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प्रतिनिधियों की योग्यता पर भी सवाल कर रहा युवा

युवा मतदाता सिर्फ ईमानदार और काम करनेवाला जनप्रतिनिधि ही नहीं खोज रहा है, वह यह भी चाहता है कि उसका प्रतिनिधि योग्य हो. युवाओं का मानना है कि हर पद के लिए योग्यता जरूरी है तो जनप्रतिनिधि के लिए क्वालिफिकेशन क्यों नहीं है. जनप्रतिनिधि ही संसद और विधानसभाओं में जनता के लिए नीतियां बनाते हैं. […]

युवा मतदाता सिर्फ ईमानदार और काम करनेवाला जनप्रतिनिधि ही नहीं खोज रहा है, वह यह भी चाहता है कि उसका प्रतिनिधि योग्य हो. युवाओं का मानना है कि हर पद के लिए योग्यता जरूरी है तो जनप्रतिनिधि के लिए क्वालिफिकेशन क्यों नहीं है. जनप्रतिनिधि ही संसद और विधानसभाओं में जनता के लिए नीतियां बनाते हैं. पुराने कानूनों में संशोधन करते हैं. बजट बनाते हैं. ये सभी बड़े काम हैं. ऐसे काम करनेवाले लोगों का योग्य होना जरूरी है.

वोट जनता का हथियार
लोकतंत्र में मताधिकार ही जनता का सबसे बड़ा हथियार होता है. इसी से जनता का भविष्य तय होता है. आज लोकतंत्र की आड़ में धनतंत्र, विज्ञापनतंत्र, बयानबाजी तंत्र एवं बाजार तंत्र तेजी से पनप रहा है, जो स्वस्थ्य लोकतंत्र के प्रतिकूल है. लोगों को अपना वोट डालने से पहले ऐसे ‘तंत्र’ से सावधान रहने की जरूरत है. इस विधानसभा चुनाव के बाद आनेवाली सरकार से स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन की अपेक्षाएं है. जनता को वोट देने से पहले स्वास्थ्य और शिक्षा की मौजूदा स्थिति पर विचार करना चाहिए, दोनों की स्थिति ऐसी बदतर हो गयी है कि लोग न बिहार में इलाज कराना चाहते हैं और न ही अपने बच्चों को पढ़ाना.
अजय कुमार , रिसर्च स्कालर ,पीयू
सुलभ हो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
चुनाव के बाद जो भी सरकार आती है, उससे जनता को बहुत उम्मीद रहती है. लेकिन, समय के साथ उम्मीदों पर पानी फिरने लगता है. जनप्रतिनिधि कभी-कभी ही क्षेत्र में नजर आते हैं. इस तरह अब नहीं चलने वाला है. वर्तमान सरकार ने बहुत सारे बेहतर काम किये हैं, लेकिन जब शिक्षा व्यवस्था ही रसातल में चली गयी हो तब सारे अच्छे काम गौण हो जाते हैं. विकास तो शिक्षा से ही होता है. लोगों को शिक्षित करने की योजना तो बहुत चली लेकिन, उसे सही से लागू नहीं किया गया. शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए बनी योजनाओं से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला. हमें ऐसे जनप्रतिनिधि और ऐसी सरकार की दरकार है जो सबके लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सुलभ बनाये. इसमें अमीर और गरीब का फर्क नहीं हो.
राजीव गुप्ता, दानापुर
उम्मीदवारों के लिए तय हो योग्यता
उम्मीदवार की न्यूनतम शैक्षणकि योग्यता तय होनी चाहिए और युवाओं को रोजगार दिलाने की जिम्मेदारी सरकार के साथ-साथ जन प्रतिनिधियों को उठानी चाहिए. संस्थाओं में कोटा तय करना, ज्यादा स्कॉलरशिप बांटना समस्या का समाधान नहीं है, यह समाज में फूट डालने की नीति है. जाति के आधार पर राजनीति करना मूल रूप से गैर लोकतांत्रिक है. एक चपरासी की बहाली होती है तो उसके लिए भी योग्यता निर्धारित की जाति है. लेकिन, विधायका-सांसद जो सबके लिए नीतियां बनाते हैं, उनके लिए कोई योग्यता नहीं होना लोकतंत्र का मजाक है. इसके लिए तुरंत कानून बनना चाहिए.
खुशबू कुमारी
जागरूक हो करें वोट
विकास कि बात सभी पार्टियां करती हैं. लेकिन, विकास कैसे होगा इसका प्लान किसी के पास नहीं है. इसलिए हम मतदाताओं को समझना चाहिए कि हमारे हाथ में लोकतंत्र की चाबी है. इस चाबी का सभी को सही इस्तेमाल करना चाहिए. वोट की ताकत से हमें काम नहीं करने और जनता को बेवकूफ समझने वाले प्रतिनिधियों को सबक सिखाना चाहिए. इससे जनप्रतिनिधि भी अपना काम करेंगे और सरकार भी अपनी नीति बनाने में समाज के सबसे अंतिम वर्ग का ध्यान रखेगी. अगर जनता जागरुक होकर और जाति – धर्म से परे होकर अपना वोट एक ईमानदार प्रत्याशी को देगी, तभी समावेशी विकास की अवधारणा मूर्त रूप लेगी. राजनीतिक पार्टयिां भी जनता को मूर्ख समझने की भूल नहीं करेंगी.
सौरभ कुमार, एनआइटी, पटना
निगरानी की जरूरत
बिहार के राजनीतिक दलों और नागरिकों को मिजोरम से सीख लेनी चाहिए. मिजोरम में चुनाव आयोग बेफिक्र रहता है. इसका कारण मिजोरम पीपुल्स फॉर्म (एमपीएफ) है. यह चर्च की एक संस्था है, जो खुद चुनाव की निगरानी करती है. पार्टियों के घोषणा-पत्र में क्या होना चाहिए और क्या नहीं, इसका निर्णय भी एमपीएफ लेती है. एमपीएफ युवाओं, महिलाओं और समाज का प्रतिनिधित्व करती है. एमपीएफ चुनाव खर्च पर भी निगाह रखता है. एमपीएफ चुनाव में खड़े विरोधी उम्मीदवारों को एक मंच पर लाती है. इसके बाद सभी अपना भाषण देते हैं, वहां बैठी जनता उनसे सवाल करती है और वे जवाब देते हैं. कोई भी पार्टी इन चुनावों में शराबी उम्मीदवार खड़ा नहीं कर सकती है. इस तरह की व्यवस्था बिहार में भी होनी चाहिए.
रितु राज, एनआइटी, पटना

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