।।दक्षा वैदकर।।
खरगोश-कछुआ दौड़ की कहानी तो हम सभी ने सुनी है. एक खरगोश रहता है और एक कछुआ रहता है. दोनों दौड़ लगाते हैं कि कौन ज्यादा तेज है. दौड़ में खरगोश तेज भाग कर बहुत आगे निकल जाता है. वह पीछे पलट कर देखता है, तो उसे कछुआ बहुत दूर नजर आता है. वह सोचता है कि यह धीमा कछुआ भला मुङो क्या हरायेगा? वह पेड़ के नीचे सुस्ताने लगता है और सो जाता है. जब उसकी आंख खुलती है, तो पाता है कि कछुआ दौड़ जीत गया. यह कहानी हमें यह सिखाती है कि लगातार प्रयास करते हुए, धीमे-धीमे अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते जाओ, तो सफलता जरूर मिलती है. हम सबको यही लगता है कि यह कहानी बस यहीं पर आकर खत्म हो गयी. लेकिन नहीं! असल कहानी तो अब शुरू होती है.
दरअसल, खरगोश अपनी हार का पता लगाता है. निष्कर्ष निकलता है कि वह दौड़ अतिआत्मविश्वास की वजह से हारा. खरगोश दोबारा कछुए को दौड़ने के लिए कहता है. कछुआ मान जाता है. इस बार खरगोश शुरू से लेकर अंत तक लगातार तेज दौड़ता है और जीत जाता है. यह कहानी सीख देती है कि लगातार तेज काम करने से आपको सफलता मिलती है. लेकिन कहानी यहां भी खत्म नहीं होती.
अब कछुआ सोचता है कि मैं खरगोश की तरह तेज भाग नहीं सकता. ऐसा कौन-सा गुण मुझमें है, जो खरगोश में नहीं है. उसे जवाब मिल जाता है. वह खरगोश को दोबारा दौड़ लगाने को कहता है, लेकिन दौड़ का रास्ता बदल देता है. दौड़ शुरू होती है और खरगोश तेजी से आगे निकल जाता है. फिनिशिंग लाइन के पहले वह नदी देखता है और तैरना न जानने की वजह से वह वहीं रुक जाता है. क्योंकि कछुए को तैरना आता था. कछुआ नदी पार कर लेता है और दौड़ जीत जाता है. यह कहानी सीख देती है कि अपने अंदर छुपी खूबी को पहचानें और उससे जीत हासिल करें. बहरहाल कहानी यहां भी खत्म नहीं होती. खरगोश और कछुआ अच्छे दोस्त बन गये. दोनों को अपनी-अपनी काबिलियत पता थी. वे अब टीम में दौड़ते हैं. आधे रास्ते खरगोश अपनी पीठ पर कछुए को ढोता है और नदी आने पर कछुआ खरगोश को अपनी पीठ पर. दोनों साथ-साथ दौड़ जीतते हैं.
बात पते की..
-जब हम टीम में काम करते हैं, तो एक-दूसरे के गुणों का सम्मान करें. परिस्थितियों के अनुसार साथियों के गुणों का इस्तेमाल करना चाहिए.
-हम सभी के पास खूबियां हैं. खुद को कम न समङों. अपनी खूबी को पहचानें. कभी हार न मानें. बस एक दौड़ हारने से ही जिंदगी खत्म नहीं होती.