।। दक्षा वैदकर ।।
आज हम थोड़ा मन पर विचार करते हैं. हमारे मन की एक बड़ी कमी यह है कि वह तमाम चीजों का संग्रह करता है. जाननेवाली बात यह है कि इनमें से ज्यादातार वह उन चीजों को जमा करता है, जो नकारात्मक होती है और हमें निराशा में डालती है. हमारे दिमाग को दो भागों में बांटा गया है.
कॉन्शस माइंड (चेतन मन) और अनकॉन्शस माइंड (अचेत मन). कॉन्शस माइंड वह है, इसको हम सामाजिक मन भी कहते हैं. इस मन के जरिये आप लोगों को सुनते हैं, चीजों को देखते समझते हैं. इसमें बचपन से आपको शिक्षा दी जा रही है कि आपको क्या करना है और क्या नहीं करना है.
अनकॉन्शस माइंड में हमारी छिपी हुई इच्छाएं होती है और पूरी जिंदगी हम कॉन्शस व अनकॉन्शस माइंड के बीच उलझे रहते हैं.
अब थोड़ा और नीचे की ओर जाते हैं. ओशो ने इसकी बहुत खूबसूरत व्याख्या की है. वे कहते हैं अनकॉन्शस के नीचे एक कलेक्टिव अन कॉन्शस माइंड होता है. कई बार हमें बहुत जोर का गुस्सा आता है और हम जानवरों की तरह व्यवहार करने लगते हैं, चिल्लाते हैं.
यह हमारे कलेक्टिव अनकॉन्शस माइंड की वजह से होता है. इसके नीचे कॉस्मिक अनकॉन्शस माइंड आता है. अब हम कॉन्शस माइंड के ऊपर की ओर जाते हैं. इसके ऊपर आता है नो माइंड. उसके ऊपर आता है सुपर कॉन्शस माइंड और अंत में होता कॉस्मिक कॉन्शस माइंड. ये जो सुपर कॉन्शस या कॉस्मिक कॉन्शस माइंड है, यह उस इनसान को कहा जाता है, जो प्रत्येक पल जागरूक है, सचेत है.
उसकी हर क्रिया वह सोच–समझ कर करता है. उस कार्यो में आत्मविश्वास झलकता है. आपको जानकर आश्चर्य होगा, लेकिन 99.9 प्रतिशत लोग दिमाग के सबसे निचले हिस्से में रहते हैं. ऊपर के हिस्सों में जाने के लिए आपको यह करना होगा. पहला, अपने विचारों को दूसरों से बांटने से हिचकिचाएं नहीं.
दूसरा, खुद को कभी भी छोटा या कमतर न समङों. तीसरा, खुद की तुलना दूसरों से न करें. चौथा, ड्रग को तनाव व गुस्से का हल न मानें. पांचवा, जरूरत आधारित जिंदगी गुजारें. लालच आधारित नहीं
बात पते की..
– जिंदगी ऐसे जीओ, जैसे अगला पल जीवन का आखिरी पल है. जब आप यह सोच कर जीवन जीते हैं, तो आप भरपूर खुशियां बटोरते हैं.
– उन चीजों का पता लगाएं जिनकी आपको सख्त जरूरत है. केवल उन्हीं चीजों को कमाने की कोशिश करें. आरामदायक चीजों के पीछे न भागें.