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कब-कैसे होगा रोजगार का इंतजाम
बिहार विधानसभा चुनाव का एलान हो चुका है. इसके बाद राजनीतिक सरगरमी भी तेज हो गयी है. एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाये जा रहे हैं और मतदाताओं को आश्वासनों की घुट्टी पिलायी जा रही है. ऐसे माहौल में प्रभात खबर ने उन मुद्दों के जरिये विधानसभा चुनाव में हस्तक्षेप की पहल की है, जिनसे बिहार लंबे […]
बिहार विधानसभा चुनाव का एलान हो चुका है. इसके बाद राजनीतिक सरगरमी भी तेज हो गयी है. एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाये जा रहे हैं और मतदाताओं को आश्वासनों की घुट्टी पिलायी जा रही है.
ऐसे माहौल में प्रभात खबर ने उन मुद्दों के जरिये विधानसभा चुनाव में हस्तक्षेप की पहल की है, जिनसे बिहार लंबे समय से जूझता रहा है.
हमारी कोशिश है कि चुनाव की गहमाहमी के बीच ऐसे मुद्दों के बीच सार्वजनिक तौर पर बहस हो, आम लोग राजनीतिक दलों से सवाल-जवाब करें और उनसे उनकी कार्य योजना पूछें. इसकी पहली कड़ी में आज बेरोजगारी का मुद्दा. बिहार में बेरोजगारी की दर राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है. बिहार में युवा वोटरों की संख्या 3.79 करोड़ है. आखिर इतनी बड़ी आबादी को रोजगार उपलब्ध कराने का सवाल तो पूछा ही जाना चाहिए.
रजनीश उपाध्याय
अमूमन हर चुनाव के दौरान बेरोजगारी एक मुद्दे के रूप में उछलता है और युवाओं को रोजगार दिलाने के आश्वासन की घुट्टी पिलायी जाती है. सत्ता में रहनेवाला दल उन्हें समझाता है कि रोजगार के कितने अवसर सृजित हुए और अगली बार किस तरह बेरोजगारी दूर करने के लिए वे प्रयास करेंगे.
दूसरी तरफ, विरोधी दल आंकड़ों के सहारे सत्ता पक्ष को कटघरे में खड़ा करता है कि राज्य या देश में किस तरह बेरोजगारी की दर बढ़ रही है और यदि वे सत्ता में आये तो कितनी जल्दी इसे दूर कर देंगे. लेकिन, क्या चुनाव के बाद भी राजनीतिक दलों के एजेंडे में बेरोजगारी दूर करने का संकल्प बना रहता है?
सवाल यह भी है कि क्या सिर्फ सरकारी क्षेत्र में कुछ लाख युवाओं को भरती कर या कुछ औद्योगिक इकाइयों की स्थापना कर हर साल बढ़ रही बेरोजगारों की फौज को रोजगार मुहैय्या कराया जा सकता है? बिहार विधानसभा चुनाव के मौके पर यह सवाल इसलिए मौजू है कि कृषि प्रधान इस राज्य में युवाओं की आबादी करीब 27 फीसदी है. इस चुनाव से उनके सपने और आकाक्षांएं जुड़ी हुई हैं.
बिहार की करीब 10.40 करोड़ की आबादी में 15 से 30 वर्ष की आयु वर्ग (किशोर व युवा) की आबादी 2.80 करोड़ हैं. यानी कुल आबादी का करीब 27 फीसदी. हालांकि युवाओं की यह आबादी राष्ट्रीय औसत 30 फीसदी से कम है. मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा जैसे पिछड़े राज्यों से तुलना करें, तो बिहार युवा आबादी के मामले में सबसे निचले पायदान पर है. देश में सबसे ज्यादा युवा आबादी उत्तराखंड और महाराष्ट्र में 31-31 फीसदी है.
लेकिन, विडंबना यह है कि युवा आबादी अपेक्षाकृत कम रहने के बावजूद उनमें बेरोजगारी की दर राष्ट्रीय औसत से कहीं बहुत ज्यादा है. जनगणना के आंकड़ों को लेकर इंडिया स्पेंड ने हाल ही में एक विश्लेषण किया है. इसके मुताबिक युवाओं में बेरोजगारी का राष्ट्रीय औसत 13 फीसदी है, जबकि बिहार में यह दर 17.5 फीसदी है. 15 से 17 वर्ष की आयुवर्ग के बीच बेरोजगारी की दर बिहार में 31 फीसदी है, जबकि राष्ट्रीय औसत 17 फीसदी है.
18 से 29 साल के बीच बेरोजगारी की दर 17 फीसदी है, जो राष्ट्रीय औसत 13 फीसदी से कहीं ज्यादा है. 30 वर्ष से ऊपर के लोगों में बेरोजगारी की दर 1.4 फीसदी है, जो राष्ट्रीय औसत के बराबर है.
