दक्षा वैदकर
सात-आठ साल पहले की बात है, जब मैंने प्रिंट मीडिया में कदम रखा ही था. काम करते हुए एक साल हो गया था और अपने अच्छे काम की वजह से मैं बॉस की गुड लिस्ट में शामिल हो गयी थी.
उनके बिना बोले ही मैं सारा काम कर देती थी, जिसकी वजह से मुङो कभी डांट ही नहीं पड़ती थी. लेकिन एक दौर ऐसा आया, जब मुङो फोन पर गप्प मारने की आदत लग गयी.
शाम को खबरें देने का वक्त हो जाता और मैं खबर लिखने की बजाय फोन पर लगी रहती. 3-4 दिन मेरी वजह से पेज लेट हो चुके थे. एक दिन बॉस ने मुङो फोन पर बातें करते देख डांटते हुए कहा, ‘या तो फोन पर बात कर लो या खबर टाइप कर दो. तुमसे टाइप नहीं होती, तो बोल दो, मैं खुद कर लूंगा.’ बस फिर क्या था. बॉस का ऐसा रूप मैंने कभी देखा नहीं था. डांट खाने की भी आदत नहीं थी, तो मुङो गुस्सा आ गया.
हालांकि मैं उल्टा जवाब नहीं दे सकती थी, लेकिन मैंने तय किया कि अपना गुस्सा मैं उनसे बात न कर के जाहिर करूंगी. मैंने फोन पर बात करना तो बंद कर ही दिया, बॉस से भी बातचीत बंद कर दी. वे जब भी कुछ पूछते, तो सिर्फ हां या ना में जवाब देती. बॉस को समझ आ चुका था कि मैं नाराज हूं. एक हफ्ते तक यही चलता रहा.
एक दिन वे आये और बोले, ‘अगर जीवन में आगे बढ़ना है, तो तुम्हें हर रोज अपनी कमियों पर काम करना होगा और उन्हें दूर करना होगा. हर रोज गलतियों की संख्या कम करनी होगी, ताकि तुम हर चीज में एक्सपर्ट हो सको. और अगर तुम चाहती हो कि कमियां दूर हों, तो तुम्हें ऐसा कोई व्यक्ति भी चाहिए होगा, जो बिना हिचकिचायेतुम्हें तुम्हारी कमियां बताये. मैं उन्हीं इनसानों में से एक हूं. तुम अगर कोई गलत काम करोगी, तो मैं जरूर डाटूंगा, फिर भले ही तुम बातचीत बंद कर दो. क्योंकि मैं तुम्हारी भलाई चाहता हूं.
तुम्हारी कमियां कम होते देखना चाहता हूं. तुम्हें आगे बढ़ते देखना चाहता हूं. हां, फिर भी तुम्हें अगर ये सब ठीक न लगे, तो बोल दो. आगे से मैं कभी भी नहीं डाटूंगा. गलतियों के साथ ही तुम करती रहो अपना काम. इससे तुम्हारा ही नुकसान है.’ मुङो तुरंत अपनी गलती समझ आयी और मैंने उनसे माफी मांग ली.
बात पते की..
कई बार हमारे बड़े, हमारे सीनियर्स, हमारे बॉस हमें डांट देते हैं. ऐसे में हमें समझना होगा कि वे हमारी भलाई के लिए हमें डांट रहे हैं.
अगर आप डांट खाने पर बातचीत बंद कर देंगे, गुस्सा दिखायेंगे, तो सामनेवाला आपको डांटना बंद कर देगा. इससे आपकी ही नुकसान है.