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सभी दल सत्ता पर कब्जे की फिराक में

अभिषेक सिंह आस्ट्रेलिया से हार विधानसभा चुनाव को लेकर मैं काफी उत्सुक हूं. मेरी उत्सुकता इस बात को लेकर ज्यादा है कि राजनीतिक पार्टियां विकास को लेकर क्या मॉडल पेश करती हैं और चुनाव के बाद जो सरकार बनेगी, उसका विकास का एजेंडा कैसा होगा? दरअसल बिहार को कास्ट पॉलिटिक्स ने जितना नुकसान पहुंचाया है, […]

अभिषेक सिंह
आस्ट्रेलिया से
हार विधानसभा चुनाव को लेकर मैं काफी उत्सुक हूं. मेरी उत्सुकता इस बात को लेकर ज्यादा है कि राजनीतिक पार्टियां विकास को लेकर क्या मॉडल पेश करती हैं और चुनाव के बाद जो सरकार बनेगी, उसका विकास का एजेंडा कैसा होगा?
दरअसल बिहार को कास्ट पॉलिटिक्स ने जितना नुकसान पहुंचाया है, उतना और किसी ने नहीं. मैं समझता हूं कि बिहार के लोग पहले से ज्यादा जागरूक हुए हैं. देश-दुनिया में हो रहे बदलाव और बिहार के पिछड़ेपन की उन्हें भी समझ है, लेकिन इन सबके बावजूद वहां के चुनाव को फिर से जातीय समीकरण में ढालने की कोशिश हो रही है और उसी नजर से बिहार के चुनाव को देखने का प्रयास हो रहा है.
मैं मानता हूं कि यह सोच बिहार को और भी पीछे ले जायेगा, क्योंकि दुनिया जिस तेजी से बदल रही है, उसमें हर एक दिन का महत्व है. मैं अभी जो देख पा रहा हूं, उसमें सभी राजनीतिक पार्टियां कास्ट पॉलिटिक्स से आगे नहीं बढ़ पा रही हैं. सभी दल किसी भी तरह सत्ता पर कब्जा करना चाहते हैं और इसके लिए किसी भी तरह की जोड़-तोड़ से उन्हें परहेज नहीं है. मैं समझता हूं कि बिहार को अगर आगे जाना है, तो जातिगत मुद्दों और इन्हें उठाने वालों को चुनाव में खारिज करना होगा.
बिहार का मुद्दा विकास, शिक्षा और भ्रष्टाचार पर अंकुश होना चाहिए. इसके बगैर कोई भी सरकार राज्य को आगे नहीं ले जा सकती. बिहार आज भी न तो अपने युवाओं को अच्छी तकनीकी शिक्षा देने में सक्षम है, न रोजगार. केंद्र सरकार का पैकेज हो या राज्य सरकार का फंड, भ्रष्टाचार के आगे सब बेकार हैं. मैं ने जब 2000 में बिहार में छोड़ा था, तब की और आज की स्थिति में फर्क यही है कि अब वहां भी विकास की हवा बहने लगी है. विकास की संभावनाओं के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा है. बहुत सारे क्षेत्रों में काम हुआ भी है, लेकिन आज भी आइटी के पढ़ाई और आइटी क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं नहीं के बराबर हैं.
अन्य क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसर नहीं हैं. इसलिए हर तबके का रोजगार के लिए बाहर पलायन कर रहा है. मुङो इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए 15 साल पहले बिहार छोड़ना पड़ा था और रुड़की जाना पड़ा था, क्योंकि बिहार के इंजीनियरिंग कॉलेजों में सीटें कम थी, जबकि ओड़िशा में कई कॉलेज थे. 2004 में पढ़ाई पूरी करने के बाद पहले दिल्ली और फिर बेंगलुरु जाना पड़ा, क्योंकि बिहार में आइटी क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं बेहद सीमित थीं.
बाद में एमबीए करने मेलबोर्न (अस्ट्रेलिया) आ गया और तब से यहीं हूं, मगर इस मामले में बिहार की स्थिति अब तक वही है. अब भी वहां के युवाओं को मेरी तरह पलायन करना पड़ रहा है. दुनिया के अधिकांश देशों और राज्यों ने जिन टेक्निकल इंस्टीच्यूट्स की बदौलत तरक्की की, बिहार में उसका घोर अभाव है.
इसलिए मेरा मानना है कि चुनाव के वक्त राजनीतिक दलों को इस पर विचार करना चाहिए और लोगों को भी खूब समझ-बूझ कर, बिना किसी के बहकावे में आये, पूरी तटस्थता से वोट करना चाहिए. अगर विकास चुनाव का मुद्दा और वोट का आधार हम नहीं बना पाये, तो बिहार के हर व्यक्ति का नुकसान तय है.

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