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आर्थिक विकास के बल पर ही आगे बढ़ेगा बिहार

आशीष कुमार मेलबोर्न से बिहार में मैंने 25 सालों में अलग-अलग सरकारें देखीं हैं. पिछले 10 साल में वहां विकास के कई अच्छे काम हुए हैं, कजनता उसके पहले के 15 सालों में अभाव था. राज्य के आगे बढ़ने की गति धीमी है, लेकिन बुनियादी तौर पर विकास हुआ है.राज्य के नागरिकों की सुविधाएं बढ़ीं […]

आशीष कुमार
मेलबोर्न से
बिहार में मैंने 25 सालों में अलग-अलग सरकारें देखीं हैं. पिछले 10 साल में वहां विकास के कई अच्छे काम हुए हैं, कजनता उसके पहले के 15 सालों में अभाव था. राज्य के आगे बढ़ने की गति धीमी है, लेकिन बुनियादी तौर पर विकास हुआ है.राज्य के नागरिकों की सुविधाएं बढ़ीं हैं. मैं इसे बिहार के विकास की शुरुआत के रूप में देखता हूं, क्योंकि मैंने वहां ऐसा होता उससे पहले नहीं देखा था.
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर मेरे अंदर बहुत उत्सुकता है. पिछले पांच सालों से मैं विदेश में हूं. इसलिए लोकसभा में वहां वोट नहीं दे सका था. इस बार, विधानसभा चुनाव में वोट देने बिहार जरूर जाऊंगा. मैं इस बात को उत्साहित हूं कि राजनीतिक दल इस के चुनाव में राज्य के विकास की बात कर रहे हैं.
आर्थिक विकास और आधारभूत संरचना को विकसित करने की बात हो रही है. मैं मानता हूं कि अगर इसी रास्ते पर वहां की राजनीति और यह चुनाव कायम रहा, तो आने वाले दिनों में, जल्द ही, हम वहां कई बड़े बदलाव देख सकेंगे.
राज्य को अगले पांच साल में बिजली के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के वायदे बड़े नेता कर रहे हैं. यह राज्य के हित में बड़ी बात है. मुङो विश्वास है कि बिहार की जनता भी यह महसूस कर रही है कि राज्य चुनाव राज्य के विकास को गति देने का सबसे बड़ा जरिया है. इसलिए इस बार वहां के लोग आर्थिक विकास के आधार पर ही वोट करेंगे.
जाति के आधार पर वोट करने की प्रथा बंद होगी. जाति आधारित राजनीति कभी किसी राज्य, समाज, क्षेत्र या वर्ग का विकास नहीं कर सकती, इसे लोग समझ रहे हैं. खास कर युवाओं में नयी चेतना आयी है. सूचना तकनीक के विकास ने लोगों को जागरूक किया है. आज हर आदमी विकास चाहता है. उसे इस बात से मतलब नहीं है कि यह काम किस जाति, धर्म या वर्ग के व्यक्ति या नेता के जरिये हो रहा है. दुनिया तेजी से बदल रही है.
बिहार इस मामले में और पीछे नहीं रहना चाहेगा. जो दल और नेता जातीय आधार पर चुनावद जीतने की कोशिश करते रहे हैं. जीतते भी रहे हैं. उन्हें भी यह समझमें आ रहा होगा कि अब न तो वह समय है, न वह चुनावी हथकंडा उन्हें राजनीतिक कामयाबी दे सकता है.
मुङो 2001 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बिहार छोड़ना पड़ा था. कर्नाटक से इंजीनियरिंग करने के बाद मैं बिहार में काम करना चाहता था, लेकिन मेरे लिए इसका अवसर नहीं था.
मैं सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूं और वहां उस समय ऐसी कोई नौकरी नहीं थी. सॉफ्टवेयर की कोई हाइ-फाइ कंपनी नहीं थी. लिहाजा मुङो बाहर ही नौकरी तलाशनी पड़ी. आज भी वहां की स्थिति करीब-करीब वही है. इस स्थिति को बदलने की जरूरत है. इसे विकास आधारित राजनीति ही कर सकती है. बिहार के आर्थिक विकास की संभावनाएं कम नहीं हैं.
इसके आधारभूत संसाधन उसके पास हैं. अपार पानी है. विस्तृत खेती है. मेहनती मावन संसाधन है. बड़ा उपभोक्ता बाजार है. जरूरत केवल इसके उपयोग के अवसर जुटाने की है. मुङो उम्मीद है कि यह विधानसभा चुनाव राज्य को ऐसी ही सरकार देगा.

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