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व्यापमं घोटाला: बिहार के छात्रों ने किया था स्कॉलर का काम, बिहार के 32 छात्रों पर एमपी में एफआइआर

पटना: मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) की तरफ से आयोजित होनेवाली मेडिकल, इंजीनियरिंग समेत अन्य तरह की परीक्षाओं में फर्जीवाड़े में बिहार के छात्रों की भी संलिप्तता है. व्यापमं फर्जीवाड़े में बिहार के करीब 32 छात्रों पर मध्यप्रदेश में अलग-अलग स्थानों पर एफआइआर दर्ज हुई है. हालांकि, इसकी किसी स्तर के पुलिस अधिकारी ने […]

पटना: मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) की तरफ से आयोजित होनेवाली मेडिकल, इंजीनियरिंग समेत अन्य तरह की परीक्षाओं में फर्जीवाड़े में बिहार के छात्रों की भी संलिप्तता है. व्यापमं फर्जीवाड़े में बिहार के करीब 32 छात्रों पर मध्यप्रदेश में अलग-अलग स्थानों पर एफआइआर दर्ज हुई है. हालांकि, इसकी किसी स्तर के पुलिस अधिकारी ने पुष्टि नहीं की है. एमपी पुलिस की जांच टीम भी इस पर कुछ कहने से बच रही है. इनमें कई छात्रों का बिहार से ताल्लुक है, लेकिन वे यहां रहते नहीं हैं. कुछ छात्र दूसरे राज्यों के कॉलेजों में पढ़ते हैं.

प्राप्त जानकारी के अनुसार, बिहार के सबसे अधिक छात्र मध्यप्रदेश के मेडिकल और इंजीनियरिंग की परीक्षाओं में स्कॉलर का काम करते थे. सबसे ज्यादा स्कॉलर का काम करने की ही शिकायतें सामने आयी हैं. इसमें भी मेडिकल परीक्षा में स्कॉलर के आधार पर सेटिंग करने के मामले सबसे ज्यादा सामने आये हैं. इसी के आधार पर मध्य प्रदेश की एसटीएफ की विशेष टीम बिहार में स्थानीय पुलिस के सहयोग से विभिन्न स्थानों पर छापेमारी कर रही है. इसमें फिलहाल 2012-13 में मेडिकल एंट्रेंस एक्जाम (पीएमटी) में स्कॉलर का काम करनेवाले करीब 12 छात्रों की तलाश प्रमुखता से की जा रही है. इन छात्रों के खिलाफ इंदौर के राजेंद्रनगर थाने में एफआइआर दर्ज है. इसमें अधिकतर छात्र बिहार के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई कर रहे हैं. इनमें पीएमसीएच, बेतिया मेडिकल कॉलेज, समेत अन्य मेडिकल कॉलेज शामिल हैं. इसी के आधार पर एमपी पुलिस बिहार के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में छापेमारी कर रही है और चिह्न्ति छात्रों को पकड़ने की मुहिम में लगी है. इसमें अभी तक छह छात्र ही पकड़ में आये हैं. शेष फरार छात्रों की तलाश चल रही है.
जैसा रैंक, वैसी रकम
स्कॉलर का काम करनेवाले ये छात्र मध्यप्रदेश या दूसरे राज्यों के छात्रों के बदले बैठ कर परीक्षा देते थे. चूकिं ये छात्र पढ़ने में अच्छे होते हैं, परीक्षा में अच्छे नंबर आ जाते थे और वास्तविक छात्र (जो पढ़ने में बेहद कमजोर या ज्यादातर नालायक किस्म के होते) को मनपसंद अच्छे कॉलेजों में एडमिशन आसानी से मिल जाता था. इन स्कॉलर को इसके बदले में अच्छी खासी रकम मिलती है. यह रकम मेडिकल परीक्षा में इंजीनियरिंग की अपेक्षा ज्यादा होती है. मेडिकल या इंजीनियरिंग में यह रकम रैंक पर निर्भर करता है. टॉप-10 आने पर सबसे ज्यादा और इसके बाद जैसा रैंक वैसा रुपये. ये रुपये सीधे स्कॉलर को नहीं, बल्कि इनके ‘रिंग लीडर’ को दिया जाता है. यहीं रिंग लीडर स्कॉलर मैनेज, एडमिट कार्ड मैनेज करने से लेकर परीक्षा दिलाने तक का काम करता है. इसमें कुछ अच्छे स्कॉलरों की पूछ यानी रेट बहुत ज्यादा होती है. प्राप्त जानकारी के अनुसार, स्कॉलर की रेट पांच से 15 लाख प्रति एक्जाम तक होता है.
यह है व्यापमं घोटाला
मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल में 2007 से 2013-14 के दौरान बड़े स्तर पर मेडिकल, इंजीनियरिंग समेत अन्य परीक्षा में फर्जीवाड़ा व सरकारी नौकरी में बहाली में भी धांधली हुई है. इसका सबसे पहले खुलासा 2013 मार्च-अप्रैल में हुआ. मामले की जांच में 2500 लोगों को आरोपित बनाया गया था. इनमें करीब 2000गिरफ्तार हो चुके हैं. करीब 500 फरार हैं. ‘किंगपिन’ की गिरफ्तारी अब तक नहीं हुई है. एक पत्रकार समेत मामले से जुड़े 49 लोगों की अब तक मौत हो चुकी है.
झुके शिवराज, सीबीआइ जांच को हुए तैयार
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अंतत: मंगलवार को कहा कि वह हाइकोर्ट से मामले की जांच सीबीआइ को सौंपने का आग्रह करेंगे. मुख्यमंत्री ने कहा, मेरे मन में हाइकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के प्रति पूरी आस्था है तथा व्यापमं घोटाले की अभी हाइकोर्ट की निगरानी में चल रही एसटीएफ एवं एसआइटी जांच पर भी मेरा पूरा भरोसा है. लेकिन जिस तरह मौतों के नाम पर वातावरण तैयार किया जा रहा है, उससे लोगों के मन में संदेह पैदा हो रहा है.
ऐसे करते थे फर्जीवाड़ा
जिस छात्र की परीक्षा होती है, उसके एडमिट कार्ड के फोटो की स्कॉलर के फोटो के साथ मिक्सिंग करायी जाती है. यह काम कंप्यूटर की मदद से इतनी चालाकी से किया जाता है कि असली और नकली चेहरों में फर्क खत्म हो जाता है. एक तसवीर दोनों के चेहरों की तरह दिखती है. कई मामलों में दूसरे के फोटो के स्थान पर दूसरे का फोटो लगा कर पूरे मामले को अंजाम दिया जाता है. इसमें काउंसेलिंग में भी स्कॉलर ही जाता है. सिर्फ अंतिम में असली लड़का कॉलेज में दाखिला लेता है.
पकड़ से बाहर सरगना
‘अनुमानित सरगना’ पकड़ से बाहर है. बिहार में स्कॉलर सप्लाइ करनेवाले लोगों में कुछ प्रमुख हैं. इनमें कुछ निजी और सरकारी ‘डॉक्टर’ भी हैं. इनकी पूरी एक टीम है, जो स्कॉलरों को सप्लाइ करने का काम करती है. इसमें मध्यप्रदेश के भी जालसाजों की टीम है, जो वहां की परीक्षाओं में ऐसे स्कॉलर को बैठाने से लेकर काउंसेलिंग व मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन तक में सहयोग करती है.

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