, एशिया, अफ्रीका में डीवीबीटी तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है. भारत में 26 जनवरी, 2003 सेे डीवीबीटी को शुरू किया गया. टीवी के डिजिटाइजेशन में इस तकनीक ने अहम योगदान दिया है.
डीटीएच
डायरेक्ट टू होम (डीटीएच) ने टीवी दर्शकों को केबल ऑपरेटरों पर निर्भरता को खत्म करते हुए एक अलग व नयी राह दिखाने का काम किया. इस तकनीक में उपभोक्ता को अपने घर पर एक डिश एंटिना और सेट टॉप बॉक्स लगाना होता है. इस तकनीक में कई चैनलों को एक साथ विशेष कोड देकर कम्प्रेस्ड किया जाता है और इसे हाइ एफिशिएंसी सेटेलाइट से भेजा जाता है. उपभोक्ता के घर पर लगा डिश एंटिना सेटेलाइट टीवी सिगनल को रिसिव करता है और सेट टॉप बॉक्स के माध्यम से टीवी पर प्रसारण को सुलभ करता है. इसमें उपभोक्ता सीधे प्रसारणकर्ता से जुड़ा होता है. प्रसारण का यह डिजिटल तकनीक परंपरागत एनालॉग तकनीक से बेहतर है, जिस कारण पिक्चर और साउंड क्वालिटी बेहतर है.
दुनिया में सबसे पहले डीटीएच सेवा की शुरुआत सोवियत संघ (रूस) में 1976 में की गयी थी. भारत में वर्ष 2000 से डीटीएच का प्रसारण शुरू हुआ है. भारत सरकार ने दिसबंर, 2004 से फ्री डीटीएच को आरंभ किया. हालांकि, अब इसे डीडी फ्री डिश के नाम से जाना जाता है. डीटीएच की सबसे बड़ी खासियत है कि यह महानगरों के साथ सुदूर गांवों तक आसानी से काम करता है. इसकी वीडियो व ऑडियो क्वालिटी बेहतर होती है. लेकिन मौसम खराब होने, बारिश होने या बादल छाये रहने पर सिगनल सही से काम नहीं करता. इस वजह से अक्सर खराब मौसम में प्रसारण बाधित हो जाता है. इस सेवा में उपभोक्ता अपनी सुविधा के अनुसार चैनलों का चयन कर सकता है और उन्हें सिर्फ सेलेक्टेड चैनलों लिए शुल्क अदा करना होता है.
केबल टीवी
टेलीविजन प्रसारण में केबल नेटवर्क की अहम भूमिका है. पहली बार केबल टीवी की शुरुआत अमेरिका में हुई थी. पिछले दशक तक सबसे अधिक उपभोक्ता इसी तकनीक से टीवी देखते थे. इस तकनीक में केबल सर्विस की सहायता से टीवी प्रोग्राम प्रसारित किया जाता है. केबल ऑपरेटर डिश एंटिना की सहायता से सेटेलाइट प्रोग्राम को रिसिव करते हैं. केबल में सिगनल डालने के लिए हेड एंड पर सिगनल को बड़ी डिश एंटिना की मदद से जोड़ा जाता है और परिवर्धित, डी कोड व मिश्रित किया जाता है. इसके बाद केबल (तार) के माध्यम से घरों तक टीवी प्रोग्राम को पहुंचाया जाता है.
एनालॉग टेक्नोलॉजी
टीवी प्रसारण की सबसे पुरानी तकनीक है एनालॉग टेक्नोलॉजी. इसे ऑरिजनल टेलीविजन टेक्नोलॉजी भी कहा जाता है. एनालॉग सिगनल वीडियो और ऑडियो ट्रांसमिट करने का काम करता है. एनालॉग टेलीविजन प्रसारण में तेजी से बदलते एम्प्लीट्यूड, फ्रिक्वेंसी और सिगनल की वजह से ब्राइटनेस, कलर और साउंड प्रभावित होता है.
टेलीविजन प्रसारण के शुरु आती दिनों में इसी तकनीक से प्रसारण किया जाता था, लेकिन इसकी कमजोर सिगनल क्षमता और खराब पिक्चर क्वालिटी की वजह से नयी तकनीक के आगमन के साथ धीरे-धीरे इसका इस्तेमाल कम होता चला गया.
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