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दहेज के खिलाफ ‘इस्लाह -ए- माशरा’ की टीम

नयी दिल्ली : दहेज अभिशाप है. इस जुमले पर समाज का एक बड़ा तबका भले ही अमल नहीं करता हो, लेकिन उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में कमसारोबार इलाके के मुसलिम समाज के लोगों ने बीते कई वर्षो से इस जुमले को अपनी जिंदगी में रचा-बसा लिया है. अब उन्होंने दहेज विरोधी और महिला उत्थान की […]

नयी दिल्ली : दहेज अभिशाप है. इस जुमले पर समाज का एक बड़ा तबका भले ही अमल नहीं करता हो, लेकिन उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में कमसारोबार इलाके के मुसलिम समाज के लोगों ने बीते कई वर्षो से इस जुमले को अपनी जिंदगी में रचा-बसा लिया है. अब उन्होंने दहेज विरोधी और महिला उत्थान की अपनी इस मुहिम को हिंदुस्तान के कोने-कोने में ले जाने का बीड़ा उठाया है. गाजीपुर में गंगा नदी से सटे इस इलाके के करीब 25 गांवों के हजारों लोगों ने अब तक अपनी इस मुहिम को इस्लामी नजरिये से आगे बढ़ाया है और आगे भी इसलामी रोशनी में ही राष्ट्रीय स्तर पर मुसलिम समाज तथा समाज के दूसरे तबकों को इससे जोड़ना चाहते हैं. ये लोग दहेज के खिलाफ और लड़कियों को मां-बाप की जायदाद में बराबर का हक दिलाने के लिए ‘इस्लाह-ए-माशरा’ नामक संगठन के बैनर तले अपनी मुहिम को अंजाम दे रहे हैं.

कार्यक्रम का आयोजन

इस संगठन के लोग देश के विभिन्न हिस्सों में दहेज के खिलाफ और महिलाओं को जायदाद में वाजिब हक दिलाने के लिए गोष्ठियों एवं सम्मेलनों का आयोजन कर रहे हैं. इसी तरह की एक गोष्ठी राजधानी दिल्ली में आयोजित की गयी, जिसमें बड़ी संख्या में उन लोगों ने हिस्सा लिया जिन्होंने कभी दहेज नहीं लिया. मौजूदा समय में इस मुहिम के कर्ता-धर्ता और जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रोफेसर जुनैद हारिश ने बताते हैं कि,‘साल 1972 में हमारे इलाके के कुछ लोगों ने दहेज का विरोध करने का फैसला किया था. धीरे-धीरे इस विरोध ने एक मुहिम की शक्ल ले ली. आज के दौर में हमारे समाज के किसी भी परिवार में दहेज नहीं लिया जाता. इस मुहिम में आज युवा वर्ग बढ़-चढ़ कर शामिल हो रहा है.’

मिलेगा समान हक

गाजीपुर के कमसारोबार के लोगों ने अपनी दहेज विरोधी मुहिम के साथ लड़कियों को मां-बाप की जायदाद में लड़कों के बराबर की हिस्सेदारी देने के मुद्दे को भी शामिल कर लिया है. वैसे यह मुद्दा ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड के एजेंडे में भी शामिल रहा है. प्रोफेसर हारिश कहते हैं कि हमारा सामाजिक ढांचा इस प्रकार है, जिसमें लड़कियों को पैदा होते ही पराया समझ लिया जाता है. परंतु हमारे इलाके के लोगों ने लड़कियों को भी बराबर का हक देने का फैसला किया और बड़े पैमाने पर लोग लड़कियों को भी जायदाद में हिस्सा भी दे रहे हैं.

परिवार का विरोध

कमसारोबार इलाके के अहमद खां भी उन लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने वर्षो पहले बिना दहेज के शादी की, हालांकि परिवार के स्तर पर उन्हें पुरजोर विरोधझेलना पड़ा. अहमद कहते हैं, साल 1986 में जब मैंने शादी में दहेज नहीं लेने का फैसला किया, तो परिवार के कई लोगों ने इसका खूब विरोध किया. परंतु मैंने जो ठाना था, वही किया. उस वक्त दहेज लेने और देने को सामाजिक हैसियत का प्रतीक माना जाता था. बीते तीन दशक में समाज में बहुत बदलाव आया है, लेकिन दहेज की कुप्रथा आज भी नहीं बदली. ‘इस्लाह-ए-माशरा’ की इस मुहिम में ‘ह्यूमन डेवलपमेंट एंड कल्याण फाउंडेशन’ भी मदद करने के लिए सामने आया है. आगे इन लोगों ने देश के अलग-अलग हिस्सों में अपने कार्यक्रमों के जरिये लोगों को इन मुद्दों पर जागरूक करने का लक्ष्य रखा है.

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