देश के दूसरे राज्यों की तरह बिहार में भी अशिक्षित या कम पढ़े-लिखे युवाओं की बनिस्पत शिक्षित और योग्य युवाओं में ज्यादा बेरोजगारी है. बिहार में जो एक दम पढ़े-लिखे नहीं हैं, उनके बीच बेरोजगारी की दर सिर्फ 2.4 फीसदी है, जबकि स्नातक या उससे उपर की पढ़ाई करने वाले युवाओं के बीच बेरोजगारी की दर 25.7 फीसदी है. 19 फीसदी डिप्लोमा या सर्टिफिकेट धारक भी बेरोजगार हैं. यह तथ्य पढ़ाई-लिखाई और रोजगार के बीच के गैप की ओर इंगित करता है.
इस सवाल पर गौर करने की जरूरत है कि क्या पढ़ाई का स्तर इस लायक नहीं है कि युवाओं को रोजगार मिल सके? बिहार में जो पढ़े-लिखे नहीं हैं या कम पढ़े-लिखे हैं, उन्हें मजदूर के रूप में आसानी से (बिहार या दूसरे राज्य में) काम मिल जाता है, लेकिन योग्य युवाओं के सामने रोजगार के अवसर सीमित हैं. कुल प्रजनन दर 2.1 के आधार पर बिहार की आबादी 2051 में 16 से 20 करोड़ के बीच होगी. इसका 30 फीसदी युवा को माना जाये, तो एक बड़ी आबादी के लिए शिक्षा और रोजगार उपलब्ध कराना व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती होगी.
आखिर क्यों कृषि पर निर्भर है हमारे युवा
सामाजिक, आर्थिक व जातीय जनगणना के आंकड़े भी बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में 70.87 फीसदी आकस्मिक मजदूर हैं. ये ऐसे मजदूर हैं, जिन्हें खेती में मौसम के मुताबिक काम मिल जाता है.
पहला विकल्प खेती ही है..
इंडिया स्पेंड के विश्लेषण के मुताबिक, बिहार के अधिसंख्य युवा खेती में लगे हैं. उनके लिए रोजगार के अन्य स्नेत निर्माण कार्य (भवन, पुल-पुलिया, सड़क आदि) तथा व्यापार है.
..और मजबूरी भी
बिहार में पर्याप्त संख्या में औद्योगिक इकाइयों के नहीं रहने की वजह से युवाओं का पारंपरिक कृषि में बने रहना मजबूरी भी है.
वार्षिक उद्योग सर्वे, 2013 के अनुसार
बिहार में 3345 इकाइयां थीं.
यानी कुल औद्योगिक इकाइयों में बिहार का हिस्सा सिर्फ 1.5}
जबकि तमिलनाडू का हिस्सा 16.6} और महाराष्ट्र का हिस्सा 13.03} है. इसी सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि देश भर में करीब 13 करोड़ लोगों को उद्योगों में रोजगार मिला हुआ है, जबकि बिहार में सिर्फ 1.17 लाख लोगों को इससे रोजगार मिला है.
सबसे ज्यादा बेरोजगार महिलाएं पटना में
जुलाई, 2011 से जून, 2012 के दौरान राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण द्वारा 68वें दौर में किये गये रोजगार एवं बेरोजगारी सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, पहली श्रेणी के शहरों में पुरु षों के लिए बेरोजगारी की दर सबसे अधिक लखनऊ (8.5}) में, जबकि महिलाओं के लिए यह सबसे अधिक पटना (34.6}) में रही.
दस लाख या इससे अधिक आबादी वाले शहरों को पहली श्रेणी में रखा जाता है. पुरु षों के लिए बेरोजगारी की दर पहली श्रेणी के शहरों में 2.9}, दूसरी श्रेणी के शहरों में 3.3} और तीसरी श्रेणी के शहरों में यह 2.6} रही. इसी तरह, महिलाओं के लिए बेरोजगारी की दर पहली श्रेणी के शहरों में 4.3}, दूसरी श्रेणी के शहरों में 6.3} रही.
किसान घटे मजदूर बढ़े
एएन सिन्हा इंस्टीटय़ूट ऑफ सोशल स्टडीज के निदेशक डॉ डीएम दिवाकर द्वारा किये गये एक शोध अध्ययन के मुताबिक, 1991 से 2001 के बीच किसानों की संख्या में कमी आयी है.
इसी अवधि में पुरुष खेतिहर मजदूरों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. 1991 में खेती में कार्यबल 70.7 फीसदी था, जो 2001 में बढ़ कर 75 फीसदी हो गया. 1991 में 43.58 फीसदी किसान थे, जो 2001 में घट कर 32.15 फीसदी रह गये. इसी दौरान खेतिहर मजदूरों की संख्या 37.13 फीसदी से बढ़ कर 42.84 फीसदी हो गयी. सीमांत मजदूरों की संख्या 8.75 फीसदी (1991) से बढ़ कर 24.74 फीसदी हो गयी.
आखिर बिहार के नौजवान कहां जायेंगे?
आखिर बिहार के नौजवान कहां जायेंगे? उन्हें या तो खेती या खेती-बाड़ी से जुड़ी मजदूरी में लगे रहना मजबूरी है. आर्थिक सर्वे, 2015 के बिहार में कृषि की विकास दर करीब 3.7 फीसदी है. यदि कृषि प्रक्षेत्र में ही रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने हैं, तो फिर इस क्षेत्र में भी बड़े निवेश की जरूरत होगी. या फिर कृषि आधारित छोटी पूंजी के उद्योग विकसित करने होंगे.
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